राजस्थान के लोक नाट्य | rajasthan ke lok natya
राजस्थान के लोक नाट्य
राजस्थान के लोक नाट्य – ख्याल, नौटंकी, रम्मत, स्वांग, गवरी, तमाशा, भवाई, फड़, रासलीला, रामलीला – तुलसीदास जी द्वारा, सनकादिक लीला
ख्याल
- – पौराणिक एंव ऐतिहासिक कथाओं को पद्यबद्ध करके नाटक के रूप में मंचन किया जाता हैं।
- . सूत्रधारः- हलकारा
- 1. कुचामनी ख्याल:
- – प्रवर्तक- लच्छी राम
- – इसमें महिला पात्रों की भूमिका पुरूषों द्वारा डी निभायी जाती हैं।
- – इसका स्वरूप ‘ओपेरा’ जैसा होता हैं।
- – मुख्य कथाएं – चांद नीलगिरि, राव रिड़मल, मीरा मंगल।
- – उगमराजः- कुचामनी ख्याल के प्रमुख कलाकार हैं।
- 2. जयपूरी ख्याल:- इसमें महिला पात्रों की भूमिका महिला ही निभाती हैं।
- 3. हेला ख्याल:- दौसा, लालसोट एवं सवाई माधोपुर क्षेत्र में प्रसिद्ध। – वाद्य यंत्रः नौबत
- 4. तुर्रा- कलंगी:- तुकनगीर व शाह अली ने इसे लोकप्रिय किया था। चन्देरी के राजा ने इन्हें तुर्रा व कलंगी दिया था।
- – तुर्रा पक्ष – शिव – कलंगी पक्ष – पार्वती – सहेडूसिह व हमीद बेग ने इसे मेवाड़ में लोकप्रिय किया था।
- – इसमें दो पक्ष आमने – सामने बैठकर प्रतिस्पर्धा मूलक संवाद करते हैं, जिसे गम्मत कहते हैं।
- – तुर्रा – कलंगी ख्याल में मंच की सजावट की जाती हैं।
- – दर्शकों के भी भाग – लेने की सम्भावना रहती हैं।
- – अन्य कलाकार – चेतराम, ताराचन्द, जयदयाल सोनी, ओंकारसिंह
- 5. शेखावाटी ख्याल/चिड़ावी ख्याल:- नानूराम व दूलिया राणा ने इसे लोकप्रिय किया।
- 6. अली बख्शी ख्याल:- अलवर जिले के मुण्डावर ठिकाणे के नवाब अली बख्श के समय यह ख्याल शुरू हुयी। अली बख्श को अलवर का रसखान कहा जाता हैं।
- 7. कन्हैया ख्याल:- भरतपुर, धौलपुर, करौली क्षेत्र में लोकप्रिय।
- – कृष्ण लीलाओं का मंचन किया जाता हैं। – सूत्रधार – मेड़िया
- 8. ढप्पाली ख्याल:- लक्ष्मणगढ़ (अलवर) क्षेत्र में लोकप्रिय।
- 9. भेंट के दंगल:- बाडी (धौलपुर) क्षेत्र में लोकप्रिय।
- – धार्मिक कहानियों का मंचन किया जाता हैं।
नौटंकी
- – अलवर, भरतपुर, करौली क्षेत्र में लोकप्रिय।
- – प्रवर्तक – भूरीलाल
- – वर्तमान में प्रमुख कलाकार-गिरिराज प्रसाद।
- – 9 प्रकार के वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता हैं।
- – यह हाथरस शैली से प्रभावित हैं।
- – नौटंकी में प्रचलित कहानी:
- – अमरसिंह राठौड़, आल्हा-ऊदल, सत्यवान-सावित्री, हरिशचन्द्र-तारामती।
रम्मत
- – बीकानेर एवं जैसलमेर क्षेत्र की लोकप्रिय।
- – पुष्करणा ब्राह्मणों द्वारा खेली जाती हैं।
- – होली एवं सावन के महीने में रम्मत खेली जाती हैं।
- – जैसलमेर में तेजकवि ने इसे लोकप्रिय किया था।
- – तेजकवि की प्रसिद्ध रम्मतेः- स्वतत्रं बावनी, (1942 में महात्मा गांधी को की गयी भेंट) मूमल, जोगी भृतहरि, छेले तम्बोलन – तेजकवि अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ थे।
- – बीकानेर में ‘पाटों’ पर रम्मत का मंचन किया जाता हैं।
- – पाटा संस्कृति – बीकानेर की मौलिक विशेषता हैं।
- – होली के समय शुक्ल अष्टमी से चतुदर्शी तक इनका अधिक मंचन किया जाता हैं।
- – हेड़ाऊ – मेरी की रम्मत सर्वाधिक लोकप्रिय हैं, जिसे जवाहर लाल ने शुरू किया था।
- – रम्मत शुरू से पहले रामदेव जी का गीत गया जाता हैं।
- – बीकानेर के कलाकार:- तुलसीदास जी, सुआ महाराज, फागु महाराज।
स्वांग
- – किसी पौराणिक या ऐतिहासिक पात्र की वेशभूषा पहनकर उसकी नकल करना।
- – भीलवाड़ा के जानकीलाल भांड व परशुराम ने इसे लोकप्रिय किया।
- – जानकी लाल भांड को ‘मंकी मेन’ कहा जाता हैं।
- – मांडल (भीलवाड़ा) में चेत्र शुक्ल त्रयोदशी को नाहरों का स्वांग किया जाता हैं।
गवरी
- – राजसथान का प्राचीनतम लोक नाट्य।
- – इसे राजस्थान का मेरू नाट्य भी कहा जाता हैं।
- – मेवाड़ क्षेत्र में भील पुरूषों द्वारा गवरी नाट्य का मंचन किया जाता हैं। –
- रक्षा बन्धन से शुरू होकर 40 दिनों तक चलता हैं।
- – इसमें शिव-भस्मासुर कथा को आधार बनाया जाता हैं।
- – सूत्रधार- कुटकड़िया, शिव- राईबुड़िया।
- – हास्य पुट डालने वाला कलाकार – झटपटिया।
- – राजसथान का प्राचीनतम लोक नाट्य।
- – इसे राजस्थान का मेरू नाट्य भी कहा जाता हैं।
- – मेवाड़ क्षेत्र में भील पुरूषों द्वारा गवरी नाट्य का मंचन किया जाता हैं। –
- रक्षा बन्धन से शुरू होकर 40 दिनों तक चलता हैं।
- – इसमें शिव-भस्मासुर कथा को आधार बनाया जाता हैं।
- – सूत्रधार- कुटकड़िया, शिव- राईबुड़िया।
- – हास्य पुट डालने वाला कलाकार – झटपटिया।
- – विभिन्न कथानकों को आपवस में जोड़ने के लिए बीच में सामुहिक नृत्य किया जाता हैं। जिसे ‘गवरी की घाई कहते’ हैं।
तमाशा
- – यह जयपुर मे लोकप्रिय हैं।
- – सवाई प्रतापसिंह के समय बंशीधर भट्ट (महाराष्ट्र) को तमाशा के लिए जयपुर लाया गया।
- – उस समय ‘गौहर जान’ तमाशा में भाग लिया करती थी।
- – होली के दिन- जोगी-जोगण का तमाशा।
- – शीतलाष्टमी के दिन- जुट्ठन मियां का तमाशा। चैत्र अमावस्या के दिन- गोपीचन्द का तमाशा।
- – अखाड़ा में तमाशा का मंचन किया जाता हैं।
भवाई
- – गुजरात के सन्निकट राजस्थानी जिलों में अधिक लोकप्रिय।
- – इसमें संगीत पक्ष पर कम ध्यान दिया जाता हैं, बल्कि करतब दिखाये जाते हैं।
- – भवाई लोकनाट्य व्यावसायिक प्रकृति का हैं।
- – राजस्थान में मुख्य कलाकार:- रूपसिंह, तारा शर्मा, सांगी लाल।
- – महिला व पुरूष पात्रो को सगाजी व सगीजी कहा जाता हैं।
- – कलाकार मंच पर अपना परिचय नहीं देते हैं।
- – शांता गांधी का जसमल ओड़ण प्रसिद्ध भवाई लोक नाट्य हैं।
चारबैंत
- – टोंक क्षेत्र में लोकप्रिय।
- – मूलत:- अफगानिस्तान का लोकनाट्य हैं।
- – पहले इसे पश्तों भाषा में प्रस्तुत किया जाता था।
- – मुख्य वाद्य यंत्र- डफ।
- – टोंक नवाब फैजुल्ला खां के समय करीम खां निहंग ने इसे टोंक में लोकप्रिय किया था।
फड़
- – कपड़े के पर्दे पर किसी देवता से सम्बन्धित जीवन चरित्र का मंचन फड़ कहलाता हैं।
- – 30 Feet – Leugthl – 5 Frit – Buidth, फड़ का चित्रण किया जाता हैं।
- – किसी देवता की मनौती पूरी होने पर फड़ बचवाते हैं।
रासलीला
- – इसे वल्लभाचार्य द्वारा शुरू किया गया।
- – भगवान श्रीकृष्ण से सम्बन्धित घटनाओं का मंचन किया जाता हैं।
- – भरतपुर क्षेत्र में लोकप्रिय हैं।
- – शिवलाल कुमावत ने इसे भरतपुर में लोकप्रिय किया था।
- – रामस्वरूप जी व हरगाविन्द जी भी इसके मुख्य कलाकार हरे हैं।
- – कामां (भरतपुर), फुलेरा (जयपुर) की रासलीला प्रसिद्ध हैं।
रामलीला – तुलसीदास जी द्वारा
- – भगवान राम से समबन्धित घटनाओं की मंचन किया जाता हैं।
- – बिसाऊ (झुन्झुनूं) की रामलीला- मूक अभिनय पर आधारित।
- – अटरू (बारां) यहां रामलीला में धनुष को भगवान राम द्वारा न तोड़ा जाकर, जनता द्वारा तोड़ा जाता हैं।
- – पाटूदां (कोटा)- की रामलीला भी प्रसिद्ध हैं।
- – वेकटेश मंदिर (भरतपुर)- भरतपुर के वेंकटेश मंदिर में होती हैं।
सनकादिक लीला
- – चित्तौड़गढ़ के घोसुण्डा व बस्सी स्थान पर इसका मंचन किया जाता हैं।
- – मंचित देवता कथा- गणेश, गारा-काला भैंरू, नृसिंह- हिरण्यकश्यप।
- – आश्विन व कार्तिक महिनों में आयोजन किया जाता हैं।
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