राव मालदेव राठौड़ | मालदेव का इतिहास | Maldev Rathod ( 1531-1564 ई. )
अपने पिता गांगा की हत्या करके शासक बना । इसलिए इसे पितृहंता शासक कहते हैं।
जिस समय राव मालदेव का राजतिलक हुआ। तब उसके पास जोधपुर व पाली (सोजत) दो ही परगने थे।
कालातंर में राव मालदेव ने अपनी साम्राज्यवादी नीति के तहत 52 युद्धों के द्वारा 58 परगने जीते थे।
पाहेबा का युद्ध – Battle of Paheba ( 1541 ई. )
राव मालदेव V/s जैतसी (बीकानेर)
मालदेव इस युद्ध को जीतता हैं व जैतसी लड़ते हुए मारा जाता हैं।
जैतसी का बेटा कल्याणमल शेरशाह सूरी के पास चला जाता हैं।
मालदेव ने वीरमदेव से मेड़ता छीन लिया। – वीरमदेव भी शेरशाह सूरी से जाकर मिल जाता हैं। मालदेव-हुमायूँ सम्बन्धः- शेरशाह से हारने के बाद हुमायूं जब फलौदी (जोधपुर) में था, तब उसने मालदेव के पास अपने दूत भेजे
- रायमल सानी
- अतका खां
- मीर समेद
राव मालदेव ने भी सकारात्मक उत्तर दिया व हुमायूं का बीकानेर परगना देने का वादा किया।
हुमायूं अविश्वास की वजह से जोधपुर न आकर सिंध की तरफ चला गया।
गिरी सुमेल का युद्ध – Battle of Giri Sumail ( जनवरी 1544 ई. )
- इसे जैतारण का युद्ध भी कहते हैं।
- मालदेव V/s शेरशाह सूरी।
- अविश्वास की वजह से राव मालदेव पीछे हट जाता हैं।
- मालदेव की सेना के दो सेनानायक जैता व कूपा शेरशाह के खिलाफ लड़ाई करते हैं।
- शेरशाह मुश्किल से इस युद्ध को जीत पाता हैं। अतः शेरशाह के मुह से बरबस ही निकल गया – मुठी भर बाजरे के खातिर मैं हिन्दुस्तान की सल्तनत खो देता।
- शेरशाह ने जलाल खां जलवानी की आरक्षित टुकडी की सहायता से युद्ध जीता था।
- शेरशाह आगे बढ़कर जोधपुर पर अधिकार कर लेता हैं। खवास खां को जोधपुर सौंप दिया था।
- राव मालदेव सिवाणा (बाड़मेर) चला गया।
- सिवाणा को ‘राठौड़ो की शरणस्थली’ कहते हैं। शेरशाह के जाते ही मालदेव ने जोधपुर पर पुनः अधिकार कर लेता हैं।
- मालदेव की रानी उमा दे को ‘रूठी रानी’ कहा जाता हैं।
- ये जैसलमेर के लूणकरण की बेटी थी।
- इन्होनें अपना कुछ समय तारागढ़ किला (अजमेर) व अंतिम समय मेवाड़ के केलवा गांव में बिताया।
- ‘अबुल फजल’ अकबरनामा में मालदेव की तारीफ बताता हैं।
- बदायूनी – मालदेव को ‘भारत का महान् पुरूषार्थी राजकुमार’ बताता हैं।
मालदेव की उपाधियाँ
- हिन्दू बादशाह
- हशमत वाला राजा
दरबारी विद्वान
ईसरदास- (1) हाला झाला री कुडंलिया (सूर सतसई) (2) देवीयाण (3) हरिरस
आशानन्द- (1) बाघा भारमली रा दूहा (2) उमादे भटियाणी रा कवित।