भारत की न्यायपालिका – Judiciary Of India
न्यायाधीश | कार्यकाल |
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1. हीरालाल जे. कानिया | 26-01-1950 से 06-11-1951 |
2. एम. पतंजलि शास्त्री | 1951-1954 |
3. मेहर चन्द्र महाजन | 1954 |
4. बी. के. मुखर्जी | 1954-1956 |
5. एस. आर. दास | 1956-1959 |
6. भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा | 1959-1964 |
7. पी. वी. गजेन्द्र गणकर | 1964-1966 |
8. ए. के. सरकार | 1966 |
9. के. सुब्बाराव | 1966-1967 |
10. के. एन. वान्चू | 1967-1968 |
11. मोहम्मद हिदायतुल्ला | 1968-1970 |
12. जे. सी. साह | 1970-1971 |
13. एस. एम. सीकरी | 1971-1973 |
14. अजीत नाथ रे | 1973-1977 |
15. एम. एच. बेग | 1977-1978 |
16. वाई. वी. चन्द्रचूड़ | 1978-1985 |
17. पी. एन. भगवती | 1985-1986 |
18. आर. एस. पाठक | 1986-1989 |
19. ई. एस. वेंकट रमन | 1989 |
20. सव्यसांची मुखर्जी | 1989-1990 |
21. रंगनाथ मिश्रा (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के प्रथम अध्यक्ष) | 1990-1991 |
22. के. एन. सिंह | 1991 |
23. एम. एच. कानिया | 1991-1992 |
24. ललित मोहन शर्मा | 1992-1993 |
25. एम. एन. वेंकट चलैया | 1993-1994 |
26. ए. एम. अहमदी | 1994-1997 |
27. जगदीश प्रसाद वर्मा | 1997-1998 |
28. मदन मोहन पुंछी | 1998 |
29. आदर्श सेन आनन्द | 1998-2001 |
30. एस. पी. भरूचा | 2001-2002 |
31. वी. एन. कृपाल | 6 मई, 2002 से 7 नवम्बर 2002 |
32. गोपाल बल्लभ पटनायक | 8 नवम्बर, 2002 से दिस. 2010 |
33. वी. एन. खरे | 2002-2004 |
34. एस. आर. बाबू. | 2004 |
35. आर. सी. लाहोटी | 2004-2005 |
36. यो. कु. सभरवाल | 2005-2007 |
37. के. जी. बालाकृष्णन | 2007-2010 |
38. एस. एच. कपाड़िया | 2010-2012 |
39. अल्तमस कबीर | 2012-18 जुलाई 2013 |
40 पी सतशिवम | 19 जुलाई 2013-26 अप्रैल 2014 |
41 राजेन्द्र मल लोढ़ा | 26 अप्रैल 2014-27 सितम्बर 2014 |
42 एच एल दत्तु | 28 सितम्बर 2014-2 दिसम्बर 2015 |
43 टी एस ठाकुर | 3 दिसम्बर 2015-3 जनवरी 2017 |
44 जगदीश सिंह खेहर | 4 जनवरी 2017-27 अगस्त 2017 |
45 दीपक मिश्रा | 28 अगस्त 2017-2 अक्टूबर 2018 |
46 रंजन गोगोई | 3 अक्टूबर 2018-17 नवम्बर 2019 |
47 शरद अरविंद बोबडे | 18 नवम्बर 2019 से अब तक |
- यद्यपि भारत एक संघात्मक राज्य है तथापि यहाँ एकीकृत न्यायपालिका को अपनाया गया है।
- जबकि भारत में सघात्मक व्यवस्था के अनुरुप केन्द्र और राज्य के लिए अलग-अलग कार्यपालिका और विधानमण्डल हैं और संविधान में उनकी शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है, लेकिन न्यायपालिका के विषय में इस तरह का विभाजन नहीं किया गया है।
- भारत में अमरीका आदि देशों की भाँति केन्द्र और राज्यों के लिए अलग-अलग न्यायालय नहीं हैं और ना ही विभिन्न न्यायालयों के बीच शक्तियों का बँटवारा किया गया है।
- भारतीय न्यायपालिका की संरचना एक पिरामिट की भाँति है जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय स्थित है। प्रत्येक ऊपरी न्यायालय अपने नीचे के न्यायालय पर नियंत्रण रखता है। अतः हमारी न्याय व्यवस्था एकात्मक है।
- संरचना के विषय में भारतीय न्यायपालिकाा ब्रिटिश न्यायपालिका के समान है, जबकि शक्तियों के विषय में यह संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यायपालिका के समान है।
- ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है तथा USA में संविधान।
उच्चतम न्यायालय – Supreme Court
- • संविधान के अनुच्छेद 124-147 में केन्द्रीय न्यायपालिका से संबंधित प्रावधान हैं।
- न्यायाधीशों की संख्या : • प्रारंभ में सर्वोच्च न्यायालय में 1 मुख्य न्यायाधीश तथा 7 अन्य न्यायाधीश थे। 1 + 7/
- 1985 में मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर अन्य न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 25 कर दी गई। 25 + 1
- वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में न्ययाधीशों की कुल संख्या 26 से बढ़ाकर 31 कर दी गई है। 30 + 1
- सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में बढ़ोत्तरी या कमी करने की शक्ति केन्द्रीय संसद् में निहित है।
- यदि राष्ट्रपति उचित समझे तो सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीशों (Adhoc Judges) की नियुक्ति भी कर सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है। शपथ राष्ट्रपति दिलवाता है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति :
राष्ट्रपति द्वारा ये नियुक्तियाँ सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श के आधार पर की जाती हैं। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इस प्रसंग में राष्ट्रपति को परामर्श देने के पूर्व अनिवार्य रूप से ‘चार वरिष्ठम न्यायाधीशों के समूह’ से परामर्श प्राप्त करते हैं तथा न्यायाधीशों से प्राप्त परामर्श के आधार पर राष्ट्रपति को परामर्श देते हैं।
न्यायाधीशों की योग्यताएँ :
- वह भारत का नागरिक हो।
- वह किसी उच्च न्यायालय अथवा दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम-से-कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो अथवा किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो अथवा राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का उच्च
- कोटि का ज्ञाता हो।
कार्यकाल तथा महाभियोग
- साधारणत : सर्वोच्च न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर आसीन रह सकता है। इस अवस्था के पूर्व वह स्वयं त्यागपत्र दे सकता है।
- इसके अतिरिक्त सिद्ध कदाचार अथवा असमर्थता के आधार पर संसद के द्वारा न्यायाधीश को उसके पद से हटाया जा सकता है। वी. रामस्वामी पर 1992 में महाभियोग नहीं पारित हो सका था। सौमित्रसेन (कलकत्ता हाईकोर्ट) पर 7 नवम्बर, 2010 को महाभियोग प्रस्ताव आया। पी. वी. दिनकरन (सिक्किम हाईकोर्ट) पर 2011 में महाभियोग प्रस्ताव आया।
वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाएँ
वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 1,00,000 रुपये प्रति माह व अन्य न्यायाधीशों को 90,000 रुपये प्रति माह वेतन प्राप्त होता है। न्यायाधीशों के लिए पेंशन व सेवानिवृत्ति वेतन की व्यवस्था भी है। उन्हें वेतन व भत्ते भारत की संचित निधि से दिये जाते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार
प्रारम्भिक एकमेव क्षेत्राधिकार : इसका आशय उन विवादों | से है, जिनकी सुनवाई केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा |ही की जा सकती है। इसके अन्तर्गत निम्न विषय आते हैं
- (i) भारत सरकार तथा एक या एक सह अधिक राज्यों के बीच विवाद
- (ii) भारत सरकार, संघ का कोई राज्य या राज्यों तथा एक या अधिक राज्यों के बीच विवाद
- (iii) दो या दो से अधिक राज्यों के बीच संवैधानिक विषयों के सम्बन्ध में उत्पन्न कोई विवाद।
अपीलीय क्षेत्राधिकार
सर्वोच्च न्यायालय भारत का अंतिम अपीलीय न्यायालय है। उसे समस्त राज्यों के उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनने का अधिकार है।
- अपील के लिए विशेष आज्ञा देने का अधिकार पुनर्विचार सम्बन्धी क्षेत्राधिकार
- परामा सम्बन्धी क्षेत्राधिकार
- अभिलेख न्यायालय
- मौलिक अधिकारों का रक्षक
- न्यायिक क्षेत्र का प्रशासन
समीक्षा की शक्ति
- अनुच्छेद 137 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय को अपने निर्णयों की समीक्षा की शक्ति प्राप्त है।
- उच्चतम न्यायालय अपने ही निर्णय अथवा आदेश पर पुनर्विचार कर सकता है।
अभिलेख न्यायालय
- संविधान के अनुच्छेद 129 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय को अभिलेख न्यायालय घोषित किया गया है।
- अभिलेख न्यायालय का तात्पर्य ऐसे न्यायालय से होता है जिसके निर्णय और कार्यवाहियाँ लिखी जाती हैं। भविष्य में इन्हें किसी भी न्यायालय के साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। इन्हें चुनौती नहीं दी जा सकती है और न ही इसकी वैधता पर प्रश्न चिन्ह लगाया जा सकता है।
उच्च न्यायालय न्यायाधीशों की नियुक्ति
- प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक प्रमुख न्यायाधीश व कुछ
- अन्य न्यायाधीश होते हैं जिनकी संख्या निश्चित करने का अधिकार राष्ट्रपति को है।
- मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश और उस राज्य के राज्यपाल के परामर्श से होती है तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में सम्बन्धित राज्य के मुख्य न्यायाधीश का भी परामर्श लेना होता है।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति व स्थानान्तरण के सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समूह की सर्वसम्मत राय के आधार पर ही राष्ट्रपति को परामर्श देंगे।
इस समय भारत में कुल 21 उच्च न्यायालय हैं।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को शपथ राज्यपाल दिलवाता है।
विशिष्ट उच्च न्यायालय
देश में कुल 6 उच्च न्यायालय ऐसे हैं जिनका क्षेत्राधिकार एक से अधिक राज्यों तक विस्तृत है
- 1. कलकत्ता उच्च न्यायालय (1862 ई.) : पश्चिम बंगाल, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह ।
- 2. बम्बई उच्च न्यायालय (1862 ई.) : महाराष्ट्र, गोवा, दमन और द्वीव, दादरा और नागर हवेली।
- 3. मद्रास उच्च न्यायालय (1862 ई.): तमिलनाडु और पांडिचेरी।
- 4. केरल उच्च न्यायालय (1958 ई.) : केरल और लक्षद्वीप समूह।
- 5. पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (1975 ई.) : पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़।
- 6. गोहाटी उच्च न्यायालय (1948 ई.) : असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, नागालैण्ड और अरुणाचल प्रदेश।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय (1866 ई.) : मुख्य पीठ इलाहाबाद और खण्डपीठ लखनऊ।
- आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय (1954 ई.) : मुख्य पीठ हैदराबाद।
- गुजरात उच्च न्यायालय (1960 ई.) : मुख्य पीठ अहमदाबाद।
- हिमांचल प्रदेश उच्च न्यायालय (1971 ई.) : मुख्य पीठ शिमला।
- कर्नाटक उच्च न्यायालय (1884 ई.) : मुख्य पीठ बंगलौर।
- मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (1956 ई.) : मुख्य पीठ जबलपुर और खण्डपीठ ग्वालियर तथा इन्दौर में।
- उड़ीसा उच्च न्यायालय (1948 ई.) : मुख्य पीठ कटक ।
- पटना उच्च न्यायालय (1916 ई.) : मुख्य पीठ पटना।
- राजस्थान उच्च न्यायालय (1949 ई.) : मुख्य पीठ जोधपुर और खण्डपीठ जयपुर।
- जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय (1928 ई.) : मुख्य पीठ श्रीनगर और खण्डपीठ जम्मू ।
- दिल्ली उच्च न्यायालय (1966 ई.) : मुख्य पीठ दिल्ली।
- सिक्किम उच्च न्यायालय (1975 ई.) : मुख्य पीठ गंगटोक ।
न्यायाधीशों की योग्यताएँ
- वह भारत का नागरिक हो।
- वह कम-से-कम 10 वर्ष तक भारत के किसी क्षेत्र में न्याय सम्बन्धी पद पर कार्य कर चुका हो अथवा एक से अधिक उच्च न्यायालयों में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो।
वेतन एवं भत्ते
वर्तमान में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 90,000 रुपए प्रति माह तथा अन्य न्यायाधीशों को 80,000 रुपए प्रति माह वेतन प्राप्त होता है। यह वेतन राज्य की संचित निधि से मिलता है किन्तु उन्हें पेंशन भारत की संचित निधि से मिलता है।न्यायाधीशों के लिए पेंशन व सेवानिवृत्ति वेतन की व्यवस्था भी की गई है।
कार्यकाल
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल 62 वर्ष की आयु तक निश्चित किया गया है परन्तु इससे पूर्व वह स्वयं पद का त्याग कर सकता है।
- न्यायधीश को महाभियोग द्वारा पद से हटाया जा सकता है।
न्यायाधीशों पर प्रतिबन्ध
- संविधान के अनुच्छेद 220 के अनुसार उच्च न्यायालय का कोई स्थायी न्यायाधीश पदनिवृत्ति के बाद उसी उच्च न्यायालय या उस उच्च न्यायालय के किसी अधीनस्थ न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता है।
- किन्तु वह अन्य उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता है।
उच्च न्यायालय की शक्तियाँ तथा अधिकार क्षेत्र
- (1) प्रारम्भिक अधिकार क्षेत्र,
- (2) अपीलीय क्षेत्राधिकार,
- (3) लेख जारी करने का अधिकार,
- (4) न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति,
- (5) अभिलेख न्यायालय के रूप में
- (6) प्रशासनिक शक्तियाँ,
- (7) संविधान के रक्षक के रूप में कार्य।
अधीनस्थ न्यायालय
- उच्च न्यायालय के अधीनस्थ जिला स्तर के न्यायालय होते हैं। भारत के प्रत्येक जिले में तीन प्रकार के अधीनस्थ न्यायालय होते हैं(1) दीवानी न्यायालय, (2) फौजदारी न्यायालय और (3) राजस्व न्यायालय।
- न्यायिक प्रशासन के लिए राज्यों को विभिन्न जिलों में बाँटा गया है।
- उन्हीं व्यक्तियों को जिला न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया जा सकता है जो कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो अथवा संघ सरकार अथवा राज्य सरकार की सेवा में अधिकारी के रूप में कार्य कर चुका हो।
- जिला न्यायाधीश को दीवानी और फौजदारी दोनों मामलों में अधिकारिता प्राप्त होती है।
- जिला न्यायाधीश जब दीवानी मामलों पर सुनवाई करता है तो उसे जिला न्यायाधीश और जब फौजदारी मामलों में सुनवाई करता है तो उसे सत्र न्यायाधीश कहा जाता है।
- जिला न्यायाधीश के अंतर्गत विभिन्न स्तरों के अन्य अनेक न्यायिक अधिकारी होते हैं जैसे- उपन्यायाधीश, मंसिफ मजिस्ट्रेट, द्वितीय श्रेणी विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट इत्यादि। |
- जिला न्यायाधीश के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति | राज्यपाल द्वारा उच्च न्यायालय तथा राज्य लोक सेवा आयोग | के परामर्श पर किया जाता है।