Ram Raksha Stotra Lyrics In Hindi » श्री राम रक्षा स्तोत्र लिरिक्स
Ram Raksha Stotra Lyrics In Hindi » श्री राम रक्षा स्तोत्र लिरिक्स
Ram Raksha Stotra Lyrics In Hindi
श्रीगणेशायनम: ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता अनुष्टुप् छन्द: सीता शक्ति: ।
श्रीमद्हनुमान् कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥
॥ अथ ध्यानम् ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामाङ्कारूढ-सीता-मुखकमल-मिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥
॥ इति ध्यानम् ॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
जिव्हां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामो खिलं वपु: ॥९॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥१३॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन् मनोरथो स्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेयपराक्रम: ॥२३॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥
रामं लक्ष्मण-पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
माता रामो मत्पिता रामचन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरन्तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
कूजन्तं राम-रामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे,
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम् ,
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
॥ इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥
श्री राम रक्षा स्तोत्र लिरिक्स अर्थ सहित
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ।। १ ।।
श्री रघुनाथ जी का चरित्र सौ करोड़ रूपों में विस्तार लेने वाला है और उसका एक-एक शब्द मनुष्यों के बड़े से बड़े पापों को भी नष्ट कर देने वाला है॥१॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं ।। २ ।।
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ।। ३ ।।
रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ।। ४ ।।
जो नीलकमलके समान श्याम वर्ण हैं, जिनकी आँखें कमल के सामान हैं, जिनका मुकुट जटाओं से सुशोभित है, जो अपने हाथों में खड्ग, तूणीर, धनुष और बाण धारण किए हैं, जो असुरों के संहार के लिए तथा संसार की रक्षा के लिये अपनी हीं लीला से अवतीर्ण हुए हैं, उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान् श्रीराम का, माता सीता और श्री लक्ष्मण जी के साथ, स्मरण कर प्रज्ञावान पुरुष इस सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला तथा समस्त पापों को हर लेने वाला रामरक्षा का पाठ करे। राघव मेरी सिर की तथा दशरथात्मज मेरे ललाट की रक्षा करें॥ २-४॥
कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ।। ५ ।।
कौशल्यानन्दन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक घ्राण अर्थात मेरे नाक की और सोमित्रिवत्सल मेरे मुख की रक्षा करें॥ ५॥
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ।। ६ ।।
विद्यानिधि मेरी जिह्वा की, भरतवन्दित मेरे कण्ठ की , दिव्यायुध मेरे कंधों की तथा महादेवजी का धनुष तोड्नेवाले भग्नेशकार्मुक मेरे भुजाओं की रक्षा करें॥ ६॥
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ।। ७ ।।
सीतापति मेरे हाथों की, परशुरामजीको जीतनेवाले जामदग्न्यजित् मेरे हृदय की, खर नामके राक्षसका नाश करनेवाले खरध्वंसी मेरे मध्यभाग की तथा जाम्बवानके आश्रयस्वरूप जाम्बवदाश्रय मेरे नाभि की रक्षा करें ॥ ७॥
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।
उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः ।। ८ ।।
सुग्रीवके स्वामी सुग्रीवेश मेरे कमर की, हनुमत्प्रभु मेरे सक्थियों की तथा राक्षसकुल-विनाशक रघुश्रेष्ठ मेरे ऊरुओं की रक्षा करें ॥ ८ ॥
जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतकः।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामअखिलं वपुः ।। ९ ।।
सेतुकृत् मेरे जानुओं की , रावणको मारनेवाले दशमुखान्तक मेरे जङ्घाओं की, विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले विभीषणश्रीद मेरे चरणों की तथा मेरे सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें ॥९॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ।। १० ।।
जो पुण्यवान मनुष्य राम की शक्ति से सम्पन्न इस श्री रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करता है, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयसम्पन्न हो जाता है॥ १०॥
पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ।। ११ ।।
जो जीव पाताल, पृथ्वी अथवा आकाश में विचरते हैं |.और जो छद्मवेशसे घूमते रहते हैं, वे रामनामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं सकते॥ ११॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन।
नरौ न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ।। १२ ।।
जो भी मनुष्य राम, ‘रामभद्र’, अथवा ‘रामचन्द्र’–इन नामों का स्मरण करता है वो पापों से लिप्त नहीं होता तथा भोग और मोक्ष को प्राप्त कर लेता है ॥ १२॥
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ।। १३ ।।
जो पुरुष राम नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को, जो सम्पूर्ण जगत को जीतनेवाले एकमात्र मन्त्र है, कण्ठ में धारण करता है अर्थात् इसे कण्ठस्थ कर लेता है, उसे सम्पूर्ण सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं॥ १३ ॥
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत।
अव्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ।। १४ ।।
जो मनुष्य वज्रपञ्जर नामक इस रामकवच का स्मरण करता है, उसके आदेश का कहीं उल्लङ्घन नहीं होता और उसे सर्वत्र विजय और मंगल की प्राप्ति होती है ॥ १४॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ।। १५ ।।
रात्रि के समय भगवान् शंकर ने स्वप्न में आकर बुधकौशिक ऋषि को रामरक्षा स्तोत्र का जिस प्रकार आदेश दिया था, उसी प्रकार प्रातःकाल जागने पर उन्होंने इसे लिख दिया॥ १५॥
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः ।। १६ ।।
जो कल्पवक्षों के बगीचे के समान आराम देने वाले हैं तथा सभी आपत्तियों का अन्त करने वाले हैं, जो तीनों लोकों में परम सुन्दर हे, वही श्रीराम हमारे प्रभु हैं॥ १६ ॥
तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ।। १७ ।।
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ।। १८ ।।
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ।। १९ ।।
जो तरुण अवस्थावाले, रूपवान्, सुकुमार, महाबली, कमल के समान विशाल नयनो वाले, मुनियों के भांति वस्त्र और कृष्णमृगचर्म धारण करने वाले, फल तथा कंद मूल का आहार करनेवाले, संयमी, तपस्वी, ब्रह्मचारी, सम्पूर्ण जीवों को शरण देने वाले, समस्त धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और असुरों के कुल का नाश करनेवाले हे, वे रघुश्रेष्ठ दशरथकुमार राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें ॥ १७-१९ ॥
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम ।। २० ।।
जिन्होंने संधान किया हुआ धनुष धारण कर रखा है, जो अक्षय बाणों से युक्त तूणीर लिये बाण का स्पर्श कर रहे हैं, वे राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने हेतु मार्ग में सदा ही मेरे आगे चलें॥ २० ॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।
गच्छन् मनोरथान नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ।। २१ ।।
सर्वदा तत्पर, कवच धारण किये, हाथ में खडग तथा धनुष-बाण धारण किये युवावस्था वाले भगवान् श्रीराम लक्ष्मणजी सहित आगे-आगे चलकर हमारे मनोरथों की रक्षा करें ॥ २१॥
रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ।। २२ ।।
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ।। २३ ।।
इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ।। २४ ।।
भगवान शिव कहते हैं कि राम, दाशरथि, शूर, लक्ष्मणानुचर, बली, काकुत्स्थ, पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघूत्तम, वेदान्तवेद्य, यज्ञेश, पुराणपुरुषोत्तम, जानकीवल्लभ, और श्री अप्रमेय पराक्रम–जो भी इन नामों का नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करता है उसे अश्वमेध यज्ञसे भी अधिक फल की प्राप्ति होती है – इसमें तनिक भी संशय नहीं है॥ २२-२४ ॥
रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः ।। २५ ।।
जो मनुष्य दूर्वादल के समान श्यामवर्ण, कमलनयन, पीताम्बरधारी भगवान् श्री राम के इन दिव्य नामों की स्तुति करते हैं, वे संसार के चक्र में नहीं पड़ते॥ २५॥
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम ।। २६ ।।
लक्ष्मणजी के बड़े भ्राता, रघुकुल में श्रेष्ठ, माता सीता के स्वामी, अत्यंत सुन्दर, ककुत्स्थ कुल के नन्दन, करुणासागर, गुणनिधान, ब्राह्मणभक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथपुत्र, श्याम और शांति स्वरुप, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल के वंसज राघव और रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वन्दना करता हूँ॥ २६ ॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ।। २७ ।।
राम, रामभद्र, रामचन्द्र, विधातुस्वरूप, रघुनाथ तथा प्रभु सीतापति को मेरा नमस्कार है ॥ २७॥
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ।। २८ ।।
हे रघुनन्दन श्रीराम, हे भरत के बड़े भ्राता भगवान् राम, हे शत्रुओं को जीतने वाले प्रभु श्री राम, आप मुझे शरण दें॥ २८ ॥
श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि
श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि
श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ।। २९ ।।
मैं श्री रामचन्द्र के चरणॉ का मन से सुमिरन करता हूँ, श्रीरामचन्द्र के चरणों का वाणी से स्तवन करता हूँ, श्रीरामचन्द्र के चरणों को सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ तथा श्रीरामचन्द्र के चरणों की शरण लेता हुँ॥ २९ ॥
माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं
जाने नैव जाने न जाने ।। ३० ।।
राम हीं मेरी माता हैं, राम हीं मेरे पिता हैं, राम हीं मेरे स्वामी हैं और राम ही मेरी सखा हैं । दयामय रामचन्द्र ही मेरा सर्वस्व हैं, उनके सिवा और किसी को मैं नहीं जानता – बिल्कुल नहीं जानता ॥ ३० ॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ।। ३१ ।।
जिनकी दायीं ओर लक्ष्मणजी, बायीं ओर जानकीजी और सामने हनुमानजी विराजमान हैं, मैं उन रघुनाथजी की वन्दना करता हूँ॥ ३१ ॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ।। ३२ ।।
जो सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, युद्ध कला में धीर, कमल की भांति नेत्रों वाले, रघुवंश नायक, करुणा के मूर्ति और भण्डार हैं, उन श्रीरामचन्द्रजी की मैं शरण लेता हूँ॥ ३२॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ।। ३३ ।।
मन के समान गति और वायु के समान वेग वाले, परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानोमें श्रेष्ठ, वायु के पुत्र तथा वानर दल के अधिनायक श्रीरामदूत हनुमान की मैं शरण लेता हूँ ॥ ३३
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ।। ३४ ।।
मैं कवितामयी डाली पर बैठकर मधुर अक्षरों वाले राम-राम इस मधुर नाम को कूजते हए वाल्मीकि रूप कोयल की वन्दना करता हूँ ॥ ३४॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ।। ३५ ।।
सभी आपत्तियों को हर कर सब प्रकार की सम्पत्ति प्रदान करने वाले लोकाभिराम भगवान् श्री राम को मैं बारंबार नमस्कार करता हुँ॥ ३५॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ।। ३६ ।।
‘राम-राम’ का घोष समस्त कष्टों का अंत करने वाला, समस्त सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति कराने वाला तथा यमदूतों को भी भयभीत करने वाला है॥ ३६ ॥
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः।।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोस्म्यहं
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः ।। ३७ ।।
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त होते हैं । मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ । सम्पूर्ण राक्षस सेनाका ध्वंस करने वाले श्री राम को मैं प्रणाम करता हूँ । रामसे बड़ा और कोई आश्रय नहीं है तथा मैं उन रामचन्द्रजी का दास हूँ । मेरा चित्त सदा राम में ही लीन रहे। हे राम, आप मेरा उद्धार करें ॥ ३७ ॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ।। ३८ ।।
भगवान् शिव माता पार्वती से कहते हैं – हे सुमुखि, रामनाम विष्णुसहस्रनाम के तुल्य है । में सर्वदा ‘राम, राम, राम’ इस प्रकार मनोरम रामनाम में ही रमण करता हूँ ॥ ३८ ॥
॥ श्री रामरक्षा स्तोत्र सम्पूर्ण होता है ॥
Ram Raksha Stotra Lyrics In English
|| Shri Ram Raksha Stotram ||
Shri Ganeshaaya Namaha |
Asya Shri Rama Raksha stotra mantrasya |
Budha Koushika Rushi-hi |
Shri Seeta Ramachandro devataa |
Anushtup Chanda-ha | Seeta shakti-hi |
Srimad Hanumaan-a Keelakam-m |
Shri Seeta Ramachando preetyarte jape viniyoga-ha ||
|| Aththa Dhyanam ||
Dhyaye daajaanu baahum dhruta shara danusham badra padma sanastham |
Peetham vaaso vasaanam navakamala dala spardhi netram prasannam ||
Vaaman-karuDa Sita muka kamala mila lochanam neera daabam |
Naanaa lankaara deeptham dadha tamuru jataa mandanam Ramachandram ||
|| Iththi Dhyanam ||
Charitham Raghunaathasya shatha koti pravistaram |
Ekaika maksharam pumsaam maha paataka naashanam ||1||
Dhyatva neelotpala Shyamam Ramam raajiva lochanam |
Jaanaki Lakshmano pethaam jata mukuta manditham ||2||
SaasitUna dhanurbaana paanim naktham charaantakam |
Svaleelaya jagatraatu maavirbhUta majam vibhum ||3||
Ramaraksham patetpradnya-ha paapagneem sarvakaamadham |
Shiro me Raghava-h paatu bhaalam dasharathaatmaja-ha ||4||
Kausalyeyo drushau paathu Vishwamitra priya-h shrutee |
Ghraanam paathu makhatraathaa mukham Saumitri vatsala-ha ||5||
Jivhaam vidya nidhi-h paathu kanTam Bharata vandita-ha |
Skandhau divya yudha-h paathu bhujhau bhagnesha kaarmuka-h ||6||
Karau Sitapati-h paatu hrudayam Jaamadagnyajit |
Madhyam paathu khara dhwamsee naabhim Jaambhavadaashraya-ha ||7||
Sugreevasha katee paathu sakthinee Hanumath-prabhu-h |
Uruu Raghuththama-h paathu raksha-h kula vinaasha-kruth ||8||
Jaanunee sethukruth-paathu jadgne dasha-mukhaanthaka-ha |
Paadhau BibheeshaNa-shreeda-h paathu Raamo-n-khilam vapu-h ||9||
Yethaam Rama-balO-pethaam rakshaam ya-h sukruthee paTet |
Sa chiraayu-h sukhee putree vijayi vinayi bhavet ||10||
Paataala bhutalavyoma chaariNashchadh-ma chaarina-ha |
Na drushtumapi shaktaaste rakshitam Rama naamabhi-hi ||11||
Rameti Ramabhadrethi Ramachandrethi vaa smarana |
Naro na lipyate paapai bhukthim mukthim cha vindathi ||12||
Jagajjetraika-mantreNa Ramanam-naabhi-rakshitam |
Ya-h kaNTe dhaarayethtasya karasthhA-h sarvasidhdhaya-h ||13||
Vajra-panjaranaamedam yo Raamakavacham smaret |
Avyaahataagnya-h sarvatra labhate jayamangalam ||14||
Adishtavaan yathaa swapne Ramarakshaamimaam hara-h |
Tatha likhitavaana praata-h prabhudhdho budhakaushika-h ||15||
Aaraama-h kalpavrukshaaNaam viraama-h sakalapadaam |
Abhiraamstrilokaanaam Rama-h shreemaan sa na-h prabhu-h ||16||
Tarunnau roopasampannau sukumaarau mahabalau |
Pundareeka-vishaalakshau cheera krushNaa jinaambarau ||17||
Phalamoolashinau daantau taapasau brahmachaariNau |
Putrau dasharathasyaythau bhratarau RamalakshmaNau ||18||
Sharanyau sarvasatvaanaam shreshTau sarvadhanushmatham |
Raksha-h-kulanihantaarau traayetaam no raghuththamau ||19||
Aaththasajhjha-dhanushaa vishusprushaa shuganishandga sandginau |
RakshaNaaya mama RaamalakshmaNaa vagratha-h pathi sadaiva gachchathaam ||20||
Sannaddha-h kavachee khaDgee chaapabaaNadharo yuvaa |
gachchana-manoratho-smaakam Raama-h paathu sa-lakshmana-h ||21||
Raamo Daasharathi-h shooro LakshmaNaa-nucharo balee |
Kaakutstha-h purusha-h poorna-h Kausalyeyo raghuththamma-h ||22||
Vedantavedhyo yagnesha-h puraaNapurushoththama-h |
Janakeevallabha-h Shrimaan-naprameya parakrama-h ||23||
Ityetaani japennityam madbhakta-ha shraddhayaanvita-h |
Ashwamedhaayutam punyam sampraaprOti na samshaya-ha ||24||
Raamam duurvaadalashyamam padmaaksham peetavaasasam |
Stuvanti naamabhirdhirvyairna te samsaarinO nara-h ||25||
Raamam LakshmaNa puurvajam Raghuvaram Seetapatim sundaram |
KaakutasTham karuNaarNavam guNanidhim viprapriyam dhaarmikam
Raajendram satyasamdham Dasharathanayam shyamalam shaantamuurthim |
Vande lokabhiraamam Raghukulatilakam Raaghavam RaavaNaarim ||26||
Raamaya Raamabhadraaya Raamachandraaya vedhase |
Raghunaathaaya naathaaya Seethaayaa-h pathaye namah ||27||
Shreeraam Raam Raghunandana Raam Raam |
Shreeraam Raam Bharathaagraja Raam Raam |
Shreeraam Raam RaNakarkasha Raam Raam |
Shreeraam Raam SharaNaM bhava Raam Raam ||28||
ShreeraamachandracharaNau manasaa smaraami |
ShreeraamachandracharaNau vachasaa gruNaami |
ShreeraamachandracharaNau shirasaa namaami |
ShreeraamachandracharaNau sharaNam pradhye ||29||
Maataa Raamo matpithaa Ramachandra-ha |
Swamee Raamo matsakhaa Ramachandra-ha |
Sarvaswam me RamachandrO dayaalu |
Naanyam jaane naiva jaane na jaane ||30||
DakshiNe LakshmaNO yasya vaame tu Janakaatmajaa |
Puratho Maarutiryasya tam vande Raghunandanam ||31||
Lokabhiraamam ranarangadheeram raajeevanetram Raghuvamshanaatham |
KaaruNyaroopam karuNaakaramtam Shreeraamachandram sharaNam prapadhye ||32||
Manojavam Maarutatulyavegam jitendriyam varishTam |
Vaataatmajam vaanarayuuthamukhyam Shreeraamadootam sharaNam prapadhye ||33||
Koojantham Raamaraameti madhuram madhuraaksharam |
Aaruhya kavithashaakhaam vande Valmiikikokilam ||34||
Aapadaampahartaaram daataaram sarvasampadaam |
Lokaabhiraamam Shreeraamam bhuyo bhuyo namaamyaham ||35||
Bharjanam bhavabeejaanaam-marjanam sukhasampadaam |
Tarjanam yamadootaanaam Raamaraamethi garjanam ||36||
Raamo RaajamaNi-h sada vijayate Raamam ramesham bhaje |
RaameNaabhihathaa nishaacarachamuu Raamaya tasmai namaha |
Raamannaasti parayaaNam parataram Raamasya daasO-smayaham |
Raame chiththalaya-h sada bhavatu me bho Raam maamudhdhara ||37||
Raama Raamethi Raamethi rame Raame manorame |
Sahastranaama taththulyam Ramanaam varaanane ||38||
Ithi ShreeBudhakaushikavirachitham
ShreeRamarakshastotram sampoorNam ||
|| Shree SeethaaraamachandraarpaNamasthu ||