राजस्थान की संस्कृति | राजस्थानी संस्कृति | culture of Rajasthan
राजस्थान की संस्कृति | राजस्थानी संस्कृति – भारत के सभी मुख्य त्योहारों जैसे दिवाली, होली, और जन्माष्टमी को राजस्थान में भी बड़े धूम धाम से मनाया जाता हैं। सभी राजस्थानी मेलों और त्योहारों में राज्य की पारंपरिक परिधान, लोक गीत, लोक नृत्य और विभिन्न आकर्षक प्रतियोगिताएं प्रमुखता से दिखाई जाती हैं।
विशेषकर अगर रेगिस्तानी त्यौहार जो राजस्थानी संस्कृति के लिए बहुत अहम् हैं जिसमे राजस्थानी संस्कृति की झलक देखने को मिल जाती है। त्योहार समाप्त होने के बाद राजस्थान में कई पारंपरिक मेलों का आयोजन किया जाता है। राज्य के त्योहार पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं और बड़ी संख्या में देसी और विदेशी पर्यटक यहाँ की संस्कृति को जानने आते है |
जडूला :- जातकर्म (बच्चों के बाल उत्रवाना)
बरी पड़ला :- वर पक्ष के लोगों द्वारा वधू पक्ष के लोगों के लिए लेकर जाने वाले उपहार।
सामेला ( मधुर्पक ) :- शादी पर वधु पक्ष द्वारा वर पक्ष की अगुवानी करना।
मोड़ बाँधना – वर को बारात में चढ़ाते समय मांगलिक कार्य।
नांगल – नये घर का उद्घाटन
कांकनडोरा – वर को शादी पूर्व बांधे जाने वाला डोरा।
पहरावणी । रंगवरी । समठुनी – शादी के बाद वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिये जाने वाले उपहार।
बढ़ार:- शादी के समय का प्रीतिभोज।
गौना । मुकलावा – वाल विवाह होने पर बाद में लड़की की पहली विदाई।
छूछक/जामणा – नवजात के जन्म दर, ननिहाल पक्ष की ओर से दिये जाने वाले आभूषण।
रियाण – किसी अवसर पर अमल (अफीम) की मनुहार।
बैकुण्ठी/चंदोल – शव यात्रा।
अघेटा – शमशान ले जाते समय रास्ते में अर्थी की दिशा बदलना।
पगड़ी – घर में मुखिया की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी चुना जाना।
सांतरवाडा – मृत्यु के बाद दी जाने वाली सांत्वना।
फूल चुगना – मृत्यु पश्चात् अस्थि एकत्रित करना।