मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar
मेवाड़ का इतिहास | History of Mewar
- गुहिल ने 566 ई. में मेवाड़ में गुहिल वंश की स्थापना की।
- मेवाड़ सूर्यवंशी हिन्दू शासकों का शासन था।
- विश्व का सबसे दीर्घकालीन वंश।
- यहां के शासकों को हिन्दुआ सुरज कहा जाता था।
- मेवाड़ के राजचिन्ह में एक पंक्ति लिखी हुयी हैं।
- ‘जो दृढ़ राखै धर्म को, तिहि राखै करतार।।’
बापा रावल – Bapa Rawal
वास्तविक नाम- कालभोज
- ये हारित ऋषि की गाये चराते थे।
- हारित ऋषि के आशीर्वाद से 734 ई. में राजा मान मौर्य से चित्तौड़ छीन लिया। और नागदा को अपनी जाधानी बनाया।
- यहां पर एकलिंग जी का मंदिर बनवाया। मेवाड़ के शासक स्वंय को एकलिंग नाथ (शिव) जी के दीवान मानते |
- मुद्रा प्रणाली शुरू की।
अल्लट – allot
- वास्तविक नाम – आलु रावल
- इसने ‘आहड़’ को दूसरा महत्वपूर्ण केन्द्र बनाया। आहड़ में वराह मंदिर बनवाया।
- हूण राजकुमारी हरियादेवी से शादी की।
- मेवाड़ राज्य में नौकरशाही की स्थापना की।
जैत्रसिंह ( Jaitra Singh ) – 1213-1250 ई.
- भूताला का युद्ध – सुल्तान इल्तुतमिश और जैत्रसिंह के मध्य जिसमें जैत्रसिंह विजयी रहा।
- इल्तुतमिश ने नागदा को तबाह कर दिया। इसलिए जैत्रसिंह ने चितौड़ को अपनी नयी राजधानी बनायी।
- जैत्रसिंह के समय को ‘मध्यकालीन मेवाड़ का स्वर्ण’ काल कहते हैं।
- भूताला युद्ध की जानकारी हमें ‘जयसिंह सूरी’ की पुस्तक ‘हम्मीर मद मर्दन’ से मिलती हैं।
रतनसिंह ( Ratan Singh ) – 1302 – 1303 ई.
- रतनसिंह का छोटा भाई कुम्भकरण नेपाल चला गया और नेपाल में ‘राणाशाही’ वंश की स्थापना की।
- रतनसिंह की रानी का नाम पदमिनी था, ये सिंहल देश के राजा गन्धर्व सेन और चम्पावती की पुत्री थी। राव चेतन नामक एक ब्राह्रण ने अलाउदीन खिलजी को पद्मिनी की सुन्दरता के बारें में बताया। अलाउदीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण के प्रमुख कारण निम्न थे।
- (a) अलाउदीन की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा
- (b) सुल्तान की प्रतिष्ठा का प्रश्न
- (c) चित्तौड़ का सामरिक तथा व्यापारिक महत्व
चित्तौड़ का पहला साका – 25 अगस्त 1303 ई. -(साका = केसरिया + जौहर )
- गोरा व बादल नामक दो सेनानायकों ने अद्भुत वीरता दिखायी।
- अलाउदीन ने किले पर अधिकार कर लिया।
- अलाउदीन ने किले का नाम खिज्राबाद कर दिया और उसे अपने बेटे को खिज्र खां को दे दिया।
- कालान्तर में चित्तौड़ का शासन मालदेव सोनगरा को सौंप दिया गया।
- मालदेव – जालौर के कान्हडदेव सोनगरा का भाई था।
- इस मालदेव को मुंछाला मालदेव के नाम से भी जाना जाता हैं।
- 1540 ई. में मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी पुस्तक ‘पद्मावत’ में पद्मिनी की सुन्दरता का वर्णन किया हैं। यपुस्तक ‘अवधी’ भाषा में लिखी हैं।
- ‘गोरा बादल री चौपाई’ नामक पुस्तक ‘हेमरत्न सूरी’ ने लिखी।
हम्मीर ( Hummir ) – 1326-1364 ई.
- हम्मीर ने मालदेव सोनगरा के बेटे ‘बनवीर सोनगरा’ से चित्तौड़ छीना। चूंकि यह सिसोदा गांव से आया इसलिए मेवाड़ के राजा अब सिसोदिया कहलाने लगें, मेवाड़ में ‘राणा शाखा’ की स्थापना हुयी।
- सिंगोली का युद्धः- हम्मीर V/s मुहम्मद बिन तुगलक
- कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में हम्मीर को विषम घाटी पंचानन (विकट युद्धों में शेर के समान) कहा गया हैं।
- रसिक प्रिया’ में हम्मीर को वीर राजा कहा गया हैं।
- चित्तौड़ के किले में ‘अन्नपूर्णा मंदिर’ (बरवड़ी माता) का निर्माण करवाया। बरवड़ी माता मेवाड़ के सिदिया वंश की ईष्ट देवी हैं। कुलदेवी बाण माता।
राणा लाखा – ( राणा लक्षसिंह ) 1382-1421 ई.।
- ‘जावर’ में चांदी की खान निकल गयी।
- एक बन्जारे ने ‘पिछोला झील’ का निर्माण करवाया।
- (नटनी का चबूतरा – पिछोला झील के पास हैं।)
- कुम्भा हाड़ा नकली बूंदी की रक्षा करते हुये मारा गया।
- राणा लाखा की शादी मारवाड़ के राव चूंडा की पुत्री हंसा बाई के साथ हई। इस अवसर पर लाखा के बेटे चूडां ने यह प्रतिज्ञा की मेवाड़ का अगला राणा वह न बनकर हसांबाई के पुत्र को बनाएगा।
- ऐसी प्रतिज्ञा के कारण चूडां को ‘मेवाड़ को भीष्म पितामह’ कहते हैं।
- इस बलिदान के बदले चूडां के वंशजो को (चूंडावत) हरावल में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हरावल- सेना का अगिम भाग ।
- सलूम्बर नामक सबसे बडा ठिकाणा इन्हें दिया गया।
- राजधानी में राणा की अनुपस्थिति में सलूम्बर का रावत शासन कार्य संभालता था।
- मेवाड़ के शासकों (राणा) का राजतिलक , सलूम्बर का रावत ही करता था।
मोकल – 1421-1433 ई.( हंसा बाई का बेटा )
- हंसा बाई के अविश्वास की वजह से चूडां मेवाड़ छोड़कर मालवा चला गया।
- अब मोकल का संरक्षक हंसा बाई का भाई रणमल बन गया।
- मोकल ने चित्तौड़ में ‘समिद्धेश्वर मंदिर’ का पुनः निर्माण करवाया।
- एकलिंग जी के मंदिर का परकोटा बनवाया।
- 1433ई. में जीलवाड़ा नामक स्थान पर चाचा, मेरा, महपा पंवार ने मोकल की हत्या कर दी।
5/5 - (1 vote)