जयपुर – Jaipur – हवामहल, सिटीपैलेस, जंतर-मंतर, आमेर, जयसिंह

जयपुर – Jaipur – हवामहल, सिटीपैलेस, जंतर-मंतर, आमेर, जयसिंह

जयपुर Jaipur
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जयपुर – Jaipur को जैपर, ढूढाड़, भारत का पेरिस, गुलाबी नगरी, पन्ने की मण्डी, पिंकसिटी, पूर्व का पेरिस, जयनगर, रंग श्री द्वीप, आदि नामों से जाना जाता है।

जयपुर – Jaipur का प्राचीन नाम जयगढ़ था। |

भारत के पेरिस, गुलाबीनगरी तथा सी.वी. रमन के शब्दों में रंगश्री के द्वीप (Island of Glory) के नाम से प्रसिद्ध जयपुर की स्थापना 18 नवम्बर, 1727 (नींव का पत्थर गंगापोल पर लगाया गया था) को कछवाहा नेरश सवाई जयसिंह-II द्वारा 9 खेड़ों का अधिग्रहण कर की गई।

जयपुर – Jaipur के प्रमुख वास्तुकार श्री विद्याधर चक्रवर्ती एवं आनंदराम मिस्त्री तथा सलाहकार मिर्जा इस्माइल थे।

– इस नगर की नींव पं. जगन्नाथ सम्राट के ज्योतिष ज्ञान के आधार पर डलवायी गयी थी।

– इसे जर्मनी के एक शहर ‘द एल्ट स्टडट एर्लग’ की बसावट के आधार पर बसाया गया था। पूरा शहर चौपड़ पैटर्न (9 आड़ी रेखाओं व 9 सीधी रेखाओं) | पर अनेक वर्गाकार खण्डों में बंटा हुआ है।

– जयपुर शहर को गुलाबी रंग में रंगवाने का श्रेय सम्राट रामसिंह-II (1835-80) को है।

– ज्ञात हो कि जयपुर का पूर्व नाम जयनगर था। |

नैला दुर्ग एवं नैला महल, हाड़ी रानी का महल (आमेर), नालीसर मस्जिद (साम्भर), राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, राजस्थान लोक प्रशासन संस्थान (रीपा), हस्तशिल्प कागज राष्ट्रीय संस्थान, राजस्थान ललित कला अकादमी, गुरुनानक संस्थान, राजस्थान कला संस्थान, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, राजस्थान सिंधी अकादमी तथा भारतीय प्राच्य ज्योतिष संस्थान आदि संस्थान जयपुर में स्थित है।

जयपुर के दर्शनीय स्थल

नाहरगढ़ का किला : सुदर्शनगढ़ नाम से प्रसिद्ध एक जैसे 9 महलों युक्त इस किले का निर्माण 1734 ई. में सवाई जयसिंह ने प्रारम्भ करवाया तथा इसको वर्तमान स्वरूप (1868 ई.) सवाई रामसिंह द्वारा प्रदान किया गया। अरावली पर्वतमाला पर स्थित यह दुर्ग जयपुर के मुकुट के समान है।

– सवाई माधोसिंह-II ने अपनी 9 प्रेयसियों (पासवानों) के नाम पर यहाँ एक जैसे 9 महलों (चांद प्रकाश, लक्ष्मी प्रकाश, ललित प्रकाश, बसंत प्रकाश, फूल प्रकाश, जवाहर प्रकाश, खुशहाल प्रकाश, आनंद प्रकाश, सूरज प्रकाश) का निर्माण करवाया।

जयगढ़ का किला : इसका निर्माण सवाई जयसिंह (1726 ई) तथा मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया। इसमें तोप ढालने का कारखाना व जयबाण तोप (एशिया की सबसे बड़ी तोप जिसकी मारक क्षमता लगभग 22 मील है) दर्शनीय है।

– जयगढ़ दबे हुए खजाने के लिए प्रसिद्ध है, उस समय इसे जयगढ़ नहीं कहकर चिल्ह का टोला कहा जाता था।

– महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने प्रतिद्वन्द्वी छोटे भाई विजय सिंह को कैद कर रखा था।

– इसमें एक 7 मंजिला प्रकाश स्तम्भ बना था, जो दिया बुर्ज कहलाता है। जयगढ़ दुर्ग के तीन मुख्य प्रवेश द्वार हैं

– डूंगर दरवाजा, अवनि दरवाजा और भैंरु दरवाजा।

आमेर : आमेर का नाम अम्बरीश ऋषि के नाम पर पड़ा। इसी कारण इसे अम्बरीशपुर या अम्बर भी कहा जाता है। जयपुर के उत्तर-पूर्व में करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित यह कछवाहा वंश की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध रहा है।

आमेर का दुर्ग : यह गिरि दुर्ग है। इसका निर्माण राजा धोलाराय ने 1150 ई. में करवाया। आमेर दुर्ग चारों ओर पहाड़ियों एवं मजबूत प्राचीरों से घिरा हुआ है।

गणेशपोल : आमेर का गणेशपोल विश्व प्रसिद्ध प्रवेश द्वार है। यह 50 फीट ऊँचा व 50 फीट चौड़ा है। इसका निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने (1700-1743 ई.) करवाया। द्वार के ऊपर चतुर्भुज गणेश की आकृति चौकी पर पद्मासन मुद्रा में विराजमान है। इसलिए इसे गणेश पोल कहा जाता है। इस पर फ्रेस्को पद्धति से निर्मित विविध अलंकरण भी दर्शनीय है।।

सुहाग (सौभाग्य ) मंदिर : गणेशपोल की छत पर स्थित आयताकार महल जो रानियों के हास-परिहास व मनोविनोद का केन्द्र था।

आमेर का महल : आमेर की मावठा झील के पास की पहाड़ी पर स्थित, कछवाहा राजा मानसिंह द्वारा 1592 में निर्मित यह महल हिन्दु- मुस्लिम शैली के समन्वित रूप है।

शीशमहल : दीवाने खास नाम से प्रसिद्ध आमेर स्थित जयमन्दिर (मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा निर्मित) एवं जस (यश) मंदिर जो चूने और गज मिट्टी से बनी दीवारों | और छतों पर जामिया कांच या शीशे के उत्तल टुकड़ों से की गयी सजावट के कारण शीशमहल कहलाते हैं। महाकवि बिहार ने इन्हें दर्पण धाम कहा है।

शिलादेवी का मंदिर : आमेर के महलों में शिलादेवी का प्रसिद्ध मंदिर है। शिलामाता की मूर्ति को राजा मानसिंह 16 वीं शताब्दी के अन्त में जैस्सोर (बंगाल) शासक केदार को परास्त करके लाये थे।

 शिलादेवी के मंदिर में संगमरमर का कार्य सवाई मानसिंह द्वितीय ने 1906 ई. में करवाया था। पूर्व में यह साधारण चूने का बना हुआ था।

जगत शिरोमणि मंदिर : आमेर में स्थित यह वैष्णव मंदिर महाराजा मानसिंह-I की रानी कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की याद में बनवाया गया। इस मंदिर में भगवान कृष्ण की काले पत्थर की मूर्ति प्रतिष्ठित है जो वही है जिसकी पूजा मीराबाई करती थी।

गोविन्द देव मंदिर : गौड़ीय (वल्लभ) सम्प्रदाय का यह राधा-कृष्ण मंदिर सिटी पैलेस के पीछे बने जयनिवास बगीचे के मध्य अहाते में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1735 में सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया। यहाँ वृन्दावन से लाई गोविन्द देवजी की प्रतिमा प्रति स्थापित है। |

सिटीपैलेस (राजमहल)-जयपुर के सिटी पैलेस में स्थित चाँदी के पात्र (विश्व के सबसे बड़े) तथा बीछावत पर बारीक काम (सई से बना चित्र) विश्व प्रसिद्ध है।

– यह जयपुर राजपरिवार का निवास स्थान था।

– सिटी पैलेस में प्रवेश के लिए सात द्वार बने हुए हैं किन्तु सबसे प्रमुख उदयपोल द्वार है जिसे 1900 ई. में महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय ने बनवाया। इस पूर्वी प्रवेश द्वार को सिरह-ड्योढ़ी कहते हैं।

– यहाँ स्थित इमारतों में चन्द्रमहल, मुबारक महल, सिलह- खाना, दीवाने-आम, दीवाने खास, पोथीखाना विशेष प्रसिद्ध है।

→ यहाँ स्थित दीवाने आम में महाराजा का निजी पुस्तकालय (पोथीखाना) एवं शस्त्रागार है। |

मुबारक महल : सिटी पैलेस में स्थित मुबारक महल का निर्माण सवाई माधोसिंह (1880 से 1922 ई.) ने करवाया था। जयपुर सफेद संगमरमर एवं अन्य स्थानीय पत्थरों की सहायता से निर्मित यह आकर्षक भवन हिन्दू स्थापत्य कला का आदर्श नमूना है। अब इसकी ऊपरी मंजिल में जयपुर नरेश संग्रहालय का वस्त्र अनुभाग है।

ईसरलाट : जयपुर में स्थित सरगासूली के नाम से प्रसिद्ध सात मंजिली अष्टकोणी संकरी इमारत, जिसका निर्माण (1749 ई.) महाराज ईश्वरीसिंह ने राजमहल (टोंक) युद्ध में विजयी होने पर विजय स्तम्भ के रूप में करवाया। इसमें हर दो मंजिल के बाद चारों ओर घूमती हुई दीर्घा है।

जयपुर का हवामहल

JAIPUR
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– 1799 ई. में सवाई प्रतापसिंह ने इस पाँच मंजिल की भव्य इमारत का निर्माण करवाया।

– इस इमारत को उस्ताद लालचद कारीगर ने बनाया था। कहा जाता है कि प्रताप सिंह भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे इसलिए इसका निर्माण मुकुट के आकार में करवाया।

– वर्तमान में इसे राजकीय संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। राजकीय संग्रहालय का आंतरिक प्रवेश द्वार आनन्द पोल 18वीं शताब्दी के अंतिम चरण के प्रासाद स्थापत्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

हवामहल की पहली मंजिल शरद मंदिर, दूसरी रत्न मंदिर, तीसरी विचित्र मंदिर, चौथी मंजिल प्रकाश मंदिर और पाँचवी मंजिल हवा मंदिर के नाम से जानी जाती है।

हवामहल में 953 खिड़कियाँ है। |

सिसोदिया रानी का महल एवं बाग : सवाई जयसिंह द्वितीय की महारानी सिसोदिया ने 1779 में इसका निर्माण करवाया। |

गैटोर : नाहरगढ़ किले की तलहटी में स्थित जयपुर के दिवंगत राजाओं की श्वेत संगमरमर निर्मित कलात्मक छतरियों के लिए प्रसिद्ध स्थल है ये छतरियाँ महाराजा सवाई जयसिंह-II से लेकर सवाई माधोसिंह तक राजाओं और उनके पुत्रों की स्मृति में बनवाई थी।

जंतर-मंतर : सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा 1718 ई. में स्थापित ज्योतिष व नक्षत्र विद्या की वैधशाला। इसका निर्माण समय एवं नक्षत्रों की जानकारी प्राप्त करने के लिए करवाया गया था। यहाँ सम्राट यंत्र (विश्व की सबसे बड़ी सौर घड़ी) एवं जय प्रकाश यंत्र एवं रामयंत्र (ऊँचाई मापने हेतु) प्रसिद्ध है।

अल्बर्ट हॉल प्रसिद्ध वास्तुविद् स्वीटन जैकब द्वारा डिजाईन व सवाई रामसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित इस हॉल का शिलान्यास वेल्स के राजकुमार अल्बर्ट ने | 1878 में किया था।

→ उन्हीं के नाम पर इसका नामकरण किया गया। महाराजा माधोसिंह द्वितीय के काल में 1887 में सर एडवर्ड ब्रेड फोर्ड ने इसका उद्घाटन किया।

– इस भवन का निर्माण कार्य जयपुर के चंदर और तारा मिस्त्रियों ने किया तथा संग्रहालय की सामग्री का संकलन अंग्रेज चिकित्सक कर्नल हैण्डले ने किया था।

बैराठ – सिंधु घाटी सभ्यता के प्रागैतिहासिक काल के समकालीन इस स्थल में मौर्यकालीन (अशोक के शिलालेख) एवं मध्यकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। इसके उत्खनन में 36 मुद्राएँ मिली हैं जिनमें 8 चाँदी की पंचमार्क मुद्राएं व 28 इण्डो ग्रीक (जिनमें 16 मुद्राएं राजा मिनेन्डर की) मुद्राएँ हैं।

– प्राचीनकाल में विराटनगर नाम से प्रसिद्ध इस स्थल की खुदाई में एक गोल बौद्ध मंदिर के अवशेष, मृद्पात्र पर त्रिरत्न व स्वस्तिक अलंकार आदि प्राप्त हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि यहाँ स्थित भीम की डूंगरी (पाण्डु हिल) के पास पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास का एक वर्ष व्यतीत किया था।

मोती डूंगरी सवाई माधोसिंह द्वारा निर्मित इमारत जिसमें तख्नेशाही महल प्रसिद्ध है।

गणेश मंदिर : मोतीडूंगरी की तलहटी में स्थित यह मंदिर महाराजा माधोसिंह प्रथम के काल में बनाया गया था। यहाँ स्थापित गणेश प्रतिमा जयपुर नरेश माधोसिंह प्रथम की पटरानी के पीहर (मावली) से लाई गई थी। यहाँ प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी पर मेला भरता है। | जलमहल :जयपुर से आमेर के मार्ग पर आमेर की घाटी के नीचे जयसिंहपुरा खोर गाँव के ऊपर दो पहाड़ियों के बीच तंग घाटी को बांधकर एवं कनक वृन्दावन एवं फूलों की घाटी के पास स्थित जलमहल (मानसागर झील) का निर्माण जयपुर के मानसिंह द्वितीय ने नैसर्गिक सौन्दर्य एवं मनोरंजन के लिए करवाया था।

– सवाई प्रताप सिंह ने सन् 1799 में इसका निर्माण मानसागर तालाब के रूप में करवाया था। | कनक वृन्दावनःजलमहल के निकट स्थित मंदिर जिसका निर्माण सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया था।

बिड़ला मंदिर : मोती डूंगरी के निकट श्वेत संगमरमर से निर्मित लक्ष्मीनारायण मंदिर जिसे बिड़ला ग्रुप (गंगाप्रसाद बिड़ला) के हिन्दुस्तान चेरिटेबल ट्रस्ट ने बनवाया है।

– मंदिर में स्थापित भगवान नारायण तथा देवी लक्ष्मी की मूर्तियाँ एक ही संगमरमर के टुकड़े से बनी है।

– मंदिर की दीवारों पर लगे सुन्दर एवं भव्य काँच बैल्जियम से आयात किए गए है।

बिड़ला प्लेनिटोरियम : 17 मार्च, 1989 को जयपुर में स्टेच्यु सर्किल पर बी.एम. बिड़ला प्लेनिटोरियम स्थापित किया गया। इस संस्थान में जापान | का सबसे आधुनिक, संवेदनशील एवं कम्प्यूटरीकृत मुख्य प्रोजेक्ट लगा हुआ है।

चौमुँहागढ़ : रघुनाथगढ़ व धारधारगढ़ नाम से प्रसिद्ध ठाकुर कर्णसिंह द्वारा 1595-97 में निर्मित चौंमू में स्थित किला। |D मोरिजा किला : जयपुर किले की पंचायत समिति गोविन्दगढ़ में स्थित यह प्राचीन लघु दुर्ग है।

सलीम मंजिल : जयपुर में जौहरी बाजार के पास हल्दियों का रास्ता में स्थित ऐतिहासिक इमारत, जहाँ विश्व महत्व की पैगम्बर साहब की इस्लामी |धरोहर सुरक्षित है।

– जयपुर दरबार की ओर से 18 वीं सदी के प्रारम्भ में विश्व प्रसिद्ध हकीम अजमल खाँ के वंशजों को यह इमारत इनाम में दी गई थी।

नकटी माता का मंदिर जयपुर के निकट जय भवानीपुरा में नकटी माता का प्रतिहारकालीन मंदिर है।

अमर जवान ज्योति स्मारक : जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम के मुख्य द्वार पर बना अमर जवान ज्योति स्मारक का अपनी विशिष्टता और भव्यता के लिए देश में गौरवशाली स्थान है।

– जयपुर के वास्तुविद् अनूप बरतरिया की डिजाइन पर तैयार इस स्मारक में लोगों के बैठने के लिए दो स्टेण्ड बनाए गये हैं। ये स्मारक मात्र आठ महीने की रिकॉर्ड अवधि (8 दिसम्बर, 2004 से 16 अगस्त, 2005) में निर्मित किया गया।

सामोद महल : चौमूं से 9 किलोमीटर दूर स्थित इस महल में शीशमहल एवं सुल्तान महल दर्शनीय है। शीशमहल में काँच का काम तथा सुल्तान महल में शिकार के दृश्य तथा प्रणय दृश्यों का अनुपम अंकन किया गया है।

रामनिवास बाग :सवाई रामसिंह द्वितीय द्वारा 1856-68 ई. में अकाल राहत कार्य के अंतर्गत बनाया गया बाग जिसकी योजना सर्जन डी-फेबैक के द्वारा तैयार की गई थी।

राजेश्वर मंदिर : जयपुर के राजाओं का एक निजी मंदिर जो आम जनता के लिए केवल शिवरात्रि को ही खुलता है। ।

सांभर झील : यह भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। यह देश की सर्वाधिक नमक उत्पादक (8.7%) झील है। इस झील से नमक उत्पादन का कार्य भारत सरकार की देख-रेख में हिन्दुस्तान साल्ट्स कम्पनी लिमिटेड की सहायक कम्पनी साम्भर साल्ट्स लिमिटेड द्वारा किया जाता है। |

जगन्नाथ धा गोनेर : यहाँ स्थित वैष्णव मंदिर की श्री लक्ष्मीनारायण की मूर्ति स्वयंभू है। इस मंदिर का निर्माण आमेर के राजा पृथ्वीराज के काल में हुआ।

चूलगिरि : जयपुर नगर से 4 किमी. दूर जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित चूलगिरि पर्वत पर प्राकृतिक वैभव से परिपूर्ण भगवान पार्श्वनाथ का मंदिर स्थित है। यहाँ पर्वत की गुफा में 24 तीर्थंकरों की प्रतिमायें संगमरमर की दीर्घा में विराजमान की गयी है।

माधोराजपुरा का किला : इस किले के साथ अमीर खाँ पिंडारी की बेगमों को पकड़ कर लाने वाले भगतसिंह नरुका की वीरता की रोमांचक दास्तान जुड़ी है।

जयपुर के प्रमुख संस्थान

राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट : मदरसा हनुरी नाम से सवाई रामसिंह द्वारा (1857-58 ई.) स्थापित संस्थान जिसका नाम कालान्तर (1886 ई) में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट कर दिया गया। यह संस्थान विभिन्न (मूर्तिकला, चित्रकला) विधाओं के कलाकारों को प्रशिक्षण प्रदान करता है।

राजस्थान संगीत संस्थान : 1950 में स्थापित यह संस्थान शास्त्रीय गायन, सितार, वायलिन, तबला, गिटार एवं कत्थक नृत्य के प्रशिक्षण की व्यवस्था करवाता है।

जवाहर कला केन्द्र : पारम्परिक एवं विलुप्त होती जा रही कलाओं की खोज,संरक्षण एवं संवर्द्धन करने के लिए 1993 में स्थापित इस संस्थान की कल्पना प्रसिद्ध वास्तुकार चार्ल्स कोरिया ने तैयार की थी।

जयपुर कत्थक केन्द्र : इसकी स्थापना 1978 में की गई। यह केन्द्र जयपुर घराने के कत्थक नृत्य का पारम्परिक प्रशिक्षण देने तथा नृत्य कला के प्रति रुचि पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

रवीन्द्र मंच : इस संस्थान की स्थापना 15 अगस्त, 1963 को की गई। यहाँ सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। 0 वर्ल्ड टेडू पार्क : जयपुर में 30 जून, 2005 को दक्षिण एशिया के पहले वर्ल्ड ट्रेड पार्क का गोल्डन ब्रिक नाम से शिलान्यास किया गया।

कोटपुतली : यहाँ राजस्थान को-ऑपरेटिव डेयरी फैडरेशन द्वारा भारत का सबसे बड़ा दुग्ध पैकिंग स्टेशन स्थापित किया जा रहा है।

सिलोरा : जयपुर-किशनगढ़ राष्ट्रीय मार्ग पर स्थित रीको के सिलोरा औद्योगिक क्षेत्र में जयपुर टेक्स विविंग पार्क लिमिटेड (जेटीवीपीएल) कम्पनी द्वारा 240 जमीन पर 370 करोड़ रुपये की लागत से देश का पहला आधुनिक एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पावरलूम पार्क/टैक्सटाइल पार्क स्थापित किया जा रहा है।

जयपुर के महत्वपूर्ण तथ्य

फुलेरा (यहाँ एशिया में मीटर गेज का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड स्थित है) से लगभग 8 किमी. दूर स्थित इस झील में मेढ़ा, खारी, रूपनगढ़ व खण्डेला नदियों का पानी बहकर आता है।

– अरावली पर्वत माला में साम्भर के पास ही पहाड़ी की पहली शृंग पर शाकम्भरी मंदिर स्थित है। उल्लेखनीय है साम्भर शाकम्भर का अपभ्रंश है। अनुमान के अनुसार शाकम्भरी देवी का यह स्थान एक हजार छह सौ वर्षों से कम प्राचीन नहीं है। यह चौहान वंश की सर्वप्रथम राजधानी था और इसके अन्तर्गत छोटे-बड़े सवा लाख गाँव थे। इसलिए यह क्षेत्र सवादलक्ष/सपादलक्ष भी कहलाता है।

– साम्भर झील को पर्यटन क्षेत्र में रामसर साइट के नाम से जाना जाता है। 0 गलता : जयपुर के बनारस एवं मंकी वैली उपनामों से प्रसिद्ध, अरावली की पहाड़ियों के बीच स्थित यह तीर्थ स्थल गालव ऋषि के आश्रम के लिए जाना जाता है।

जयपुर शैली : उज्जवलता एंव सजावट के लिए प्रसिद्ध इस शैली में जन-जीवन से संबंधित चित्रों की प्रधानता है। कमर तक फैले केश, मादक नेत्र |लिए हुए नारी चित्रण इस शैली की अन्य प्रमुख विशेषता है। जयपुर शैली पर सर्वाधिक मुगल प्रभाव पड़ा। जयपुर शैली के चित्रकार साहिबराम ने ईश्वरीसिंह का आदमकद चित्र बनाया। |

गधों का मेला : जयपुर जिले की सांगानेर पंचायत समिति का लूणियावास ग्राम पंचायत का भावगढ़ बांध गधों के मेले के लिए विख्यात है। यह मेला दशहरे पर आसोज बदी सप्तमी से ग्यारस तक लगता है। |

पोथीखाना : जयपुर महाराज का निजी पुस्तकालय एवं चित्रकला संग्रहालय। यहाँ पर संस्कृत, फारसी तथा अन्य भाषाओं के प्राचीन ग्रन्थों की मूल प्रतियाँ सुरक्षित हैं।

सांगानेर : जयपुर के दक्षिणी ओर स्थित कस्बा जहाँ 11वीं सदी के संघीजी के जैन मंदिर प्रसिद्ध है।

– सम्पूर्ण विश्व में रंगाई-छपाई हेतु अलग पहचान बना चुके सांगानेर कस्बे के इस उद्योग पर पुनर्स्थापन के निर्णय से इसके अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस क्षेत्र में पानी के प्रदूषण के साथ-साथ लोगों में बीमारियों की भरमार को देखते हुए इस उद्योग को सांगानेर से हटाकर बगर के पास चितरौली में लगाने का आदेश दिया है।

– ज्ञातव्य है कि सांगानेर की छपाई लट्ठा या मलमल पर की जाती है। छापा और रंग काला और लाल) सांगानेर की अपनी विशेषता है। सांगानेर के पास अमानीशाह के नाले से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ ढूंढ नदी छीपों के लिए प्रकृति का वरदान है।

बगरू प्रिन्ट : जयपुर से 30 किमी. दूरी स्थित बगरु में ठप्पा से छपाई का काम होता है, जिसे बगरु प्रिन्ट के नाम से जाना जाता है। यहाँ बनने वाली | वस्तुओं में पीला, चुनरी तथा ओढ़ी प्रमुख हैं। |

शीतलामाता का मेला : जयपुर की चाकसू तहसील स्थित शील की डूंगरी के पास शीतलामाता के मंदिर पर प्रतिवर्ष चैत्र कृष्णा अष्टमी को विशाल मेला | भरता है। मातृरक्षिका देवी शीतला माता के मंदिर का निर्माण जयपुर के भूतपूर्व राजा श्रीमाधोसिंह ने करवाया था। |.

नाहरगढ़ जैविक उद्यान : जयपुर से लगभग 12 किमी. दूर अरावली पर्वतमाला के वन क्षेत्रों में वन्य जीवों को उनकी स्वाभाविक जीवन शैली के अनुसार स्वच्छंद वातावरण उपलब्ध करवाने के लिए राजस्थान के प्रथम व भारत के दूसरे जैविक उद्यान नाहरगढ़ जैविक उद्यान का निर्माण किया गया। |

बस्सी यहाँ राज्य का प्रथम हिमकृत वीर्य बैंक एवं गौवंश संवर्द्धन फॉर्म स्थापित है।

कुण्डा : यहाँ पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु हाथी गाँव की स्थापना की गयी है।

आरायश : जयपुर में भित्ति चित्रों की एक विशेष पद्धति है जिसे स्थानीय भाषा में ‘आलागीला/ मोराकसी’ कहते हैं। इसमें चने के तैयार पलस्तर घोट कर चिकना होने पर कर चिकना होने पर चित्रांकन हेतु प्रयुक्त किया जाता है। इस आलेखन पद्धति से भित्ति चित्र चिरकाल तक सुरक्षित रहते हैं। |

जमवा रामगढ़ अभ्यारण्य : लगभग 300 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत इस अभ्यारण्य की स्थापना 1982 में की गई।

रामगढ़ बाँध : दो पहाड़ियों के बीच की तंग घाटी को बांधकर जयपुर से 30 किमी. दूर पूर्व में जमवा रामगढ़ गाँव के पास बाणगंगा नदी पर यह बांध 16 वर्ग किमी. क्षेत्र में बनाया गया है।

कानोता बाँध : जयपुर शहर के निकट स्थित राजस्थान के सर्वाधिक मछली उत्पादक इस बाँध में जून, 2006 में जलमहल के सीवरेज का गंदा पानी छोड़ा गया जिससे इसमें पल रही लाखों मछलियाँ मारी गयी।

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