संसद क्या है | भारतीय संसद क्या है » राज्यसभा, लोकसभा

संसद क्या है | भारतीय संसद क्या है » संसद केंद्र सरकार का सर्वोच्च विधायी अंग है | संसदीय प्रस्ताव, संसद के सत्र, स्थगन, सत्रावसान तथा विघटन, संसद की समितियाँ, संसद में सामान्य प्रक्रिया, संसद का विघटन

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संसद क्या है | भारतीय संसद क्या है » राज्यसभा, लोकसभा

संसद क्या है – संसद केंद्र सरकार का सर्वोच्च विधायी अंग है

संसद क्या है | भारतीय संसद क्या है » राज्यसभा, लोकसभा
संसद क्या है | भारतीय संसद क्या है » राज्यसभा, लोकसभा

संघीय विधान मंडल भारत में केन्द्रीय विधायिका के दो सदन हैं

  1. राज्यसभा
  2. लोकसभा

राज्यसभा को द्वितीय और उच्च सदन कहते हैं, जबकि लोकसभा प्रथम और निम्न सदन है ।

इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति भी केन्द्रीय विधायिका का अंग होता है। 

Parliament = Rajya Sabha + Lok Sabha + President

संसदीय प्रस्ताव

  • ध्यानाकर्षण प्रस्ताव : अध्यक्ष की अनुमति से जब कोई संसद सदस्य किसी मन्त्री का ध्यान सार्वजनिक हित की दृष्टि से अत्यावश्यक विषय की ओर आकर्षित करता है तो उसे ध्यानाकर्षण प्रस्ताव कहते हैं।
  • विशेषाधिकार प्रस्ताव : यदि किसी मंत्री ने तथ्यों को छिपाकर या गलत जानकारी देकर संसद सदस्यों के विशेषाधिकार का हनन किया है तो संसद सदस्य मंत्री के विरुद्ध विशेषाधिकार प्रस्ताव’ रख सकते हैं।
  • कार्य स्थगन प्रस्ताव : जब कोई विशेष घटना घटित हो या देश में कोई विशेष स्थिति उत्पन्न हो जाए तो संसद सदस्य प्रस्ताव कर सकता है कि सदन की वर्तमान कार्यवाही को स्थगित कर इस विशेष घटना, स्थिति या प्रश्नपर विचार किया जाना चाहिए। इसे ही कार्य स्थगन प्रस्ताव कहते हैं।
  • कटौती प्रस्ताव : बजट की माँगों में कटौती हेतु रखे गए प्रस्ताव को ‘कटौती प्रस्ताव’ कहते हैं। इस प्रस्ताव को विचार के लिए स्वीकृति देना अध्यक्ष के स्वविवेक पर निर्भर करता है।
  • निन्दा प्रस्ताव : शासन या किसी विशेष मंत्री द्वारा अपनायी गई नीति या उसके कार्यों की आलोचना करने के लिए ‘निन्दा प्रस्ताव’ लाया जाता है।
  • अविश्वास प्रस्ताव : अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में विपक्षी दल या दलों द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है। यदि लोकसभा के कम-से-कम 50 सदस्य प्रस्ताव का समर्थन करते हैं तो अध्यक्ष उसे विचार हेतु स्वीकार करते हैं। यदि लोकसभा अपने बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दे तो मन्त्रिपरिषद् को त्यागपत्र देना होता है।

संसद के सत्र, स्थगन, सत्रावसान तथा विघटन

संविधान के अनुच्छेद-85 के अधीन राष्ट्रपति को समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को आहूत करने, उसका सत्रावसान करने और लोकसभा का विघटन करने की शक्ति है। 

संसद के सत्र : राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को अधिवेशन के लिए आहूत करता है लेकिन एक सत्र की अंतिम बैठक और उसके बाद के सत्र की पहली बैठक के बीच 6 महीनों से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिए। इस प्रकार, एक वर्ष में दो बार संसद का अधिवेशन बुलाया जाना आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर संसद का अधिवेशन बुलाता है।

सामान्यतया वर्ष में तीन सत्र होते हैं

1. बजट सत्र (फरवरी-मई) 

2. वर्षाकालीन सत्र (जुलाई-सितंबर) 

3. शीतकालीन सत्र (नवम्बर-दिसम्बर) 

संसद का सत्रावसान सदन का सत्रावसान राष्ट्रपति करता है। संसद के किसी विशेष सत्र को समाप्त करना ही सत्रावसान कहलाता है। उल्लेखनीय है कि सदन के सत्रावसान के परिणामस्वरूप उसमें लम्बित विधेयक के कार्य समाप्त नहीं होते हैं। 

संसद का विघटन विघटन सदन की कालावधि को ही समाप्त कर देता है। इसके बाद नये लोकसभा के गठन के लिए निर्वाचनहोना आवश्यक हो जाता है। सामान्यतः राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह से ही विघटन करता है। ध्यान रहे कि राज्यसभा एक स्थायी सदन है इसलिए उसका विघटन नहीं हो सकता। 

लोकसभा के विघटन का प्रभाव जब लोकसभा का विघटन हो जाता है तो- लोकसभा में लम्बित सभी विधेयक समाप्त हो जाते हैं।

राज्यसभा में लम्बित विधेयक, जिसको लोकसभा ने पारित नहीं किया है, समाप्त हो जाते हैं। राज्यसभा में लम्बित विधेयक, जिसे लोकसभा ने पारित कर दिया है, समाप्त नहीं होंगे, यदि राष्ट्रपति यह घोषणा कर दे कि इस विधेयक के संबंध में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक होगी।

संसद में सामान्य प्रक्रिया

प्रश्नकाल आमतौर पर प्रतिदिन सदन की कार्यवाही का | प्रथम घण्टा (11 से 12 बजे) प्रश्नकाल होता है। इस काल में प्रश्नों के माध्यम से राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सभी बातों के सम्बन्ध में सूचना प्राप्तकी जा सकती है।

  • प्रश्न तीन प्रकार के होते हैं
  • (1) तारांकित प्रश्न द्वारा सदस्य सदन में मौखिक उत्तर चाहता है। 
  • (2) अतारांकित प्रश्न की स्थिति में सम्बद्ध मंत्री द्वारा सदन के पटल पर लिखित उत्तर रखा जाता है। 
  • (3) अल्प सूचना प्रश्न का सम्बन्ध लोक महत्व के किसी तात्कालिक मामले से होता है जो किसी प्रश्न के लिए निर्धारित समय की सूचना के बजाय कम समय की सूचना पर पूछा जा सकता है। 
  • शून्यकाल सामान्यतः प्रश्नकाल के बाद लगभग 1 घण्टे का समय (12 से 1 बजे) ‘शून्यकाल’ के रूप में रखा जाता है। इस समय में विचार के लिए विषय’ पहले से निर्धारित नहीं होता। इस समय में बिना पूर्व सूचना के सदस्य द्वारा सार्वजनिक हित का ऐसा कोई भी प्रश्न उठाया जा सकता है | जिस पर तुरन्त विचार आवश्यक समझा जाए। यह नाम | समाचार-पत्रों द्वारा दिया गया है।
  • सामूहिक उत्तरदायित्व : अनु. 75(3) के अनुसार मंत्रिपरिषद लोक सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी। इसका अभिप्राय यह है कि वह अपने पद पर तब तक बनी रह सकती है जब उसे निम्न सदन अर्थात लोक सभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त हो।
  • अविश्वास प्रस्ताव : अविश्वास प्रस्ताव सदन में विपक्षी दल के किसी सदस्य द्वारा रखा जता है। प्रस्ताव पक्ष में कम से कम 50 सदस्यों का होना आवश्यक है तथा प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने के 10 दिन के अन्दर इस पर चर्चा होना भी आवश्यक है। चर्चा के बाद अध्यक्ष मतदान द्वारा घोषणा करता है।

अध्यादेश राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल संसद अथवा विधान मंडल के सत्रावसान की स्थिति में आवश्यक विषयों से संबंधित अध्यादेश जारी करते हैं। अध्यादेश को 6 सप्ताह से ज्यादा लागू होने के लिये जब संसद या विधान मण्डल फिर से अस्तित्व में आती है तो उसे इसे 6 सप्ताह के भीतर इस अध्यादेश का अनुमोदन करना आवश्यक है।

बैक बेंचर (Back Bencher) सदन में आगे के स्थान प्रायः मंत्रियों, संसदीय सचिवों तथा विरोधी दल, के नेताओं के लिए आरक्षित रहते हैं। गैर सरकारी सदस्यों के लिए पीछे का स्थान नियत रहता है। पीछे बैठने वालों को ही बैंक बेंचर कहा जाता

न्यायिक पुनर्विलोकन भारत में न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है। न्यायिक पुनर्विलोकन के अनुसार न्यायालयों को यह अधिकार प्राप्त है कि यदि विधान मंडल द्वारा पारित की गयी विधियाँ अथवा कार्यपालिका द्वारा दिये गये आदेश संविधान के विरोध में हैं तो वे उन्हें निरस्त घोषित कर सकते

अनुपूरक अनुदान यदि विनियोग द्वारा किसी विशेष सेवा पर चालू वर्ष के लिए व्यय किये जाने के लिए प्राधिकृत कोई राशि अपर्याप्त पायी जाती है या वर्ष के बजट में उल्लिखित न की गई किसी नयी सेवा पर खर्च की आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है तो राष्ट्रपति एवं अनुपूरक अनुदान संसद के समक्ष पेश करवायेगा। अनुपूरक अनुदान औरविनियोग विधेयक दोनों के लिए एक ही प्रक्रिया विहित की गई है।

लेखानुदान जैसा की हमें पता है, विनियोग विधेयक के पारित होने के बाद ही संचित निधि से कोई रकम निकाली जा सकती है किन्तु सरकार को इस विधेयक के पारित होने के पहले ही रुपयों की आवश्यकता हो सकती है। इसलिये 116(क) के अन्तर्गत लोक सभा लेखा अनुदान (Vote on account) पारित कर सरकार के लिए अग्रिम राशि मंजूर कर सकती है।

अधिक अनुदान जब किसी वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर उस वर्ष और उस सेवा के लिए अनुदान की गयी रकम से कोई धन व्यय हो गया हे तो राष्ट्रपति लोकसभा में अधिक अनुदान की मांग रखता है।

गणपूर्ति (Chuorum) सदन में किसी बैठक के लिए गणपूर्ति अध्यक्ष सहित कुल सदस्य संख्या का दसवां भाग होती है बैठक शुरू होने के पूर्व यदि गणपूर्ति नहीं है तो गणपूर्ति घंटी बजायी जाती है। अध्यक्ष तभी पीठासीन होता है जब गणपूर्ती हो जाती है।प्रश्नकाल दोनों सदनों में प्रत्येक बैठक के प्रारम्भ के एक घण्टे तक प्रश्न किये जाते हैं और उनके उत्तर दिये जाते हैं। इसे प्रश्न काल कहा जाता है। प्रश्न काल के दौरान सदस्यों को सरकार के कार्यों पर आलोचना का समय मिल जाता है। इसके दो लाभ हैं- एक तो सरकार जनता की कठिनाइयों एवं अपेक्षाओं के प्रति सजग रहती है। दूसरे इस दौरान सरकार अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमों की जानकारी सदन को देती है।

संसद की समितियाँ

  • सार्वजनिक लोक लेखा समिति सार्वजनिक लेखा समिति का गठन प्रत्येक वर्ष संसद के प्रथम सत्र में किया जाता है। 
  • इस समिति का मुख्य कार्य देश के वित्तीय मामलों से संबंधित अपव्यय, भ्रष्टाचार,अकुशलता अथवा कार्य संचालन की त्रुटियों की जाँच करना है। 
  • सार्वजनिक लेखा समिति का अध्यक्ष लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया जाता है, विपक्षी यदि लोकसभा का उपाध्यक्ष इसका सदस्य होता है, तो वहीं इसका अध्यक्ष होता है। 
  • लोक लेखा समिति : प्राक्कलन समिति की ‘जुड़वा बहन’ के रूप में ज्ञात इस समिति में 22 सदस्य होते हैं, जिनमें से 15 सदस्य लोकसभा के सदस्यों द्वारा तथा 7 सदस्य राज्य सभा के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं। 1967 से स्थापित प्रथा के अनुसार इस समिति के अध्यक्ष के रूप में विपक्ष के किसी सदस्य को नियुक्त किया जाता है।

प्राक्कलन समिति 

  • लोकसभा की प्राक्कलन समिति : इस समिति में लोकसभा के 30 सदस्य होते हैं और इसमें राज्यसभा के सदस्यों को शामिल नहीं किया जाता। यह सबसे बड़ी समिति होती
  • प्राक्कलन समिति एकमात्र लोकसभा की समिति होती है और इसमें राज्य सभा के सदस्य सम्मिलित नहीं होते। 
  • इस समिति के सभापति की नियुक्ति लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा किया जाता है। 
  • यह समिति मितव्ययिता, कार्यकुशलता तथा सांगठनिक सुधार के बारे में अपनी रिपोर्ट देती है। 
  • इस समिति का मुख्य कार्य नियंत्रक महालेखापरीक्षक के प्रतिवेदनों तथा सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के लेखा एवं प्रतिवेदनों की समीक्षा करना है। 
  • लेखानुदान : विनियोग विधेयक को पारित करने के पहले जब सरकार को धन की आवश्यकता होती है, तब लोकसभा लेखानुदान के माध्यम से सरकार के व्यय के लिए अग्रिम धनराशि की व्यवस्था करती है।

विशेषाधिकार समिति

  • इस समिति में लोकसभा के 15 सदस्य होते हैं।
  • सदस्यों की नियुक्ति लोकसभाध्यक्ष द्वारा की जाती है। 
  • प्रधानमंत्री तथा वित्तमंत्री भी इस समिति में सम्मिलित किये जाते हैं। 
  • इस समिति का मुख्य कार्य विशेषाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों की जाँच करना है।

अन्तर्राज्य परिषद 

  • संविधान के अनु. 263 के अन्तर्गत केन्द्र एवं राज्यों के बीच समतय स्थापित करने के लिए राष्ट्रपति एक अन्तर्राज्य परिषद की स्थापना कर सकता है। 
  • पहली बार जून, 1990 ई. में अन्तर्राज्य परिषद की स्थापना की गई जिसकी पहली बैठक 10 अक्टूबर, 1990 ई. को हुयी।
  • इसमें निम्न सदस्य होते हैं- प्रधानमंत्री तथा उनके द्वारा मनोनीत छह कैबिनेट स्तर के मंत्री, सभी राज्यों व संघ राज्य क्षेत्रों के मुख्यमंत्री एवं संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासक।
  • अन्तर्राज्य परिषद की बैठक वर्ष में तीन बार की जायेगी जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री या उसकी अनुपस्थिति में प्रधानंत्री द्वारा नियुक्त कैबिनेट स्तर का मंत्री करता है।

वित्त आयोग 

  • संविधान के अनु. 280 में वित्त आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है ।
  • वित्त आयोग के गठन का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है ।
  • वित्त आयोग में राष्ट्रपति द्वारा एक अध्यक्ष एवं चार अन्य सदस्य नियुक्त यि जाते हैं।
  • नोट : पहला वित्त आयोग 1951 ई. में गठित किया गया था इसके अध्यक्ष के. सी. नियोगी।

लोक सेवा आयोग 

  • भारत में सन् 1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम के अधीन सर्वप्रथम 1926 इ. में लोक सेवा आयोग की स्थापना की गयी लोक सेवा आयोग की स्थापनाक लिए 1924 ई. में विधि आयोग ने सिफारिश की थी। 
  • संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या निर्धारित करने की शक्ति राष्ट्रपति को है वर्तमान में इसकी संख्या 10 है।

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