इल्तुतमिश का इतिहास – History of Iltutmish
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली सल्तनत की बागडोर उसके गुलाम व दामाद इल्तुतमिश के हाथों में आई, जोकि दिल्ली का पहला सुल्तान था, जिसे सुल्तान के पद की स्वीकृति किसी गौर के शासक से नहीं बल्कि बगदाद के खलीफा से प्राप्त हुई थी।
इस तरह वह कानूनी रूप से दिल्ली का प्रथम सुल्तान था, जिसने दिल्ली को राजधानी बनाया था। |
जब इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत की बागडोर सम्भाली तब उसके समक्ष अनेकों आन्तरिक व बाहरी कठिनाइयाँ सिर उठाए खड़ी थीं। जैसे गौरी के प्रदेश के दो दावेदार गजनी में यल्दौज, उच्छ में कुबाचा अभी जीवित थे। बंगाल का सूबेदार अलीमर्दान खाँ स्वतन्त्र शासक की तरह कार्य कर रहा था।
राजपूताने के कई शासक दिल्ली सल्तनत की प्रभुसत्ता को चुर्नाती दे रहे थे।
1211-1220 ई. तक सर्वप्रथम इल्तुतमिश ने अपने विरोधियों जिनमें कुबाचा, यल्दौज, बंगाल का अलीमर्दान व राजपूत शासकों की शक्ति को कुचला और 1220-1228 ई. तक मंगोल आक्रानता चंगेज खाँ के आक्रमण से दिल्ली सल्तनत को सुरक्षित व सुव्यवस्थित करता रहा और अपने बचे हुए समय में राजवंशीय संगठन को मजबूत करता रहा।
इस समय उसके पास राजव्यवस्था में रणथम्भौर, मध्य भारत में ग्वालियर, भिलसा पूर्व में लखनौती, उत्तर में हिमालय की तराई से लेकर गंगा की तलहटी तक उसका राज्य विस्तृत था।
इल्तुतमिश ने तुर्कान-ए-चहलगानी नामक अपने वफादार सरदारों के संगठन का निर्माण किया था तथा दिल्ली सल्तनत में ‘इक्ता प्रणाली’ का आरम्भ किया था और केन्द्र में एक बड़ी सेना रखी थी। दो सिक्के चाँदी का टंका एवं ताँबे का जीतल चलाया था। निसन्देह कहा जा सकता है कि दिल्ली सल्तनत की मुस्लिम सम्प्रभुता का वास्तविक संस्थापक इल्तुतमिश था।
इल्तुतमिश (1210-1236 ई.) ने अपने विरोधियों से निबटने के लिए चालीस दासों का एक दल बनाया जिसे चालीसा ‘तुर्कान-ए-चहलगानी’ कहा गया। इल्तुतमिश ने अपने साम्राज्य को छोटे-छोटे क्षेत्रों में बाँट दिया जिसे इक्ता कहा गया, इसका प्रशासक इक्तादार होता था।
इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार के निर्माण को पूरा करवाया।
इसने अपनी राजधानी लाहौर से दिल्ली स्थानान्तरित की।
रजिया सुल्तान (1236-1240 ई.)
भारत की प्रथम महिला मुस्लिम शासिका थी। रजिया ने पहनावे में पर्दे को त्याग कर कुबा (कोट) तथा कुलाह (टोपी) धारण की। उसने भटिण्डा के प्रशासक अल्तूनिया से निकाह किया।
बलबन (1265-87 ई.)
दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था, जिसने सुल्तान की प्रतिष्ठा की पुर्नस्थापना के उद्देश्य से राजत्व सम्बन्धी विचार प्रस्तुत किया।