वैदिक काल नोट्स | Vedic Period Notes
वैदिक काल नोट्स का विभाजन दो भागों में किया गया है
(a) ऋग्वैदिक काल Rigvedic Period– इसे 1500 ई. पू.- 1000 ई. पू. माना गया है।
(b) उत्तर वैदिक काल Post vedic period– इसे 1000 ई. पू.- 600 ई. पू. माना गया है।
- मैक्स मूलर ने आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया को माना है।
- भारत में आर्य सर्वप्रथम ‘सप्तसिन्धु’ क्षेत्र में बसे। यह क्षेत्र आधुनिक पंजाब तथा उसके आस-पास का क्षेत्र था।
ऋग्वैदिक काल नोट्स – Rigvedic Period
- ऋग्वैदिक आर्य कई छोटे-छोटे कबीलों में विभक्त थे।
- ऋग्वैदिक साहित्य में कबीले को ‘जन’ कहा गया है।
- कबीले के सरदार को ‘राजन’ कहा जाता था, जो शासक होते थे।
- सबसे छोटी राजनीतिक इकाई कुल या परिवार थी, कई कुल मिलकर ग्राम बनते थे जिसका प्रधान ‘ग्रामणी’ होता था, कई ग्राम मिलाकर ‘विश’ होता था, जिसका प्रधान ‘विशपति’ होता था तथा कई “विश’ मिलकर ‘जन’ होता था जिसका प्रधान ‘राजा’ होता था।
- ऋग्वेद में ‘जन’ का 275 बार तथा ‘विश’ का 170 बार उल्लेख हुआ है।
- ‘सभा’, ‘समिति’ एवं ‘विदथ’ राजनीतिक संस्थाएँ थीं। परिवार पितृसत्तात्मक था।
- समाज में वर्ण-व्यवस्था कर्म पर आधारित थी। ऋग्वेद के दसवें मण्डल के ‘पुरुष सूक्त’ में चार वर्णों, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र; का उल्लेख है।
- ‘सोम’ आर्यों का मुख्य पेय था तथा ‘यव’ (जौ) मुख्य खाद्य पदार्थ।
- समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी।
- इस समय समाज में ‘विधवा विवाह’, ‘नियोग प्रथा’ तथा ‘पुनर्विवाह’ का प्रचलन था लेकिन ‘पर्दा प्रथा’, ‘बाल-विवाह’ तथा ‘सती–प्रथा’ प्रचलित नहीं थी।
- ऋग्वैदिक काल के देवताओं में सर्वाधिक महत्व ‘इन्द्र’ को तथा उसके उपरान्त ‘अग्नि’ व ‘वरुण’ को महत्व प्रदान किया गया था।
- ऋग्वेद में इन्द्र को ‘पुरन्दर’ अर्थात् ‘किले को तोड़ने वाला’ कहा गया है। ऋग्वेद में उसके लिए 250 सूक्त हैं।
उत्तर वैदिक काल नोट्स – Post vedic period
- उत्तर वैदिक काल के राजनीतिक संगठन की मुख्य विशेषता बड़े राज्यों तथा जनपदों की स्थापना थी।
- राजत्व के ‘दैवी उत्पत्ति के सिद्धान्त’ का सर्वप्रथम उल्लेख ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ में किया गया है।
- इस काल में राजा का महत्व बढ़ा। उसका पद वंशानुगत हो गया।
- उत्तर वैदिक काल में परिवार पितृसत्तात्मक होते थे। संयुक्त परिवार की प्रथा विद्यमान थी।
- समाज स्पष्ट रूप से चार वर्णों; ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र; में बँटा था। वर्ण व्यवस्था कर्म के बदले जाति पर आधारित थी।
- स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी। उन्हें धन सम्बन्धी तथा किसी प्रकार के राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे।
- ‘जाबालोपनिषद्’ में सर्वप्रथम चार आश्रमों; ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास; का विवरण मिलता है। •
- धार्मिक एवं यज्ञीय कर्मकाण्डों में जटिलता आई।
- इस काल में सबसे प्रमुख देवता प्रजापति (ब्रह्मा), विष्णु एवं रुद्र (शिव) थे।
- लोहे के प्रयोग का सर्वप्रथम साक्ष्य 1000 ई. पू. उत्तर प्रदेश के अतरन्जीखेड़ा (उत्तर प्रदेश) से मिला है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- चतुवर्ण व्यवस्था का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद के 10वें मंडल में स्थित ‘पुरुष सूक्त’ में मिलता है।
- इसमें चारो वर्णों की उत्पत्ति ब्रह्मा के विभिन्न अंगों से मानी गई है।
- प्रत्येक वर्ण का कार्य निश्चित होने से, कार्य विशेषीकरण (Specialisation) को प्रोत्साहन मिला।
- छान्दोग्य उपनिषद् में केवल ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रमों का ही उल्लेख है। पुरुषार्थ आश्रम व्यवस्था के मनोवैज्ञानिक-नैतिक आधार हैं।
- ब्रह्मचारी दो प्रकार के बताये गये हैं- (i) उपकुर्वाण- शिक्षा समाप्ति के उपरांत गृहस्थाश्रम में प्रवेश करते थे, (ii) अन्तेवासी या नेष्ठिक- जीवन पर्यन्त गुरु के पास रहते थे।
- महाभारत तथा याज्ञवल्क्य स्मृति में गृहस्थों के 4 वर्ग बताये गये हैं- (i) कुसूल धान्य, (ii) कुंभ धान्य, (iii) अश्वस्तन, (iv) कपोतीमाश्रित। चारों आश्रमों में गृहस्थ आश्रम को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
- मनु ने व्यक्ति के चारों आश्रमों का पालन क्रम से करने को आवश्यक माना था जबकि याज्ञवल्क्य ने व्यक्ति के लिये ब्रह्मचर्य आश्रम से सीधे संन्यास आश्रम में जाने को गलत नहीं माना।
- ऋषियों ने चारों पुरुषार्थों की प्रप्ति के लिये ही चतुराश्रम व्यवस्था बनाई थी।
- मोक्ष प्राप्त करना सबके लिये संभव नहीं था। अतः कालांतर में केवल धर्म, अर्थ, काम को त्रिवर्ग कहा गया है।
- गौतम धर्मसूत्र में संस्कारों की संख्या 40, वैरवानस गृहसूत्र में 18, पारस्कर सूत्र में 13, मनु ने 13 और याज्ञवल्क्य ने यह संख्या 12 बताई है।
- गौतम धर्मसूत्र और गृह्यसूत्रों में अंत्येष्टि संस्कार का उल्लेख नहीं है, क्योंकि इसे अशुभ माना जाता था।
- मनुस्मृति में 10 यमों का उल्लेख है- (i) ब्रह्मचर्य, (ii) दया, (iii) ध्यान, (iv) क्षमा, (v) सत्य, (vi) नम्रता, (vii) अहिंसा, (viii) अस्तेय, (ix) मधुर स्वभाव, (x) इंद्रिय दमन । संस्कार व्यक्ति को चरित्रगत दृढ़ता, सामाजिक मूल्यों और आदर्शों का ज्ञान देते थे।
4.7/5 - (3 votes)