आश्रम व्यवस्था क्या है » What is Hermitage system

आश्रम व्यवस्था क्या है » धातु से व्युत्पन्न आश्रम शब्द का अर्थ परिश्रम अथवा उद्योग करन से है। इस प्रकार आश्रम में स्थान हैं जहाँ कुछ समय ठहरकर मनुष्य कुछ आवश्यक गुणों का विकास करता है

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आश्रम व्यवस्था क्या है » What is Hermitage system

आश्रम व्यवस्था क्या है
आश्रम व्यवस्था क्या है

श्रम‘ ‘Labour

धातु से व्युत्पन्न आश्रम शब्द का अर्थ परिश्रम अथवा उद्योग करन से है। इस प्रकार आश्रम में स्थान हैं जहाँ कुछ समय ठहरकर मनुष्य कुछ आवश्यक गुणों का विकास करता है और आगे की यात्रा के लिये तैयार होता है। डॉ. प्रभु ने आश्रमों को जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति – की यात्रा में विश्राम स्थल बताया है। मनुष्य की आयु 100 वर्ष मानकर उसे 4 आश्रमों में विभाजित किया गया। प्रत्येक आश्रम की अवधि 25 वर्ष निर्धारित की गई। ये 4 आश्रम व्यवस्था हैं- ब्रह्मचर्य आश्रम, ग्रहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम, संन्यास आश्रम ।

ब्रह्मचर्य आश्रमBrahmacharya Ashram

यह जीवन की तैयारी, प्रशिक्षण, अध्ययन एवं अनुशासन का काल है। इस अवस्था में युवक अपनी सारी शक्ति का संचय करते हुये, विषय-वासना से दूर रहकर श्रम एवं साधनामय जीवन व्यतीत करता था। इस आश्रम का मुख्य उद्देश्य बालक को स्वावलंबी बनाना और गृहस्थ जीवन के लिये प्रशिक्षित करना था।

गृहस्थ आश्रमGrihastha Ashram

इस आश्रम में व्यक्ति धार्मिक एवं सामाजिक दायित्वों को पूरा करने की ओर अग्रसर होता है। इस आश्रम का प्रारम्भ विवाह के बाद होता है। इस आश्रम में मनुष्य संतानोत्पत्ति अतिथि यज्ञ का संपादन, अग्निहोत्र का संपादन, अर्थवृद्धि, याज्ञिक संस्कारों का संपादन आश्रम वासियों की सुरक्षा तथा दान पुण्य का कार्य करता था। इसी आश्रम में व्यक्ति तीन ऋण से मुक्ति और पंच महायज्ञ का संपादन करता था।

तीन ऋणThree debts

1. देव ऋण : विभिन्न धार्मिक और याज्ञिक अनुष्ठानों द्वारा मुक्ति

2. ऋणि ऋण : वेदों के विधिपूर्वक अध्ययन द्वारा मुक्ति

3. पितृ ऋण : धर्मानुसार सन्तानोत्पत्ति द्वारा मुक्ति

पंच महायज्ञPanch Mahayagya

1. देव यज्ञ Dev Yagna : यज्ञ के दौरान अग्नि में आहूति देना

2. पितृ यज्ञ Pitra Yajna : पितरों का तर्पण, सम्मान

3. नृ (अतिथि) यज्ञ Nr (guest) Yajna : अथितियों का समुचित सत्कार

4. भूत यज्ञ Bhoot yajna : जीवधारियों का पालन |

5. ब्रह्म यज्ञ Brahma Yajna : वेदशास्त्रों का अध्ययन और स्वाध्याय

वानप्रस्थ आश्रमVanaprastha Ashram

50 वर्ष की अवस्था में मनुष्य का | प्रवेश वानप्रस्थ आश्रम में होता था। इस आश्रम के अंतर्गत | व्यक्ति का उद्देश्य धर्म एवं मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रयास करना था। इस आश्रम में प्रवेश के बाद मनुष्य काम एवं अर्थ से | मुक्ति पा लेता था।

संन्यास आश्रमSannyas ashram

व्यक्ति के जीवन की 75 वर्ष से 100 | वर्ष के बीच की अवधि संन्यास आश्रम के लिये थी। इस आश्रम में मनुष्य धर्म, अर्थ काम के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील होते थे और वन में रहते थे।

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