अलवर रियासत का इतिहास – History Of Alwar
यहां कछवाहा वंश की ‘नरूका शाखा’ का शासन था।
मिर्जा राजा जयसिंह ने कल्याणसिंह को माचेड़ी की जागीर दी।
1774 ई. में बादशाह शाह आलम ने प्रतापसिंह को स्वतंत्र रियासत दे दी।
1775 ई. में प्रतापसिंह ने भरतपुर से अलवर को छीनकर इसे अपनी राजधानी बनाया।
विनयसिंह
विनयसिंह ने अपनी माता ‘मूसी महारानी’ की याद में अलवर में 80 खम्भों की छतरी बनवायी। यह 2 मंजिला छतरी हैं, जिसकी दूसरी मंजिल पर रामायण व महाभारत के चित्र बनाए गए हैं
विनयसिंह की रानी का नाम ‘शीला’ था। इसने अपनी रानी के नाम पर सिलीसेढ़ झील बनवायी।
सिलीसेढ़ झील को ‘राजस्थान का नन्दनकानन’ कहते हैं।
जयसिंह
नरेन्द्र मंडल का नामकरण ‘जयसिंह’ ने किया था।
प्रथम गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया।
अलवर में हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया।
‘डयूक ऑफ एडिनबर्ग’ के अलवर आगमन पर सरिस्का पैलेस का निर्माण करवाया।
10 दिसम्बर 1903 को बालविवाह व अनमेल विवाह पर रोक लगा दी।
तिजारा दंगो के बाद जयसिंह को हटा दिया गया, जयसिंह पेरिस चला गया व वहीं उसकी मृत्यु हो गयी।
तेजसिंह
आजादी के समय अलवर का शासक महात्मा गांधी की हत्या में इनकी संदिग्ध भूमिका थी, पर बाद में न्यायपालिका ने इन्हें क्लीन चिट दे दी।