Raja Harishchandra Story » राजा हरिश्चंद्र की कथा
Raja Harishchandra Story » राजा हरिश्चंद्र की कथा विश्व के सुप्रसिद्ध दानवीर राजा कहलाए राजा हरिश्चंद्र की कथा ( raja harishchandra ki kahani ) हम आपको बताने जा रहे है इससे सम्बंधित राजा हरिश्चंद्र की कथा ( raja harishchandra ki kahani ) का एक वीडियो भी निचे दिया गया है आप उस के द्वारा भी राजा हरिश्चंद्र की कहानी ( raja harishchandra ki kahani ) सुन सकते है
र्चा कर रहे थे की पूरी दुनिया में सबसे सत्यनिष्ठ व दानवीर राजा कौन है तभी गुरु वशिष्ठ ने राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) का नाम लिया |
तभी विश्वा मित्र ने कहा की आचार्य में नजर में पृथ्वी पर सबसे बड़ा दानवीर होना अब संभव नहीं है मूक भाषा में सभी देवता ने भी हामी भरी किन्तु आचार्य वशिष्ठ ने कहा यही सत्य है अगर कोई भी चाहे तो राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) की परीक्षा ले सकता है तभी विश्वा मित्र ने राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) की परीक्षा लेने की सोची |
विश्वा मित्र राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) से एक तपस्वी के रुप में जंगल में मिले राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) ने उन्हें प्रणाम किया और कहा की ऋषिवर में राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) आपकी क्या सेवा कर सकता हु
तभी विश्व मित्र ने कहा की राजन में एक यज्ञ की तैयारी कर रहा हु मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता होगी राजन तभी राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) ने वचन दिया ऋषिवर मेरे राजमहल के द्वार सदैव आपके लिए खुले है आप अवश्य पधारे यह कह कर राजा अपने महल को लोट गया
कुछ समय पश्चात विश्वा मित्र राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) के महल पहुंचे और राजा को अपना वचन याद दिलाया |
राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) ने कहा ऋषिवर आज्ञा करे
गुरु विश्वा मित्र ने कहा राजन मुझे आपका पूरा राज्य, धन, ऎश्वर्य चाहिए
सभी महल के पदाधिकारी सोचने लगे यह मांग पूरी करना सम्भव नहीं है तभी राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) ने कहा ऋषिवर में आपको अपनी पूरी संपत्ति, राज्य सोपता हु
तभी विश्वा मित्र ने कहा राजन में तुम्हारे दान कर्म से अत्यधिक प्र्शन हु किन्तु शास्त्रों के अनुसार दान धर्म के पश्चात दक्षिणा देनी आवश्यक है
राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) ने कहा अवश्य ऋषिवर आप को क्या दक्षिणा चाहिए महर्षि विश्वा मित्र ने कहा मुझे 1100 स्वर्ण मुद्रा तभी राजा ने अपने खजाना मंत्री को आदेश दिया ऋषिवर को तत्काल 1100 स्वर्ण मुद्रा को दक्षिणा स्वरुप दिया जाए |
विश्वा मित्र ने कहा की राजन आप अपनी सम्पति मुझे पहले ही दान कर चुके है और दान दी गयी वस्तु से दान नहीं किया जा सकता है |
राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) ने कहा ऋषिवर में आपको संध्या काल तक 1100 स्वर्ण मुद्राओ की दक्षिणा अवश्य दूंगा
राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) ने स्वय को एक डोम ( श्मशान का प्रहरी ) के यहां 500 स्वर्ण मुद्राओ में तथा अपनी पत्नी तारा और पुत्र रोहित को 600 स्वर्ण मुद्राओ में बेचकर विश्वा मित्र को दक्षिणा दी
सर्प के काटने से जब इनके पुत्र की मृत्यु हो गयी तो पत्नी तारा अपने पुत्र को शमशान में अन्तिम क्रिया के लिये ले गयी।
वहाँ पर राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) खुद एक डोम के यहाँ नौकरी कर रहे थे और शमशान का कर लेकर उस डोम को देते थे।
उन्होने रानी तारा से कहा की मेरे मालिक के आदेशानुसार बिना कफ़न के बिना किसी का भी अंतिम संस्कार करने से मना किया है
तभी रानी तारा ने अपनी आधी साडी को फाड़कर कफ़न का कपड़ा देना चाहा,
उसी समय महर्षि विश्वा मित्र प्रगट हुए और राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) को उनकी धन, सम्पति, वैभव, राजपाठ पुनः लोटा दिए और देवताओ के आशीर्वाद से रोहित को पुनर्जीवन दिया |
राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) की ली जाने वाली दान वाली परीक्षा तथा कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदारी की जीत बतायी
इस राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) विश्व इतिहास के सबसे महान दानवीर की श्रेणी में इंगित हुए
राजा हरिश्चंद्र कौन थे
राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे जो सत्यव्रत के पुत्र थे।विश्व के सुप्रसिद्ध दानवीर राजा कहलाए |
राजा हरिश्चंद्र की पत्नी कौन थी
राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तारा थी