मूल अधिकार कितने हैं | How Much Are Fundamental Rights
- भारतीय संविधान Indian Constitution के भाग-III तथा अनुच्छेद-12 से 35 तक में मूल अधिकारों का वर्णन किया गया है।
- भारत में मूल अधिकार Fundamental Right की सर्वप्रथम मांग स्वराज विधेयक 1895 में की गई थी। 1925 में ऐनी बेसेन्ट ने कामन वेल्थ ऑफ इण्डिया बिल के माध्यम से तथा 1928 में मोती लाल नेहरू ने नेहरू रिपोर्ट के माध्यम से इसकी मांग की। 1931 में करांची कांग्रेस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखित मूल अधिकार Fundamental Right प्रस्ताव स्वीकार किया गया। 1945 में भारत के संविधान Indian Constitution के संबंध में सर तेज बहादुर सप्रू द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया था कि भारतीय संविधान में मूल अधिकारों Fundamental Right को शामिल किया जाना चाहिए।
- संविधान के भाग-III द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार Fundamental Right राज्य के विरुद्ध दिये गये हैं न कि सामान्य व्यक्तियों के विरुद्ध । व्यक्तियों के अनुचित कृत्यों के विरुद्ध साधारण विधि में उपचार उपलब्ध होते हैं।
- अनुच्छेद 13(2) के अनुसार राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बना सकता, जो मूल अधिकारों Fundamental Right को कम करती हो या छीनती हो। यदि राज्य ऐसी कोई विधि बनाता है तो वह उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी। किसी भी विधि, उपविधि अथवा कार्यकारिणी के आदेश द्वारा यदि मूलाधिकारों का अतिक्रमण होता है तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
- अनुच्छेद-13 उच्चतम न्यायालय को मूल अधिकारों Fundamental Right का प्रहरी बना देता है। उच्चतम न्यायालय न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के अंतर्गत ऐसी विधियों को असंवैधानिक घोषित कर सकता है, जो मूल अधिकारों का उल्लंघन करती हों।
- शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ (1951) और सज्जन सिंह बनाम राजस्थान सरकार (1964) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि अनुच्छेद 368 में विहित प्रक्रिया का उपयोग कर संसद द्वारा मूल अधिकारों में भी संशोधन किया जा सकता है।
- परंतु गोलक नाथ बनाम पंजाब राज्य (1967) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने उक्त निर्ण के विरुद्ध 6 : 5 के बहुमत से यह यि दिया कि अनुच्छेद 368स के अधीन संसद को मूलाधिकारों में संशोधन की शक्ति प्राप्त नहीं है।
- केशवानंद भारतीय केरल राज्य (1973) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने पुन: यह स्थापित किया कि संसद को मूलाधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में
- संशोधन करने की शक्ति प्राप्त है। परंतु ऐसा कोई संशोधन नहीं होगा, जिससे संविधान के मौलिक ढाँचे को आघात पहुँचता हो। उच्चतम न्यायालय ने बाद के अन्य कई मामलों में भी यही मत व्यक्त किया है।
- भारतीय संविधान Indian Constitution में नागरिकों को छह प्रकार के मौलिक अधिकार प्रदान किये गए हैं।
- संविधान के भाग-III के मूल अधिकारों की एक सामान्य विशेषता यह है कि वे राज्य के विरुद्ध व्यक्ति को प्रदान किये गए हैं, लेकिन कुछ अधिकार न केवल राज्यों के विरुद्ध बल्कि प्राइवेट व्यक्तियों के विरुद्ध भी प्राप्त हैं। उदाहरण के लिए सार्वजनिक स्थलों के उपयोग के बारे में भेदभाव का प्रतिपेध (अनुच्छेद 15(2)), अस्पृश्यता का प्रतिषेध (अनुच्छेद 17) विदेशी उपाधि स्वीकार करने का परिषेध (अनुच्छेद 18(3)(4)), मानव के दुर्व्यापार का प्रतिषेध (अनुच्छेद 23) खतरनाक कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध (अनुच्छेद-24)।
- कुछ मूल अधिकार केवल नागरिकों को दिये गए हैं, विदेशियों को नहीं। उदाहरण के लिए- धर्म मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का प्रतिपेध (अनुच्छेद 15), लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानत (अनुच्छेद 16), भाषण व अभिव्यक्ति, सम्मेलन संगम, आवागमन, निवास और पेशे की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19), 29 और 30।
- कुछ मूल अधिकार सभी व्यक्तियों को प्राप्त हैं, चाहे वे विदेशी हों या भारतीय नागरिक । उदाहरण के लिएविधि के समक्ष समानता तथा विधियों का समान संरक्षण (अनुच्छेद 14), अपराधों के लिए दोषसिद्ध के संबंध में संरक्षण (अनुच्छेद 22) धर्म की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25-28)।
समता का अधिकार (अनु. 14-18) | स्वतंत्रता अधिकार (अनु. 19-22) | शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनु. 23-24) | धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार (अनु. 25-28) | संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (अनु. 29-30) | सांविधानिक उपचारों का अधिकार (32-35) |
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1. विधि के समक्ष समता और विधि का समान संरक्षण (अनु. 14) 2. धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध (अनु. 15) 3. लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता (अनु. 16) 4. अस्पृश्यता का अन्त (अनु. 17) 5. उपाधियों का अन्त (अनुच्छेद 18) | 1. वाक स्वातन्त्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण (अनु. 19) 2. अपराधों के लिए दोषसिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण (अनु. 20) 3. प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण (अनु. 21) 4. कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण (अनु. 22) | 1. मानव के दुर्व्यापार और बलात् श्रम का प्रतिषेध (अनु. 23) 2. कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध (अनु. 24) | 1. अंतःकरण की | और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतन्त्रता (अनु. 25) | 2. धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध की स्वतन्त्रता (अनु. 26) | 3. किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि | के लिए करों के | बारे में संदाय की | स्वतन्त्रता (अनु. 27) 4. कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थिति होने के बारे में स्वतन्त्रता (अनु. 28) | 1. अलपसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण (अनु. 29) 2. शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार (अनु. 30) | 1. मूल अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार (अनु. 32) 2 मलाधिकारों में उपांतरण (संशोधन) करने की संसद की शक्ति (अनु. 33) 3. सैनिक कानून वाले क्षेत्रों में मूलाधिकारों पर प्रतिबंधन (अनु.34) 4. मूल अधिकारों सम्बन्धी उपबन्धों को प्रभावी करने हेतु प्रावधान (अनु. 35) |
समानता का अधिकार – right to equality
- समानता का अधिकार पहला मौलिक अधिकार है, जिसका वर्णन अनुच्छेद 14 से 18 तक में किया गया है।
- अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समता और विधि का समान संरक्षण का अधिकार- इसमें पहली पदावली ब्रिटेन से ली गयी है जिसका अर्थ है कि कानून के सामने सभी व्यक्ति बराबर हैं। दूसरी पदावली अमेरिका से ली गयी जिसका अर्थ है कि समान परिस्थितियों में पाये जाने पर कानून सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करेगा।
- अनुच्छेद 15 राज्य को यह आदेश देता है कि वह किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, मूलवंश, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव न करे ।
- अनुच्छेद 15 के अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही प्रदान किये गये हैं। विदेशियों को नहीं।
- अनुच्छेद 15 का खण्ड-2 सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव का निषेध करता है।
- अनुच्छेद 15 का खण्ड 3 राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए विशेष प्रावधान करने की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 15 का खण्ड 4 प्रथम संवैधानिक संशोधन द्वारा जोड़ा गया। इसमें राज्य द्वारा सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का उन्नति के लिए विशेष उपबंध करने की शक्ति प्रदान की गयी है। सरकारी सेवाओं में आरक्षण का प्रावधान अनुच्छेद 15(4) के आधार पर ही किया गया है।
- इस प्रकार अनुच्छेद 15 के खण्ड 3 और अनुच्छेद 15(1) और (2) के सामान्य नियम के अपवाद हैं।
- अनुच्छेद 16 लोक सेवाओं में अवसर की समानता का अधिकार देता है। अनुच्छेद 16 के खण्ड 2 में कहा गया है कि राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान, उद्भव,निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो किसी नागरिक को अपात्र माना जाएगा और न कोई विभेद किया जाएगा।
- अनुच्छेद 16(4) के अनुसार राज्य पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, नियुक्तियों या पदों लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है। इस प्रकार का उपबंध तभी किया जा सकता है जब वर्ग पिछड़ा हो और उसका राज्यधीन पदों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व न हुआ हो।
- अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का अंत करता है और उसका किसी भी रूप में आचरण को निषिद्ध करता है। अस्पृश्यता से उत्पन्न किसी अयोग्यता को लागू करना दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है।
- सरकार ने 1955 में अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम पारित किया बाद में इसे 1976 में संशोधित करके सिविल (नागरिक) अधिकार संरक्षण अधिनियम 1976 पारित किया जो आज प्रवृत्त है।
- अनुच्छेद 18 उपधियों का अंत- 1. राज्य सेना सम्बन्धी या शिक्षा सम्बन्धी सम्मान के सिवाय और कोई उपाय नहीं प्रदान करेगा। 2. भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा किन्तु यदि वह उपाधि स्वीकार करता है तो उसे राष्ट्रपति से पूर्व अनुमति लेनी होगी।
- भारत सरकार ने 1954 से भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री जैसे पुरस्कार देना शुरू किया था किन्तु 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने इन उपाधियों का अन्त कर दिया। अन्त में 1980 में कांग्रेस की सरकार ने इन्हें पुनः देना शुरू किया।
स्वतंत्रता का अधिकार – right to freedom
- स्वतंत्रता के अधिकार का वर्णन अनुच्छेद 19-22 तक किया गया है।
- अनुच्छेद 19 भारत के नागरिकों को 6 बुनियादी स्वतंत्रताओं की गारंटी देता है। ये निम्नलिखित हैं
- 1. विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- 2. बिना हथियारों के शांतिपूर्ण सम्मेलन की स्वतंत्रता
- 3. संघ बनाने की स्वतंत्रता
- 4. भारत के राज्यक्षेत्र में स्वतंत्र भ्रमण की स्वतंत्रता
- 5. भारत के किसी भी भाग में निवास करने तथा बस जाने की स्वतंत्रता
- 6. वृत्ति, आजीविका, व्यापार या कारोबार की स्वतंत्रता उपर्युक्त स्वतंत्रतायें राज्य के विरुद्ध सभी नागरिकों को प्राप्त हैं, लेकिन ये कोई आत्यंतिक या असीमित अधिकार नहीं है।
- विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतंत्रता तथा समाचारों को जानने का अधिकार भी सम्मिलित है।
- अनुच्छेद 20 में सभी व्यक्तियों को चाहे वे विदेशी हों या भारतीय नागरिक यह अधिकार देता है कि- 1) जब तक उसने किसी कानून की अवहेलना करके कोई अपराध न किया हो, उसे दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता या जिस समय किसी व्यक्ति ने कोई अपराध किया उस समय उस अपराध के लिए जितने दण्ड की संभावना थी उस व्यक्ति को उससे अधिक दण्ड नहीं दिया जा सकता। 2) किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार दण्ड नहीं दिया जा सकता और 3) किसी व्यक्ति को अपने ही विरुद्ध गवाही देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के संबंध में उपबंध करता है।
- अनुच्छेद 21 गारंटी देता है कि किसी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके प्राण और दैहिक स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है अन्यथा नहीं।
- प्राण और दैहिक स्वतंत्रता केवल शारीरिक अस्तित्व तक ही सीमित नहीं है वरन् इसमें मानवीय गरिमा के साथ जीवित रहने का अधिकार भी सम्मिलित है। अनुच्छेद 21(क) 86वाँ संविधान संशोधन (2002 ई.) द्वारा जोड़ा गया है जो शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित करता है और प्रत्येक राज्य का यह कर्त्तव्य होगा कि वह 6-14 वर्ष के बालकों को अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराये।
- अनुच्छेद 22 व्यक्ति को गिरफ्तारी तथा निरोध से संरक्षण प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 22 यह प्रावधान करता है कि जो व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है, उसे गिरफ्तारी के कारणों से अवगत कराना आवश्यक है। प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को अधिवक्ता के माध्यम से अपनी सफाई पेश करने का अधिकार दिया गया है तथा प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित करना आवश्यक है।
- अनुच्छेद 22 के खण्ड (3) से (7) तक मं निवारक निरोध से संबंधित प्रावधान किया गया है।
- अनुच्छेद 22 संसद को निवारक निरोध से संबंधित कानून बनाने का अधिकार देता है।
- निवारक निरोध के अंतर्गत गिरफ्तार व्यक्ति को अधिकतम तीन माह के लिए निरोध में रखा जा सकता है।
- सर्वप्रथम 1950 में संसद ने निवारक निरोध अधिनियम पारित किया जिसे 1969 में प्रयास कर दिया गया। सन् 1971 में आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मीसा) पारित किया गया, जिसे 1977 में जनता सरकार ने निरस्त कर दिया। पुनः 1980 ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम पारित किया।
शोषण के विरुद्ध अधिकार – right against exploitation
- अनुच्छेद 23 मनुष्यों के क्रय-विक्रय, बेगार तथा इसी प्रकार के अन्य बलात् श्रम को प्रतिषिद्ध करता है तथा इसके उल्लंघन को दण्डनीय अपराध घोषित करता है।
- अनुच्छेद 23 न केवल राज्य के विरुद्ध वरन् प्राइवेट व्यक्तियों के विरुद्ध भी संरक्षा प्रदान करता है।
- लेकिन इसका एक अपवाद भी है। राज्य को सार्वजनिक हित के लिए अनिवार्य सेवा आरोपित करने का अधिकार दिया गया है। लेकिन ऐसी सेवा धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग के विभेद के बिना सभी पर समान रूप से आरोपित की जानी चाहिए।
- अनुच्छेद 24 यह उपबंध करता है कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखाने या खानों में किन्हीं अन्य खतरनाक कायों में नहीं लगाया जाएगा।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार – right to religious freedom
- भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य है। अतः संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 के अंतर्गत भारत के सभी व्यक्तियों को धर्म में विश्वास करने, धार्मिक कार्य करने व उका प्रचार करने का अधिकार प्रदान किया गया।
- अनुच्छेद 25 यह प्रावधान करता है कि सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार है। किन्तु धार्मिक स्वतंत्रता का यह अधिकार लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के आधार पर प्रतिबंधित किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 26 सभी धार्मिक सम्प्रदायों तथा उनकी शाखाओं को यह अधिकार देता है कि वे धार्मिक और मूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और उनका पोषण कर सकते हैं और उन्हें संपत्ति के स्वामित्व, अर्जन और प्रबंध का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 27 में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष धर्म की अभिवृद्धि या उसके पोषण में व्यय के लिए कोई कर अदा करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
- अनुच्छेद 28 यह प्रावधान करता है कि जो विद्यालय पूरी तरह सरकारी राजकोष में चलाए जाते हैं, उनमें किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी और जो विद्यालय सरकार से आंशिक वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं अथवा जो राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त हैं, उनमें विद्यार्थी या उसके संरक्षक की स्वीकृति के बिना दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
संस्कृति तथा शिक्षा संबंधी अधिकार – Right to Culture and Education
- भारत विभिन्न धर्मों, भाषाओं तथा संस्कृतियों का देश है। अतः संविधान में अल्पसंख्यक वर्गों की भाषा, लिपि और संस्कृति की सुरक्षा की व्यवस्था की गई है।
- अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण प्रत्येक अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को बनाए रखने के अधिकार को गारंटी देता है।
- अनुच्छेद 30 शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार। (1) सभी अल्पसंख्यक वर्गों को चाहे वे धर्म पर आधारित अल्पसंख्यक वर्ग हो, चाहे भाशा के आधार पर अल्पसंख्यक वर्ग हों, अपनी पसंद की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करने और उनके प्रबंध का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 30 के खण्ड (2) में यह प्रावधान किया गया है कि शिक्षा संस्थाओं को सहायता देते समय राज्य इस आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा कि कोई संस्था किसी विशेष धार्मिक या भाषायी अल्पसंख्यक वर्ग से संबंधित है।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार – right to constitutional remedies
- संविधान के भाग 3 के मौलिक अधिकारों की सार्थकता तभी होगी जब उन्हें लागू किया जा सके और उनके उल्लंघन की स्थिति में उपचार प्राप्त किया जा सके। हमारा संविधान न केवल कतिपय मूल अधिकारों की गारंटी देता है वरन् सरकार द्वारा नागरिकों के अधिकारों की अवहेलना के लिए किये गये कार्यों के विरुद्ध नागरिकों को उपचार प्राप्त करने का भी अधिकार देता है। नागरिक अपने अधिकारों के विरुद्ध सरकार के किसी भी कृत्य को न्यायालय में चुनौती दे सकते हैं।
- अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय को तथा अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों को मूल अधिकारों के उल्लंघन के विरुद्ध अभिलेख जारी करने की शक्तियाँ प्राप्त हैं।
- उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय मूल अधिकारों के उल्लंघन के विरुद्ध निम्नलिखित 5 प्रकार के अभिलेख जारी करता है (1) बंदी प्रत्यक्षीकरण, (2) परमादेश, (3) प्रतिषेध, (4) उत्प्रेरण और (5) अधिकार पृच्छा।
- बंदी प्रत्यक्षीकरण : यह रिट उस व्यक्ति के विरुद्ध जारी किया जाता है जो किसी अन्य व्यक्ति को निरोध में रखता है। इसमें गिरफ्तार करने वाले व्यक्ति को यह आदेश दिया जाता है कि 24 घंटे के अंदर वह उस व्यक्ति को दंडाधिकारी के समक्ष उपस्थित करे, जिसको उसने गिरफ्तार किया है। इसमें यात्रा की अवधि सम्मिलित नहीं होती है।
- परमादेश (लोकतंत्र का प्रहरी) : यह रिट न्यायालय द्वारा उस समय जारी की जाती है जब कोई प्राधीकारी या न्यायिक अधिकारी अपने कर्तव्यों में उपेक्षा बरते और न्यायालय रिट जारी करके उसे अपना कर्तव्य करने के लिए बाध्य करता है।
- प्रतिषेध : यह रिट अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी की जाती है इस रिट को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को अपनी अधिकारिता के बाहर कार्य करने से रोका जाता है।
- उत्प्रेषण : यह रिट भी अधीनस्थ न्यायालयों को जारी की जाती है। इस रिट को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास लम्बित मुकदमों के न्याय निर्णयन के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजें।
- इस प्रकार प्रतिषेध और उत्प्रेषण दोनों रिटों के अधिकार | एक से ही हैं। लेकिन प्रतिषेध रिट प्रारंभिक चरण में जारी की जाती है और उत्प्रेषण उत्तरवर्ती चरणों में।
- अधिकार पृच्छा : अधिकार पृच्छा द्वारा लोकपद पर बने किसी व्यक्ति से उसके पद पर बने रहने का औचित्य पूछा जाता है।
- केवल नागरिकों को प्राप्त मौलिक अधिकार :
- अनुच्छेद 15, 16, 19, 29, 30
- सभी को प्राप्त मौलिक अधिकार :
- अनुच्छेद 14, 20, 21, 23, 24, 25, 26, 27
- भाग III के बाहर उल्लिखित अधिकार :
- अनुच्छेद 300 क : संपत्ति का अधिकार (right to property)- विधि के प्राधिकार (authority of law) से ही किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
- अनुच्छेद 301 : व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता (freedom of trade, commerce & intercourse)- इस भाग के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते हुए भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र व्यापार, वाणिज्य और समागम अबाध होगा।
- अनुच्छेद 326 : वयस्क मताधिकार (adult suffrage)लोकसभा तथा प्रत्येक राज्य की विधान सभाओं के लिए निर्वाचन वयस्क मताधिकार (18 वर्ष) के आधार पर होंगे। (61वाँ संविधान संशोधन 1989 ई.)
संपत्ति का अधिकार – right to property
मूल संविधान के अनुच्छेद 19(1), 31, 31(A), 31(B) और 31(C) में संपत्ति के अधिकार और उस पर लगाई गई सीमाओं से संबंधित प्रावधान किए गए थे। किन्तु, 44वें संविधान संशोधन, 1978 के द्वारा संपत्ति के अधिकार को संविधान के भाग-12 में एक नया अनुच्छेद 300-A जोड़कर उसमें शामिल कर दिया गया।
अनुच्छेद 300-A के अनुसार, कानून के आदेश के बिना किसी को भी उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जायेगा। इस प्रकार, अब संपत्ति के अधिकार को अन्य मूल अधिकारों की भाँति संवैधानिक संरक्षण प्राप्त नहीं है, बल्कि इसे केवल एक कानूनी अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त
मौलिक अधिकार » Fundamental Rights Of Indian
- अनुच्छेद 12 : परिभाषा
- अनुच्छेद 13 : मूल अधिकारों के असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ
1. समता का अधिकार ( Right To Equality )
- अनुच्छेद 14 : विधि के समक्ष समता
- अनुच्छेद 15 : धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध
- अनुच्छेद 16 : लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता
- अनुच्छेद 17 : अस्पृश्यता का अंत
- अनुच्छेद 18 : उपधियों का अंत
2. स्वातंत्र्य अधिकार ( Right To Freedom )
- अनुच्छेद 19 : वाक्-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण
- अनुच्छेद 20 : अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
- अनुच्छेद 21 : प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण
- अनुच्छेद 22 : कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार ( Right Against Exploitation )
- अनुच्छेद 23 : मानव के दुर्व्यापार और वलात्श्रम का प्रतिषेध
- अनुच्छेद 24 : कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध
4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार ( Right To Freedom Of Religion )
- अनुच्छेद 25 : अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 26 : धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 27 : किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 28 : कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार ( Cultural And Educational Rights )
- अनुच्छेद 29 : अल्पसंख्यक-वर्गों के हितों का संरक्षण
- अनुच्छेद 30 : शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार
- अनुच्छेद 31 : (निरसित) कुछ विधियों की व्यावृत्ति (Saving Of Certain Laws)
- अनुच्छेद 31-क :संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों का व्यावृत्ति
- अनुच्छेद 31-ख :कुछ अधिनियमों औरविनियमों का विधिमान्यकरण
- अनुच्छेद 31-ग : कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति।
- अनुच्छेद 31-घ : (निरसित)
6. सांविधानिक उपचारों का अधिकार ( Right To Constitutional Remedies )
- अनुच्छेद 32 : इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार।
- अनुच्छेद 32-क :(निरसित)
- अनुच्छेद 33 : इस भाग द्वारा प्रदत्ता अधिकारों का बलों आदि को लागू होने में उपांतरण करने की संसद् की शक्ति।
- अनुच्छेद 34 : जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निर्बन्धन ।
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