राजस्थान के प्रमुख संत सम्प्रदाय
दादूदयाल सम्प्रदाय
- – जन्म स्थान – अहमदाबाद।
- – 1585 ई. में आमेर के राजा भगवानदास ने दादूदयाल को फतेहपुर सीकरी में अकबर से मिलाया।
- – इनकी मुख्य पीठ नरैना (जयपुर) में हैं, जो दादूदयाल ने 1602 ई. में स्थापित की थी।
- शाखाएं:- 1. खालसा 2. विरक्त 3. उतरादे 4. खाकी 5. नागा।
- – दादू जी के 52 शिष्य थे, जिन्हें 52 स्तम्भ (थाम्बे) कहा जाता हैं।
- – दाद दयाल ने अपने उपदेश ढुंढाढी भाषा में दिए।
- – दादू पंथ के मंदिरों को ‘दादू द्वारा’ कहते हैं।
- – दादूदयाल को राजस्थान का कबीर कहते हैं।
- – दादू पंथी विवाह नहीं करते हैं।
- – मंदिर में कोई मूर्ति नहीं होती हैं, (वाणी रखी जाती हैं)
- – दादूपंथी शव को जलाते या दफनाते नहीं हैं, बल्कि पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता हैं। (वायु-दहन)
- – स्वयं दादूदयाल का शव भेराणा की पहाड़ी में छोड़ दिया गया था। इस स्थान को दादू खोल या दादूपालका कहा जाता हैं।
- – दादूपंथियों के सत्संग स्थल को ‘अलख दरीबा’ कहा जाता हैं।
- – दादू ने निपख आंदोलन चलाया।
– दादूदयाल के प्रमुख शिष्य
1. सुन्दरदास
- – ‘नागा’ शाखा की स्थापना की थी।
- – नागा खाशा के साधुओं ने मराठा आक्रमणों के समय जयपुर के शासकों (प्रतापसिंह) की मदद की।
- – नागा साधु हथियार बंद रहते थे, इनके रहने के स्थान को छावनी कहते हैं
- सुन्दरदास की मुख्य पीठ गेटोलाव (दौसा) में हैं।
2. रज्जबजी
- – सांगानेर के पठान थे।
- – दादूदयाल के उपदेश सुनकर शादी छोड़ दी, दादूदयाल जी के शिष्य बन गये, आजीवन दूल्हे के वेश में रहे।
- – पुस्तके:- रज्जब वाणी, सर्वगी
3. जाम्भो जी
- – जन्म स्थानः- पीपासर (नागौर)
- – जाम्भो जी पंवार राजपूत थे।
- – 1482 ई. में समराथल धोरे पर अपने अनुयायियों को 29 उपदेश दिए। इसलिए इनके अनुयायी विश्नाई कहलाए।
- – 1526 ई. में बीकानेर जिले के मुकाम गांव में समाधि ली थी। जहां ‘मुकाम’ में इनका मुख्य मंदिर बना हुआ हैं।
- – फाल्गुन व आश्विन अमावस्या को यहां मेला भरता हैं।
जाम्भो जी की प्रमुख शिक्षाएं:
- (1) पेड़ो की कटाई नहीं करना। (खेजड़ी) (सिर साटे रूख रहे तो भी सस्तों जाण)
- (2) जीव हिंसा नहीं करना (विशेषकर हिरण)
- (3) नशा नहीं करना।
- (4) विधवा विवाह करना।
- (5) नीले वस्त्र का त्याग।
- – जाम्भो जी ने सिकंदर लोधी से कहकर गौ-वध निषेध करवाया।
- – एक बार बीकानेर क्षेत्र में अकाल पड़ने पर जाम्भो जी के कहने पर सिकंदर लोधी ने पशुओं के लिए चारा भेजा था।
- – जाम्भो जी को विष्णु का अवतार माना जाता हैं।
- – जोधपुर के राव जोधा व उनके बेटे बीका व बीदा, दूदा (मेड़ता) जाभों जी का सम्मान करते थे।
जसनाथी सम्प्रदाय
- – सिकन्दर लोधी ने जसनाथ जी को बीकानेर में कतरियासर गांव की जमीन दी थी।
- – कतरियासर गांव में ही जसनाथ जी ने जीवित समाधि ली थी।
- – जसनाथ जी के अनुयायी 36 नियम मानते हैं।
- – इनके अनुयायी काली ऊन के धागा पहनते हैं।
- – मोर पंख व जाल वृक्ष को प्रमुख माना जाता हैं।
- – इनके अनुयायी अग्नि नृत्य करते हैं।
- – इनकी पत्नी ‘काल दे’ की जसनाथ जी के साथ पूजा की जाती हैं।
- – मुख्य पीठ- कतरियासर – उपदेश- सिंभूदडा एवं कोंडा ग्रंथ में संग्रहीत हैं।
चरणदासी सम्प्रदाय (सगुण तथा निर्गुण का मिश्रण)
- – चरणदास जी का जन्म अलवर जिले के डेहरा गांव में हुआ।
- – इनकी मुख्य पीठ दिल्ली में हैं।
- – चरणदा सी सम्प्रदाय के अनुयायी 42 नियम मानते हैं।
- – चरणदास जी ने नादिरशाह के आक्रमण (1739) की भविष्यवाणी की थी।
- – चरणदासी सम्प्रदाय के लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं।
- – इनकी एक शिष्या का नाम दयाबाई था, जिसने
- (1) ‘दया बोध’
- (2) ‘विनय मलिका’ नामक पुस्तक लिखी।
- – एक अन्य शिष्या सहजाबाई ने ‘सहज प्रकाश’ नामक पुस्तक लिखी।
- – चरणदासी सम्प्रदाय के लोग भगवान श्रीकृष्ण की पूजा सखी भाव से करते हैं।
- – मेवात क्षेत्र के लोगों में इनका प्रभाव अधिक हैं।
रामानन्दी सम्प्रदाय (सगुण भक्ति)
- – कृष्णदास ‘पयहारी’ ने गलता जी में रामानन्दी सम्प्रदाय की स्थापना की।
- – आमेर का पृथ्वीराज कछवाहा तथा उसकी रानी बालाबाई कृष्णदास जी के भक्त थे।
- – कृष्णदास जी के अन्य शिष्य अग्रदास ने सीकर जिले के रैवासा गांव में इस सम्प्रदाय की दूसरी पीठ की स्थापना की।
- – इस सम्प्रदाय के लोग भगवान राम की पूजा ‘रसिक नायक’ के रूप में करते हैं, इसलिए इस सम्प्रदाय को रसिक सम्प्रदाय भी कहते हैं।
- – सवाई जयसिंह के समय कृष्ण भट्ट ने ‘रामरासा’ नामक ग्रंथ लिखा था, जिसमें भगवान राम व सीता के प्रेम सम्बन्धों का वर्णन हैं।
निम्बार्क सम्प्रदाय ( हंस सम्प्रदाय सगुण )
- – आचार्य परशुराम ने सलेमाबाद (अजमेर) में इस सम्प्रदाय की मुख्य पीठ की स्थापना की।
- – इस सम्प्रदाय के लोग राधा को भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी मानते हैं।
- – राधाअष्टमी को मेला लगता हैं।
वल्लभ सम्प्रदाय (सगुण)
- – वल्लभ सम्प्रदाय के लोग श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करते हैं।
- – इनके मंदिर में कपड़े के पर्दे पर कृष्ण लीलाओं का अकंन किया जाता हैं, जिसे ‘पिछवाई’ कहते हैं।
- – राजस्थान में वल्लभ सम्प्रदाय के 41 मंदिर हैं। इनके मंदिरों को हवेली कहा जाता हैं।
- – मंदिरों में गाया जाने वाला संगीत हवेली संगीत कहलाता हैं। संगीत हवेली संगीत कहलाता हैं।
- – वल्लभ सम्प्रदाय को पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय भी कहते हैं।
- – इनके अन्य प्रमुख मंदिर
- – मथुरेश जी – कोटा
- – द्वारकाधीशजी – कांकरोली
- – श्रीनाथ मंदिर – सिहाड़ (नाथद्वारा)
- – गोकुलचन्द्र मंदिर – कामां (भरतपुर)
- – मदनमोहन मंदिर – कामां (भरतपुर)
हरिदासी सम्प्रदाय
- – इसकी स्थापना हरसिंह सांखला ने की थी।
- – इनका जनम नागौर के कापड़ोद गांव में हुआ था।
- – इन्होंने गाढ़ा गांव (नागौर) में समाधि ली थी।
- – ये डाकू से संत बने थे।
- – हरिदासी सम्प्रदाय को (निरंजनी सम्प्रदाय) भी कहते हैं।
- – हरिदास जी की प्रमुख पुस्तकें- मन्त्र राज प्रकाश, हरिपुरूष जी की वाणी।।
लालदासी सम्प्रदाय
- – लालदास जी का जन्म अलवर जिले के धोलीदूब गांव में हुआ था।
- – इनकी मुख्य पीठ भरतपुर के नगला जहाज में हैं।
- – ये मेव जाति के लकड़हारे थे।
- – प्रसिद्ध संत ‘गद्दन चिश्ती’ इनके गुरू थे।
- – मेवात क्षेत्र में इनका प्रभाव अधिक हैं।
संत धन्ना
- – टोंक जिले में धुवन गांव में एक जाट परिवार में इनका जन्म हुआ था।
- – धन्ना भी रामानंद जी के शिष्य थे।
- – इन्हें राजस्थान में भक्ति आंदोलन लाने का श्रेय जाता हैं।
- – बोरानाड़ा (जोधपुर) में इनका मंदिर बना हुआ हैं।
संत पीपा
- – वास्तविक नाम- प्रतापसिंह खीची
- – गागरोन के राजा थे।
- – रामानंद के शिष्य थे।
- – दर्जी समाज के प्रमुख देवता।
- – मुख्य मंदिर- समदड़ी (बाड़मेर)
- – टोड़ा (टोंक) में पीपा की गुफा हैं।
- – गागरौन में छत्री हैं।
संत मावजी
- – इनका जन्म डुंगरपुर जिले के सावला गांव में हुआ था।
- – इन्होंने ‘निष्कलकी सम्प्रदाय’ चलाया।
- – इनमें भगवान श्रीकृष्ण की निष्कलकी रूप में पूजा की जाती हैं।
- – इन्होंने बेणेश्वर धाम (डुंगरपुर) की स्थापना की।
- – इनके ग्रन्थ का नाम ‘चौपड़ा’ हैं, जिसमें तीसरे विश्व युद्ध की भविष्यवाणी की हुई हैं, (वागड़ी भाषा में लिखा।)
अलखिया सम्प्रदाय
- – इसकी स्थापना स्वामी लाल गिरी जी ने चूरू में की थी।
- – बीकानेर में इनकी प्रमुख पीठ हैं।
- – अलख स्तुति प्रकाश इनका प्रमुख ग्रन्थ हैं।
नवल सम्प्रदाय
– इसकी स्थापना नवल सागर ने नागौर के हर्षोलाव में की थी। इनका मुख्य ग्रन्थ्ञ नवलेश्वर अनुभव वाणी हैं।
बालनन्दा चार्य
- – ये औरंगजेब के समकालीन थे।
- – 52 मूर्तियों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया।
- – इन्होनें दुर्गादास राठौड़, राजसिंह व शत्रुशाल की सेना भेजकर सहायता की थी।
- – इन्हें लश्कर (सेना) संत भी कहते हैं।
- – मुख्य पीठ- लोहार्गल (झुन्झुनूं)
राजाराम
- – पटेल जाति के लोग इनमें विशेष आस्था रखते हैं।
- – मुख्य पीठ- शिकारपुरा (जोधपुर)
- – पर्यावरण सरंक्षण को बढ़ावा दिया।
रामस्नेही सम्प्रदाय
– रामस्नेही संप्रदाय की राजस्थान में प्रमुख चार पीठ
(1) शाहपुरा- (भीलवाड़ा)
- – स्थापना रामचरण जी ने की थी।
- – रामचरण जी के उपदेश ‘अणभैवाणी’ नामक ग्रंथ में संकलित हैं।
- – शाहपुरा में होली के दूसरे दिन ‘फूलडोल का मेला’ भरता हैं।
(2) रैण (नागौर)
- – इस पीठ की स्थापना दरियाव जी ने की थी।
(3) सीथल बीकानेर
- – इस पीठ की स्थापना हरिराम जी ने की थी।
- – ग्रंथ का नाम- निशानी इस ग्रंथ में यौगिक क्रियाओं का उल्लेख हैं।
(4) खेड़ापा (जोधपुर)
- – इस पीठ की स्थापना रामदास जी ने की थी।
- – ये हरिरामदास जी (सीथल) के शिष्य थे।
- – संत जैमलदास को सीथल व खेड़ापा शाखा का आदि-आचार्य कहा जाता हैं।
- – राम स्नेही सम्प्रदाय के लोग निर्गुण राम की पूजा करते हैं। (यहां राम से तात्पर्य दशरथ पुत्र राम से नहीं हैं।)
- – रामस्नेही सम्प्रदाय के मंदिरों को रामद्वारा कहते हैं।
- – रामस्नेही सम्प्रदाय के संत गुलाबी रंग की चादर पहनते हैं।
संत मीरा
- – मीरा का जन्म पाली जिले के कुड़की गांव में हुआ था।
- – पिता का नाम – रत्नसिंह
- – दादा का नाम – दूदा (जोधा का बसे छोटा बेटा)
- – मीरा की शादी मेवाड़ के राणा सांगा के पुत्र भोजराज से हुयी थी।
- अपने पति के मृत्यु के बाद मीरा मेवाड़ से वापस मेड़ता आ गयी थी, फिर वहां से वृंदावन चली गयी थी। फिर वृदांवन से द्वारिका चली गयी थी।
- – ऐसा कहा जाता हैं कि मीरा द्वारिका के राणछोड़ मंदिर की मूर्ति में विलीन हो गयी।
- – मीरा सगुण श्रीकृष्ण की पति के रूप में पूजा करती थीं
- – मीरा ने रैदास (रामान न्द के शिष्य) को अपना गुरू बनाया, रैदास की छतरी चित्तौड़ में बनी हुई हैं।
- – रैदास के उपदेश ‘रैदास की परची’ नामक ग्रंथ में संकलित हैं।
- – मीरा की पुस्तके:- (1) गीत गोविन्द (2) रूक्मणि मंगल (3) सत्यभामा नू रूसणों
- – रतना खाती के सहयोग से नरसी जी रो मायरो नामक पुस्तक लिखी।
- – महात्मा गांधी मीरा को अन्याय के विरूद्ध संघर्ष करने वाली सत्याग्रही महिला के रूप में देखते थे।
- मीरा को राजस्थान की राधा कहते हैं।
भक्त कवि दुर्लभ
- – प्रमुख प्रभाव क्षेत्र वागड़ रहा हैं।
- – भक्त कवि दुर्लभ को ‘वागड़ का नृसिंह’ कहते हैं।
नरहडपी
- – वास्तविक नाम- हजरत शक्कर बाबा।
- – सलीम चिश्ती ‘जिसके आशीर्वाद से जहांगीर पैदा हुआ था’ नरहड़ पीर के शिष्य थे।
- – कृष्ण जन्माष्टमी के दिन इनका उर्स लगता हैं।
- – साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए जाने जाते हैं।
- – इन्हें ‘बागड़ का धणी’ कहते हैं
- – डूंगरपुर के राजा शिवसिंह ने इनके लिए बालमुकुन्द मंदिर बनवाया था।
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