Sexual Reproduction In Plants – पौधों में जनन
Sexual Reproduction In Plants – पौधों में जनन 2 प्रकार से होता है- (i) अलिंगी जनन – Asexual Reproduction (ii) लिंगी जनन – Sexual Reproduction
पौधों में अलिंगी – Asexual Reproduction जनन पौधे के किसी भाग से हो सकता है। जैसे :- जड़, तना, पत्ती में कहीं से भी।
पौधों में लिंगी – Sexual Reproduction जनन पुष्प में होता है। ये पुष्प एक लिंगी या द्वि-लिंगी होते हैं।
पुष्प में निम्नलिखित 4 भाग होते हैं –
(i) वाह्य दल (Calyx)- ये पुष्प के सबसे बाहर होते हैं। ये रंगहीन या हल्के हरे रंग के होते हैं। ये पुष्प की सुरक्षा करते हैं।
(ii) दल पुंज (Corolla)- ये पुष्प के रंगीन भाग होते हैं। पुष्प का रंगीन होना इसी पर निर्भर करता है। परागण के समय ये कीटों को आकर्षित करने का कार्य करते हैं।
(iii) पुंकेशर (Androcium)- ये पुष्प के नर भाग होते है। इनमें परागकण का निर्माण होता है।
(iv) स्त्रीकेशर (Gynocium)- ये पुष्प के मादा भाग होते हैं। इनसे फल ओर बीज प्रापत होते हैं।
इसके 3 उप–भाग होते हैं –
(i) वर्तिकाग्र ( Stigma )- ये परागकण के लिए प्लेटफार्म का काम करते हैं
(ii) वर्तिका ( Style )- ये परागकण को अण्डाशय ( Ovary ) तक पहुँचने के लिए मार्ग का कार्य करते हैं
(iii) अण्डाशय ( Ovary )- यह स्त्रीकेशर का सबसे निचला भाग होता है।
यही विकसित होकर फल एवं बीज का रूप लेता है।
लिंगी – sexual Reproduction में जब एक पुष्प का परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र (Stigma) पर या उसी जाति के दूसरे पौधे के पुष्प पर पहुँचता है तो इसे परागण (Polination) कहते हैं। परागण के पश्चात परागकण मादा के बीजाण्ड (Dvules) से संयोग कर भ्रूण (Zygote/Embrio) का निर्माण कर लेते हैं! इस क्रिया को निषेचन (Fertilization) कहते हैं।
परागण (Polination) हवा, जल, कीट, पक्षी आदि द्वारा होते हैं।
जब परागण हवा द्वारा होता है तो उसे ‘एनीमोफीली’, जल द्वारा होता है, तो उसे ‘हाइड्रोफीली’ (Hydrophily), कीट के माध्यम से होने पर, ‘इन्टेमोफीली’ (Entemophily) तथा पक्षी के माध्यम से होने को ‘अर्थिनोफीली’ (Orthinophily) कहते हैं। चमगादड़ से परागण होने को ‘चीरोप्टीरोफीली (Chiropterophily) कहते हैं
विश्व के सबसे बड़े पुष्प रेफ्लेसिया (Refflesia) में परागण हाथी द्वारा होता है।
स्व परागण- एक पुष्प के परागकण का उसी पौधे के उसी पुष्प या दूसरे पुष्प के वर्तिकान पर पहुँचना स्व-परागण (Self Polination) कहते हैं।
पर-परागण- एक पुष्प के परागकण का उसी जाति के अन्य पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र (Stigma) पर पहुँचना पर परागण कहलाता है। पर परागण के पश्चात निषेचन होता है
जो भ्रूण (Zygote) का निर्माण करते हैं। भ्रूण विकसित होकर फल और बीज का निर्माणकरते हैं।
फल और बीज (Fruits and Seeds)
पके हुए अण्डाशय को फल कहते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य अपने अन्दर बीज उत्पन्न कर उनकी रक्षा करना तथा उनके प्रकीर्णन (Scatthering) में सहायता करना है।
फल 3 प्रकार के होते हैं- (1) सत्यफल ( True Fruits ), (2) आभाषी फल या कूट फल ( False Fruit or Pseudocarp ) तथा (3) अनिषेक फल (Parthenopcarpic Fruits)।
(i) निषेचन के पश्चात अण्डाशय की वृद्धि से जो फल बनता है उसे सत्य फल कहते हैं। जैसे- आम, पपीता, बेर, जामुन, नारियल आदि।
(ii) जब कोई फल अण्डाशय से न बनकर पुष्प के किसी अन्य भाग, जैसे–पुष्पासन, पात्र, वाह्य दल-पुंज अथवा पुष्प क्रम से बनतसे हैं तो आभासी फल कहलाते हैं। जैसे-सेब, इस्ट्रावेरी, काजू, शहतूत, कटहल अंजीर, अनन्नास, पीपल आदि। सेव तथा नाशपाती पुष्पासन (Thalamus) से बनते हैं। काजू पुष्पासन तथा पुष्पावली ‘वृन्त’ से बनते हैं। कटहल, अंजीर, शहतूत, अनन्नास, गूलर पुष्पक्रम (Arrangement of Flower) से बनते है।
(iii) जब फल अण्डाशय से बिना निषचेन के ही बन जाते हैं तो उसे अनिषेक फल कहते हैं। ऐसे फलों में बीज बनते हैं। जैसे- केला, अंगूर आदि ।
एक अन्य आधार पर फल 3 प्रकार के होते हैं- (i) एकल फल (ii) सरस फल (iii) संगृहीत फल
मटर, सेम, दाल, सरसों, आम, नारियल, सिंघाड़ा, गेहूँ, चावल, मक्का आदि एकल फल के उदाहरण हैं।
तरबूज, खरबूज, खीरा ककड़ी, करैला, टमाटर, पपीता, अमरूद, बैगन, नींबू, अंगूर, बेल, सेव, आदि सरस फल के तथा शहतूत, अनन्नास, साइकोनस, कटहल, गूलर, पीपल, आदि संग्रहीत फल के उदाहरण हैं।