वैदिक साहित्य | वेद, आरण्यक, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत
वैदिक साहित्य | वेद, आरण्यक, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत
ऋग्वेद
- वेद का अर्थ ज्ञान से है। इनसे आर्यों के आगमन व बसने का पता चलता है।
- ऋग्वेद में 10 मण्डल, 1028 श्लोक (1017 सूक्त तथा 11 वलाखिल्य) तथा लगभग 10,600 मन्त्र हैं।
- ऋग्वेद में अग्नि, सूर्य, इन्द्र, वरुण आदि देवताओं की स्मृति में रची गई प्रार्थनाओं का संकलन है।
- 10वें मण्डल में पुरुषसूक्त का जिक्र आता है जिसमें 4 वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र) का उल्लेख है।
- गायत्री मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद में है। यह मंत्र सूर्य की स्तुति में है।
यजुर्वेद
- यजुर्वेद कर्मकाण्ड प्रधान ग्रन्थ है।
- इसका पाठ करने वाले ब्राह्मणों को ‘अध्वर्यु’ कहा गया है।
- यजुर्वेद दो भागों में विभक्त है कृष्ण यजुर्वेद (गद्य) शुक्ल यजुर्वेद (पद्य)
- यजुर्वेद एक मात्र ऐसा वेद है जो गद्य और पद्य दोनों में| रचा गया है।
सामवेद
- साम का अर्थ ‘गान’ से है।
- वेदों में सामवेद को “भारतीय संगीत का जनक” माना जाता है।
अथर्ववेद
- ‘अथर्व’ शब्द का तात्पर्य है-पवित्र जादू।
- अथर्ववेद में रोग-निवारण, राजभक्ति, विवाह, प्रणय गीत, अंधविश्वासों का वर्णन है।
उपवेद
- ऋग्वेद-आयुर्वेद (चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित)
- यजुर्वेद-धनुर्वेद (युद्ध कला से सम्बन्धित)
- सामवेद-गांधर्ववेद (कला एवं संगीत से सम्बन्धित)
- अथर्ववेद-शिल्पवेद (भवन निर्माण कला से सम्बन्धित)
ब्राह्मण
- प्रत्येक वेद की गद्य रचना ही ब्राह्मण ग्रन्थ है।
- हर वेद के साथ कुछ ब्राह्मण जुड़े हुए हैं
- वेद ब्राह्मण
- ऋग्वेद कौशितकी और ऐतरेय
- यजुर्वेद तैतिरीय और शतपथ
- सामवेद पंचविश और जैमिनीय
- अथर्ववेद गोपथ
आरण्यक
- आरण्यक श्याब्द “अरण्य’ से बना है जिसका अर्थ है जंगल।
- आरण्यक दार्शनिक ग्रन्थ है जिनके विषय- आत्मा, परमात्मा, जन्म, मृत्यु, पुनर्जन्म आदि हैं।
- ये ग्रन्थ जंगल के शान्त वातावरण में लिखे जाते थे एवं इनका अध्ययन भी जंगल में किया जाता था।
- आरण्यक ज्ञानमार्ग एवं कर्ममार्ग के बीच एक सेतु का कार्य करते हैं।
उपनिषद
- इनका शाब्दिक अर्थ उस विद्या से है जो गुरु के समीप बैठकर, एकान्त में सीखी जाती है।
- इसमें आत्मा और ब्रह्मा के सम्बन्ध में दार्शनिक चिन्तन है।
- ये भारतीय दार्शनिकता के मुख्य स्रोत हैं।
- उपनिषद 108 हैं।
- इन्हें वेदांत भी कहते हैं क्योंकि ये वैदिक साहित्य का अन्तिम भाग हैं और ये वेदों का सर्वोच्च व अन्तिम उद्देश्य बतलाते हैं।
वेदांग
- वेदों का अर्थ समझने व सूक्तियों के सही उच्चारण के लिए वेदांग की रचना की गयी।
- ये 6 हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष।
षड्दर्शन
इनमें आत्मा, परमात्मा, जीवन-मृत्यु आदि से सम्बन्धित बातें हैं
दर्शन प्रवर्तक
- सांख्य कपिल
- योग पतंजलि
- वैशेषिक कणाद
- न्याय गौतम
- पूर्व मीमांसा जैमिनी
- उत्तर मीमांसा बादरायण (व्यास)
पुराण
कुल पुराणों की संख्या 18 है।
इनमें मुख्य हैं-मत्स्य, विष्णु, वामन आदि ।
सर्वाधिक प्राचीन एवं प्रमाणिक मत्स्य पुराण है जिसमें
विष्णु के 10 अवतारों का उल्लेख है।
रामायण
रामायण की रचना महर्षि वाल्मिकी ने की थी।
इसे चतुर्विशति सहस्री संहिता भी कहा जाता है।
महाभारत
इसकी रचना महर्षि व्यास ने की थी।
महाभारत को जयसंहिता और सतसहस्री संहिता के नाम से भी जाना जाता है।
स्मृतियाँ
इनमें सामाजिक नियम बताये गये हैं।
कुछ मुख्य स्मृतियाँ निम्न हैं|
मनुस्मृति, गौतम स्मृति, विष्णु स्मृति, नारद स्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, वशिष्ठ स्मृति
वैदिक साहित्य – शब्दावलीक
- गविष्टि : गायों की गवेषणा।
- रयि : वैदिक युग में सम्पत्ति के लिए प्रयुक्त।
- अदेवयु : देवताओं में श्रद्धा न रखने वाले।
- अब्रह्मन : वेदों को न मानने वाले।
- अयज्वन : यज्ञ न करने वाले।
- अनास : कटु वाणी वाले इसका प्रयोग आर्यों के शत्रु पणियों के लिए भी किया गया।
- वाजपति : चारागाह का अधिकारी।
- कुलप : परिवार का मुखिया।
- ग्रामणी : लड़ाकू दलों का प्रधान ।
- ब्राजपति : गाँव का प्रधान।
- जन या विश : वैदिक कबीले (प्रजाजन)
- नप्त : भतीजे, प्रपौत्र, चचेरे भाई-बहिन इत्यादि के लिए प्रयुक्त शब्द ।
- संहिता : वैदिक सूक्तों या मंत्रों का संग्रह ।
- बलि : राजा को स्वेच्छा से दी गयी भेंट।
- राष्ट्र : प्रदेश या राज्य क्षेत्र (वैदिक युग में पहली बार प्रयुक्त)
- होतृ या होता : ऋग्वेद में उल्लिखित श्लोक उच्चारित करने वाले ऋषि।
- अध्वर्यु : यज्ञ सम्बन्धी मंत्रों का उच्चारण करने वाले पुरोहित, यजुर्वेद में उल्लिखित ।
- उद्गाता : यज्ञ सम्बन्धी मंत्रों को गाने वाले पुरोहित, सामवेद में उल्लेख।
वैदिक साहित्य
- वेद – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद ब्राह्मण – ऐतरेय, कौषीतकि, शतपथ, पंचविश (ताण्ड्य), गोपथ
- आरण्यक – ऐतरेय, तैत्तरेय, मैत्रायणी, शांखायन, बृहदारण्यक, माध्यंदिन, तल्वकार
- उपनिषद् – ईश, केन, कठा, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तरेय, श्वेताश्वतर, छान्दोग्य, वृहदारण्यक, कौषीतकि, प्रश्न
- वेदांग – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष
- कल्पसूत्र – श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र
- उपवेद – आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्ववेद, शिल्पवेद
ऋग्वैदिक युग | उत्तर वैदिक युग | |
---|---|---|
समय | 1500-1000 ई.पू. | 1000-600 ई.पू. |
ग्रंथ | ऋग्वेद | यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यकग्रंथ एवं उपनिषद |
भौगोलिक ज्ञान | अफगानिसतान,पंजाब, सिंध | संपूर्ण दोआब, पूर्वी बिहार, विंध्य क्षेत्र |
पर्वत | मूजवंत (हिमालय) | कैंज, त्रिककुद, मैनाक |
सागर | संभवतःअरब सागर | अरब सागर, हिंद सागर महासागर, बंगाल की खाड़ी |
समाज | पितृसत्तात्मक | पितृसत्तात्मक |
वर्णव्यवस्था | अंतिम समय में प्रचलित | प्रचलित |
गोत्र व्यवस्था | प्रचलित नहीं | प्रचलित हुई |
आश्रम व्यवस्था | कोई साक्ष्य नहीं | विकास प्रारंभ हुआ |
पर्दा प्रथा, बाल | प्रचलित नहीं | प्रचलित नहीं |
विधवा विवाह | स्पष्ट साक्ष्य नहीं | प्रचलित |
स्त्रियों की दशा | अच्छी | हास हुआ |
शासन | राजतंत्रात्मक | राजतंत्रात्मक |
कबीलाई परिषद् (सभा, समिति,विदथ) | स्थिति मजबूत | स्थिति कमजोर हुई (विदथ समाप्त) |
राजा | जनता चुनती थी | स्थिति मजबूत |
अर्थव्यवस्था | कृषि, पशुपालन | कृषि, विभिन्न उद्योग |
फसल | यव (जौ) | गेहूँ, धान |
लोहे से | अपरिचित | परिचित |
कर | बलि (स्वेच्छा से) | कराधान का प्रचलन शुरू भागदुध अधिकार का उल्लेख |
देवता | इंद्र, वरुण, अग्नि,सोम | विष्णु, शिव, प्रजापति (ब्रह्मा) |
यज्ञ | बहुत महत्वपूर्ण नहीं | विष्णु, शिव, प्रजापति धर्म का प्रमुख अंग |
मृदभाण्ड | लाल एवं धूसर | चित्रित धूसर |
घटना | प्रतीक चिह्न |
---|---|
जन्म | कमल एवं सांड |
गृह त्याग | घोड़ा |
ज्ञान | पीपल वृक्ष |
निर्वाण | पद चिह्न |
मृत्यु | स्तूप |
वैदिक साहित्य – महत्वपूर्ण तथ्य
- ऋग्वैदिक काल में राजा के दैविक पद अथवा दैवी अधिकार का कोई संकेत नहीं मिलता। ऋग्वैदिक राजनैतिक व्यवस्था मूलतः एक कबीलाई व्यवस्था वाला शासन था, जिसमें सैनिक भावना का प्राधान्य था।
- नागरिक व्यवस्था अथवा प्रादेशिक प्रशासन जैसी किसी चीज का अस्तित्व नहीं था, क्योंकि लोग निरंतर अपने स्थान बदलते हुए फैलते जा रहे थे।
- दो कबीलाई परिषदों, जिनमें स्त्रियां भाग ले सकती थी, ‘सभा और ‘विदथ’ थे।
- अथर्ववेद में ‘सभा’ तथा ‘समिति’ को प्रजापति की दो पुत्रियों के समान माना गया है।
- ऋग्वेद में ‘शर्ध’, ‘वात’ तथा ‘गण’ सैनिक इकाइयां हैं।
- ऋग्वैदिक काल में धंधे पर आधारित विभाजन की शुरुआत हो चुकी थी। परंतु यह विभाजन अभी सुस्पष्ट नहीं था।
- ऋग्वेद में मछली का नाम नहीं है।
- ‘अनस’ (Anas) शब्द का प्रयोग बैलगाड़ी के लिए किया गया है।
- ‘पथी-कृत’ (Pathi-krit) शब्द का प्रयोग अग्निदेव (Fire God) के लिए किया गया है।
- ‘भीसज’ (Bhishaj) वैद्य को कहते थे।
- जब आर्य भारत में आये, तब वे तीन श्रेणियों में विभक्त थे : ‘योद्धा’ अथवा अभिजात, ‘पुरोहित’ और ‘सामान्य जन’।
- शूद्रों के चौथे वर्ग का उद्भव ऋगवैदिक काल के अंतिम दौर में हुआ।
- गृहस्थ जीवन से सम्बन्धित देवता अग्नि (इसके तीन रूप थे- सूर्य, विद्युत तथा भौतिक अग्नि), तथा सोम (अमृत का पेय) है।
- ऋग्वैदिक काल में अमूर्त देवता दो थे- ‘श्रद्धा’ तथा ‘मन्यु’।
- ऋग्वैदिक काल में विवाह की उम्र सम्भवतः 16-17 वर्ष थी।
- ऋग्वैदिक काल में सामाजिक विभेद (Social division) का प्रमुख कारण आर्यों की स्थानीय निवासियों पर विजय थी।
- अग्नि-पूजा का न केवल भारत में, बल्कि ईरान में भी बड़ा महत्व था।
- उषाकाल का प्रतिनिधित्व करने वाली ‘उषस्’ और अदिति जैसी देवियों का उल्लेख तो मिलता है, परन्तु इस काम में इन्हें विशेष महत्व नहीं दिया गया था।
- ‘ऋग्वेद’ में केवल एक ही धातु अयस (Ayas) का वर्णन है।
- 1200 ई. पू. में ईरान में कांसे (Bronze) के व्यापक प्रचलन के आधार पर यह मान लिया गया है कि अयमस् कांसा था।
- ‘नदी-स्तुति’ में विपासा का उल्लेख नहीं है।
- उसकी जगह मरूतवृधा (सम्भवतः कश्मीर का मरूवर्धन) का उल्लेख है।
- वैदिक लोगों ने सर्वप्रथम ‘तांबे’ (Copper) की धातु का इस्तेमाल किया था।
- ऋग्वेद में गंगा का एक बार, यमुना का तीन बार तथा सरयू का एक बार उल्लेख है।
- उत्तर वैदिक काल में आर्य लोग पंजाब से गंगा-यमुना दोआब तक व्याप्त समूचे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैल गये थे।
- भरत तथा पुरू नामक कबीलों के एकत्रित समूह से कुरू जन की व्युत्पत्ति हुई।
- दिल्ली और दोआब (गंगा-यमुना) के उत्तरी भाग को कुरूदेश कहते थे।
- महाभारत का युद्ध सम्भवतः 950 ई. पू. में लड़ा गया था।
- उत्तर वैदिक काल के लोग पक्की ईंटों का इस्तेमाल करना नहीं जानते थे।
- उत्तर-वैदिक कालीन लोगों की जीविका का मुख्य साधन कृषि था।
- शतपथ ब्राह्मण में हल की जुताई से संबंधित अनुष्ठानों के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है।
- ऋग्वैदिक लोग जौ (Barley) पैदा करते रहे, परन्तु इस काल (उत्तर वैदिक) में उनकी मुख्य पैदावार धान (rice) और गेहूँ (Wheat) बन गये।
उत्तर वैदिक काल के लोग चार प्रकार के मिट्टी के बर्तनों से परिचित थे
- (i) काले व लाल भांड (Black and red ware)
- (ii) काले रंग के भांड (Black-Slipped ware)
- (iii) चित्रित धूसर भांड (Painted-Grey-Ware) &
- (iv) लाल भांड (Red Ware) लाल भांड उन्हें सबसे अधिक प्रिय थे, परंतु चित्रित धूसर भांड इस युग का विशिष्ट भांड है।
- उत्तर वैदिक काल के ग्रंथों में नगर शब्द का उल्लेख भले ही मिलता हो, परन्तु वास्तविक नगरों की शुरूआत का यत्किंचित आभास उत्तर वैदिक काल के अंतिम दौर में ही मिलता है।
- इस काल में जन परिषदों का महत्व घट गया था।
- विदथ (Vidaths) पूर्णतः नष्ट हो गये थे।
- अब स्त्रियां सभाओं में सम्मलित नहीं हो पाती थी।
- पूर्व-पुरुषों की पूजा इसी काल से प्रारम्भ हुई।
- इस काल में गोत्र (Gotra) व्यवस्था स्थापित हुई।
- वैदिक (ऋग्वैदिक) काल में आश्रम व्यवस्था (Ashramas) अभी ठीक से स्थापित नहीं हुई थी।
- उत्तर वैदिक काल के ग्रंथों में केवल तीन आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ तथा वानप्रस्थ) का विवरण है।
- आश्रम व्यवस्था, वैदिकोत्तर काल (Post-Vedic period) में ही पूरी तरह चार आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा सन्यास) में स्थापित हुई।
- संपूर्ण वैदिक साहित्य का संकलन कुरू-पांचाल (पश्चिम उत्तर प्रदेश और दिल्ली) प्रदेश में हुआ।
- उत्तर वैदिक काल में मूर्तिपूजा का आरंभ हुआ।
- वैदिक काल में इसकी कोई सूचना नहीं मिलती। हड़प्पा सभ्यता के निवासी भी संभवतः मूर्ति पूजा में विश्वास रखते थे।
- ब्राह्मणा उन सोलह प्रकार के पुरोहितों में एक थे, जो यज्ञों का नियोजन करते थे।
- यज्ञों में दान के रूप में गाय, सोना, कपड़ा तथा घोड़े दिये जाते थे।
- उत्तर वैदिक काल में जनपद राज्यों का आरम्भ हुआ।
- विश्व (वैश्य) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग वाजसनेयि संहिता में मिलता है।
- ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में शूद्र शब्द का प्रथम उल्लेख मिलता है।
- अथर्ववेद में शूद्र वर्ण का उल्लेख अन्य वर्गों के साथ मिलता है।
- ऋषि याज्ञवल्क्य को शास्त्रार्थ में अपने सूक्ष्म प्रश्नों से परेशान कर देने वाली महिला गार्गी वाचक्नवी थी।
यजुर्वेद में वर्णित धातुओं का नाम इस प्रकार हैं
- हिरण्य सोना
- अयस् कांसा
- श्याम अयस् (कृष्ण अयस्) लोहा
- लोह अयस्तां तांबा
- सीस सीसा
- त्रषु रागा
- राजसूय यज्ञ करने वाले प्रधान पुरोहित को 2,40,000 गायें दक्षिणा के रूप में दी जाती थीं।
- तीन आश्रमों का सर्वप्रथम विवरण हमें छांदोग्य उपनिषद् (Chhandogya Upanishad) में मिलता है।
- चारों आश्रमों का सर्वप्रथम विवरण जबालोपनिषद (Jabalopanishad) में मिलता है।
- अश्वमेघ, वाजपेय, राजसूय आदि यज्ञों के विस्तृत आध्ययन से पता चलता है कि मूलतः इनका उद्देश्य कृषि उत्पादन को बढ़ाना था।
- कृष्ण यजुर्वेद के ब्राह्मण प्रायः कालक्रम में सबसे पहले रचे गए और उनके पश्चात तैत्तिरीय ब्राह्मण, ऐतरेय के मूल खंड और फिर कौषीतकि।
- गंगा को ऋग्वैदिक आर्यों के निवास स्थल की पूर्वी सीमा माना जा सकता है।
- उत्तर वैदिक कालीन साहित्य के आधार पर विन्ध्य प्रदेश को उत्तर वैदिक कालीन आर्यों के भौगोलिक विस्तार की दक्षिणी तथा विदेह, कोसल, अंग और मगध देशों को पूर्वी सीमा माना जा सकता है।
- ऋग्वेद के तिथिक्रम से मेल खाने वाली संस्कृतियों में काले एवं लाल मृदभांड (black and red ware), ताम्रपुंजों (copper hoards) एवं गेरूवर्णी मृदभांडों (ochre coloured pottery) की संस्कृतियाँ आती हैं।
- किंतु इनमें से किसी को भी निश्चित रूप से ऋग्वैदिक लोगों की कृति नहीं माना जा सकता है।
- गेरूवर्णी मृद्भांड (OCP) संस्कृति के अधिकांश स्थल सप्तसैन्धव क्षेत्र में नहीं, वरन् गंगा-यमुना दोआब में केन्द्रित हैं।
- अफगानिस्तान, पंजाब तथा उत्तरी राजस्थान से, जो कि ऋग्वैदिक लोगों की गतिविधियों के केन्द्र रहे हैं, धूसर मृद्भांड (PGW) प्राप्त हुए हैं, किन्तु तिथिक्रम की दृष्टि से इन्हें अधिक से अधिक ऋग्वैदिक काल की अंतिम शताब्दी का माना जा सकता हैं |
- भारत के प्राचीनतम सिक्के आहत सिक्कों (Punch mark coins) का चलन लगभग 600 ई. पू. से आरमा हुआ। गवेषण, गोष, गव्य, गम्य आदि शब्द युद्ध के लिए प्रयुक्त होते थे।
- ऋग्वेद में कुल 10,462 श्लोक हैं जिनमें केवल 24 में ही कृषि का उल्लेख है।
- ऋग्वेद में एक ही अनाज “यव” (जौ) का उल्लेख है।
- ऋग्वैदिक समाज तथा परवर्ती कालीन वर्ण-सामाज के बीच मुख्य अंतर यह था कि आधिशेष उत्पादन के अभाव में ऋग्वैदिक (कबायली) समाज में वर्ग-भेद की परिस्थितियों का उदय नहीं हो सका था।
- नप्त ऋग्वेद में इस शब्द का प्रयोग चचेरे भाई-बहिन, भतीजे प्रपौत्र आदि के लिए किया गया है।
उत्तर वैदिक काल के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक ढांचे की प्रमुख विशेषताएं थीं
- 1. कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था
- 2. कबायली संरचना में दरार
- 3. वर्ण-व्यवस्था का जन्म तथा
- 4. क्षेत्रगत साम्राज्यों का उदय मैत्रायणी संहिता (उत्तर वैदिक काल) में नारी को पासा एवं सुरा के साथ-साथ तीन प्रमुख बुराइयों में गिनाया गया है।