भारत संघ व राज्यक्षेत्र – Union Of India And Territory
संघ राज्य क्षेत्र ( The Union Territories )
- अनुच्छेद 239 : संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन
- अनुच्छेद 239-क : कुछ संघ राज्यक्षेत्रों के लिए स्थानीय विधान-मंडलों या मंत्रि-परिषदों का या दोनों का सृजन
- अनुच्छेद 239-ख : विधान-मंडलों के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की प्रशासक की शक्ति
- अनुच्छेद 240 : कुछ संघ राज्यक्षेत्रों के लिए विनियम बनाने की राष्ट्रपति की शक्ति
- अनुच्छेद 241 : संघ राज्यक्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय
- अनुच्छेद 242 : (निरसित)
संघ व राज्यक्षेत्र – भाग-I
भारतीय संवधिान के भाग-I
अनुच्छेद-1 से 4 तक में संघ और उसके राज्यक्षेत्र के विषय में उपबंध किया गया है।
भारत न तो संयुक्त राज्य अमेरिका और स्वीट्जरलैंड की तरह एक परिसंघ है और न तो दक्षिण अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया की तरह एक संघ है बल्कि यह राज्यों का एक संघ है।
अनुच्छेद 1 : संविधान में भारत के दो नाम बताये गये हैं- 1. भारत ; 2. इण्डिया। भारत को राज्यों का संघ घोषित किया गया है।
भारत के राज्य क्षेत्र में निम्नलिखित सम्मिलित हैं
1. राज्यों के राज्य क्षेत्र
2. संघ राज्य क्षेत्र और
3. ऐसे अन्य क्षेत्र जो अर्जित किए जायें।
आजादी के पूर्व कांग्रेस ने भाषायी आधार पर प्रांतों के गठन की बात कही थी। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस. के. दर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन 1948 में किया जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भाषाई आधार पर प्रांतों का गठन नहीं होना चाहिए बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था के आधार पर प्रांतों का गठन होना चाहिए। इस रिपोर्ट का बड़ा विरोध हुआ इसलिए 1948 में ही जवाहर लाल नेहरू, बल्लभभाई पटेल और पट्टाभिसीतारमैया के नेतृत्व में एक कमेटी (जे.वी.पी. कमेटी) का गठन किया गया जिसने अपनी रिपोर्ट अप्रैल 1949 में दी। इसमें कहा गया है कि भाषा के आधार पर प्रांतों का निर्माण नहीं होना चाहिए किन्तु यह भी व्यापक जनभावना की माँग है तो उसे मान लेना चाहिए।
मद्रास प्रेसीडेंसी ने तेलुगु भाषी नेता पोट्टी श्रीरामाल्लु अलग भाषा के आधार पर राज्य की माँग करते हुए 56 दिनों तक आमरण अनशन किया और 15 दिसम्बर, 1952 को उनकी मृत्यु हो गई। 19 दिसम्बर, 1952 को पं. जवाहर लाल नेहरू तेलगू भाषियों के लिए अलग आंध्र प्रदेश के गठन की घोषणा कर दी। इस प्रकार भाषा के आधार पर गठित पहला राज्य आन्ध्र प्रदेश 1 अक्टूबर 1953 को अस्तित्व में आया।
राज्य पुनर्गठन आयोग – 1953
जवाहरलाल नेहरू ने 1953 में न्यायमूर्ति फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया जिसमें के. एम. पणिक्कर और हृदय नाथ कुंजरू भी शामिल थे। इसने अपनी रिपोर्ट 1955 में सरकार को सौंप कर जिसमें कहा गया था कि- 1. केवल भाषा और संस्कृत के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन नहीं होना चाहिए। 2. देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रशासनिक आवश्यकता और पंचवर्षीय योजना को सफल बनाने की क्षमता को भी आधार में रखना चाहिए। 3. 16 राज्यों और 3 केन्द्रशासित प्रदेशों का निर्माण होना चाहिए। (ए, बी, सी, और डी जैसे राज्यों के वर्गीकरण समूह को समाप्त किया जाना चाहिए।)
सरकार ने कुछ सिफारिशों के साथ इस आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और संसद द्वारा राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 पारित किया गया जिसके अनुसार 14 राज्यों और 5 केन्द्र शासित प्रदेशों का निर्माण किया गया।
वर्तमान में 28 राज्य और 7 केन्द्रशासित प्रदेश हैं। छत्तीसगढ़ (गठन-1 नवम्बर, 2000 ई.), उत्तरांचल (गठन-9 नवम्बर, 2000 ई.) और झारखण्ड (15 नवम्बर, 2000 ई.) नामक तीन नये राज्यों का गठन नवम्बर, 2000 में किया जो भारत में क्रमशः 26 वें, 27 वें और 28 वें राज्य हैं।
अनुच्छेद-2 में संसद को संघ में नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना की शक्ति का वर्णन किया गया है।
अनुच्छेद-3 के अंतर्गत संसद को नये राज्यों की स्थापना एवं वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन की शक्ति प्राप्त है।
सर्वप्रथम भाषाई आधार पर 1953 में आन्ध्रप्रदेश राज्य का गठन किया गया।
1962 में पाण्डिचेरी को भारत का छठा केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया।
1961 में गठित गोवा, दमन और दीव को भारत का सातवाँ केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया।
बंबई प्रांत के गुजराती भाषी क्षेत्रों को उससे अलग करके गुजरात को भारत 15वाँ राज्य बनाया गया।
नागालैण्ड भारत का 16वाँ राज्य था. जिसका गठन 1962 में किया गया।
1966 में पंजाब के हिन्दी भाषी क्षेत्रों को हरियाणा राज्य के रूप में गठित किया गया तथा केन्द्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ भी बनाया गया।
1969 में मेघालय का गठन एक उपराज्य के रूप में किया गया जिसे 1971 में हिमाचल प्रदेश के साथ पूर्ण राज्य का गठन किया गया।
1975 में सिक्किम नामक राज्य का गठन किया गया।
1975 में ही मणिपुर तथा त्रिपुरा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश राज्य का गठन 1986 में किया गया, जबकि गोवा को केंद्र शासित प्रदेश की श्रेणी से निकालकर पूर्ण राज्य का दर्जा 1987 में प्रदान किया गया।
संविधान संशोधन तथा उसके द्वारा राज्य पुनर्गठन
7वाँ, 1956 केन्द्र को भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की शक्ति देने के लिए।
10वाँ, 1961 दादर एवं नगर हवेली को संघ राज्य क्षेत्र का दर्जा।
12वाँ, 1962 गोवा तथा दमन, दीव को भारत में शामिल कर संघराज्य क्षेत्र का दर्जा ।
13वाँ, 1962 नागालैंड को राज्य क्षेत्र का दर्जा
14वाँ, 1962 पाण्डिचेरी को संघराज्य क्षेत्र का दर्जा ।
18वाँ, 1966 पंजाब तथा हरियाणा को राज्य तथा हिमाचल प्रदेश को संघराज्य क्षेत्र का दर्जा |
22वाँ, 1969 मेघालय को राज्य का दर्जा ।
27वाँ, 1975 मणिपुर तथा त्रिपुरा को राज्य तथा मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश को संघराज्य क्षेत्र का दर्जा ।
36वाँ, 1975 सिक्किम को भारत में शामिल करके राज्य का दर्जा।
53वाँ, 1986 मिजोरम को राज्य बनाने के लिए।
55वाँ, 1986 अरुणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा ।
56वाँ, 1987 गोवा को राज्य का दर्जा।
राज्य ‘पुनर्गठन विधेयक, 2000 उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा बिहार को बाँटकर क्रमशः उत्तरांचल, छत्तीसगढ़ एवं झारखंड का गठन किया गया ।
राज्य पुनर्गठन आयोग और उनकी अनुशंसाएँ
1936 संवैधानिक सुधार समिति : इसकी अनुशंसा पर साम्प्रदायिक आधार पर सिंध प्रान्त का गठन किया गया।
1948 दर आयोग : हांलांकि इसने वर्तमान परिस्थितियों में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध किया एवं प्रशासनिक सुविधा, इतिहास एवं भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आधार पर पुनर्गठन का समर्थन किया।
1948 जे. वी. पी. आयोग प्रभावित जनता की आपसी सहमति, आर्थिक, वित्तीय एवं प्रशासनिक व्यवहार्यता पर जोर दिया एवं इन सबको ध्यान में रखते हुए भाषा को आधार बनाये जा सकने की संभावना से इंकार नहीं किया। भाषा के आधार पर इस रिपोर्ट के बाद ही आंध्र प्रदेश का गठन 1956 में हुआ।
1955 फजल अली आयोग : राष्ट्रीय एकता, प्रशासनिक, आर्थिक, वित्तीय व्यवहार्यता एवं आर्थिक (राज्य पुनर्गठन आयोग) विकास, अल्पसंख्यक हितों की रक्षा को पुनर्गठन का आधार माना। (अन्य सदस्य- के. एस. पन्निकर, हृदयनाथ कुंजरू) सरकार ने इस आयोग की अनुशंसा को कुछ परिवर्तन के साथ स्वीकार किया एवं इसी अनुशंसा पर आधारित राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया।