केन्द्रीय मंत्रिपरिषद – Central Council Of Ministers

मंत्रिपरिषद
मंत्रिपरिषद

केन्द्रीय मंत्रिपरिषदCentral council of ministers

मंत्रिपरिषद में एक प्रधानमंत्री तथा आवश्यकतानुसार अन्य मंत्री होते हैं। मन्त्रियों की संख्या संविधान के द्वारा निश्चित नहीं की गयी है। 

91वाँ संशोधन के द्वारा केन्द्र में मंत्रियों की संख्या लोकसभा के कुल सदस्यों के 15 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती। 

मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री और उपमंत्री- इन चारों श्रेणियों के मंत्री सम्मिलित होते हैं लेकिन  मंत्रिमण्डल में प्रधानमंत्री और कैबिनेट स्तर के मंत्री ही सम्मिलित होते हैं।

महान्यायवादी attorney general (अनु. 76) 

महान्यायवादी भारत सरकार का प्रथम विधि अधिकारी होता है। 

महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और पारिश्रमिक भी राष्ट्रपति निर्धारित करता है। 

महान्यायवादी पद के लिए वही अर्हताएँ होनी चाहिए जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की होती है और राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण कर सकता है। 

भारत का महान्यायवादी मंत्रिपरिषद् का सदस्य नहीं होता है, लेकिन उसे किसी भी सदन में बोलने का अधिकार है। 

वह संसद के किसी भी सदन में मत देने का अधिकारी नहीं होता है। 

महान्यायवादी का मुख्य कार्य राष्ट्रपति द्वारा भेजे गये विधि संबंधी प्रश्नों पर सलाह देना है। 

अपने कर्त्तव्यों के पालन में उसे देश के किसी भी न्यायालय में सुनवाई का अधिकार प्राप्त होता है। 

भारत में महान्यायवादी का पद एक स्वतंत्र पद है, जबकि ब्रिटेन में वह वहाँ के मंत्रिमण्डल का सदस्य होता है।

नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक Comptroller and Auditor General (अनु. 148-151) 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 में नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के पद की व्यवस्था की गई है। 

नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

उसका वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है जो भारत की संचित निधि से दिया जाता है। 

नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक 6 वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है लेकिन यदि इस अवधि को पूरा करने के लिए वह 65 वर्ष की आयु का हो जाता है, तो अवकाश प्राप्त कर लेता है। 

नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक को महाभियोग की प्रक्रिया से ही हटाया जा सकता है। 

नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के विरुद्ध महाभियोग लाने के दो आधार हैं- 1. साबित कदाचार और 2. असमर्थता 

नियंत्रक तथा महालेखापरीक्षक ओर संघ एवं राज्यों के समस्त वित्तीय प्रणाली का नियंत्रक होता है। 

नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक भारत एवं उसके सभी राज्यों एवं संघ शासित प्रदेशों की संचित निधि से किये जाने वाले व्यय की संपरीक्षा करता है और उन पर यह प्रतिवेदन देता है कि ऐसा व्यय विधितः किया गया है अथवा नहीं। 

वह संघ तथा राज्यों के आकस्मिक निधियों तथा सार्वजनिक लेखाओं के सभी व्ययों की भी संपरीक्षा करता है तथा उन पर अपना प्रतिवेदन देता है। 

वह संघ तथा राज्यों के सभी विभागों द्वारा किए गए सभी व्यापार और विनिर्माण संबंधी हानि और लाभ-हानि लेखाओं की भी संपरीक्षा कर उन पर अपना प्रतिवेदन देता है। 

उल्लेखनीय है कि नियंत्रक और महालेखापरीक्षक भारत की संचित निधि से निकाले जाने वाले धन पर कोई नियंत्रण नहीं लगा सकता। वह व्यय किये जा चुके धन की ही संपरीक्षा कर सकता है।

भारत की संचित निधि – Consolidated funds (अनु. 266(1)) 

भारत की संचित निधि पर भारित व्यय निम्न हैं

राष्ट्रपति का वेतन एवं भत्ता और अन्य व्यय ।

राज्य सभा सभापति और उपसभापति तथा लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन एवं भत्ते । 

सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन भत्ता तथा पेंशन।। 

भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक का वेतन, भत्ता तथा पेंशन। 

ऐसा ऋण जिसे देने का भार भारत सरकार पर हैं 

भारत सरकार पर किसी न्यायालय द्वारा दी गयी डिग्री या पंचाट। 

कोई अन्य व्यय जो संविधान द्वारा या संसद विधि द्वारा इस प्रकार भारित घोषित करें। 

भारत की आकस्मिकता निधि 267 संविधान का अनु. 267 संसद और राज्य विधान मंडल को अपनी स्थिति के अनुसार भारत या राज्य की आकस्मिकता निधि सर्जित करने की शक्ति देता है।

यह निधि 1950 द्वारा गठित की गई है। यह निधि कार्यपालिका के व्यय के लिये बनायी गयी है।

Rate this post
What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
Scroll to Top
Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro
Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.

Refresh