भारत की मिट्टियाँ – India Soils
भारत की मिट्टियाँ मुख्य रूप से आठ प्रकार पायी जाती हैं
जलोढ़ मिट्टी – Alluvial Soil
• उत्तर भारत के विशाल मैदानों में यह मिट्टी नदियों द्वारा लाकर जमा की गयी है तथा समुद्री तटों पर समुद्री लहरों द्वारा। यह मिट्टी दो उपवर्गों में बँटी हुई है- नयी मिट्टी (खादर) एवं पुरानी जलोढ़ मिट्टी (बांगर)। धान, गेहूँ, दलहन, तिलहन, गन्ना एवं जूट की खेती के लिए यह मिट्टी बहुत उपयुक्त है। यह 46.2 प्रतिशत क्षेत्र में है।
काली मिट्टी – Black Soil or Regur Soil
• यह मिट्टी मुख्यतः दक्कन के लावा क्षेत्र में पाई जाती है। इस मिट्टी का रंग गहरा काला होता है क्योंकि इसमें लोहा, एल्यूमीनियम और मैग्नीशियम लवण की मात्रा अधिक होती है। इस मिट्टी के कण , घने होते हैं जिसके कारण नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है। इसका क्षेत्र महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में फैला हुआ है। यह मिट्टी कपास की फसल के लिए अच्छी होती है।
लाल मिट्टी – Red Soil
इसका निर्माण स्वेदार आग्नेय शैल जैसे ग्रेनाइट तथा निस के विखण्डन से हुआ है। कहीं-कहीं इसका रंग पीला, भूरा, चॉकलेटी और काला भी पाया जाता है। रंग की विभिन्नता का कारण लोहे के अंश की विभिन्नता है। मुख्य रूप से यह मिट्टी दक्षिणी भारत में मिलती है। इस मिट्टी की प्रधान उपज ज्वार-बाजरा, दलहन, तम्बाकू आदि है।
लैटेराइट मिट्टी – Laterite Soil
इसका निर्माण मानसूनी जलवायु के विशेष लक्षण-आर्द्र एवं शुष्क मौसम के क्रमिक परिवर्तन के कारण निक्षालन की प्रक्रिया (leaching away) द्वारा होता है। इसमें सिलिका की कमी होती है। इसमें लोहा तथा ऐल्युमीनियम अधिक होता है। ऊँचाई वाले क्षेत्रों में मिलने वाली लैटेराइट निम्न क्षेत्र में पाई जाने वाली लैटेराइट की तुलना में ज्यादा अम्लीय होती है। यह मिट्टी झारखण्ड के राजमहल, पूर्वी और पश्चिमी घाटों के क्षेत्रों एवं मेघालय के पहाड़ी क्षेत्रों में पायी जाती है। इसम तथा पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग में भी यह मिट्टी पायी जाती है। इसकी प्रधान उपज चाय, कॉफी आदि है।
मरुस्थलीय मिट्टी – Desert Soil
अरावली श्रेणी के पश्चिमी में जलवायु की शुष्कता तथा भीषण ताप के कारण नंगी चट्टाने विखण्डित होकर ये मिट्टी बनाती हैं। यह मिट्टी राजस्थान तथा हरियाणा के दक्षिण-पश्चिमी भाग में पायी जाती हैं। इसमें सिंचाई की उपलब्धता के द्वारा कृषि कार्य सम्भव है।
वन एवं पर्वतीय मिट्टी – Forests and Mountain Soil
• इस प्रकार की मिट्टी अधिकांशतः वनों एवं पर्वतीय क्षेत्रों में मिलती है। ये मिट्टियाँ उन क्षेत्रों को घेरती हैं, जहाँ या तो पर्वतीय ढाल हो या वन्य क्षेत्रों में घाटियाँ हों। इसमें जैविक पदार्थों तथा नाइट्रोजन की अधिकता होती है। यह हिमालय के पर्वतीय भागों तमिलनाडु, कर्नाटक, मणिपुर, आदि जगहों पर मिलती है।
लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी – Saline and Alkaline Soils
• ये अनुर्वर एवं अनुत्पादक रेह, ऊसर एवं कल्लर के रूप में भी जानी जाती है। ये मिट्टियाँ अपने में सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम समाहित करती हैं। उत्तरी भारत के सूखे एवं अर्द्ध सूखे क्षेत्रों, यथा पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान तथा बिहार के कुछ हिस्सों में इस मिट्टी का विस्तार है।
पीट एवं जैविक मिट्टी – Prary and Marshy Soils
उच्च घुलनशील लवण एवं जैविक पदार्थों से युक्त पीट मिट्टी केरल के अलप्पी व कोट्टायम जिले, बिहार के पूर्वोत्तर भाग, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में मिलती है।
राज्य | क्षेत्रफल लाख हेक्टेयर |
---|---|
गुजरात | 12.16 |
प. बंगाल | 8.20 |
आन्ध्र प्रदेश | 5.88 |
हरियाणा | 5.00 |
तमिलनाडु | 4.70 |
महत्वपूर्ण तथ्य
पारिस्थितकीय आधार पर मृदा अधोलिखित प्रकार की होती है। यथा
1. अवशिष्ट मिट्टी ( Residual Soil ) – जो मिट्टी बनने के स्थान पर ही पड़ी रहती है उसे अवशिष्ट मिट्टी कहते हैं।
2. वाहित मिट्टी ( Transported Soil ) – यह मिट्टी बनने वाले स्थान से बहकर आई हुई मिट्टी होती है।
3. जलोढ़ मिट्टी ( Alluvial Soil ) – जो मिट्टी जल द्वारा बहकर दूसरे स्थान पर पहुंचती है।
4. वातोढ़ मिट्टी ( Eoilan ) – जो मिट्टी वायु द्वारा उड़कर दूसरे स्थानपर पहुंचती है।
5. शैल, मलवा मिट्टी ( Colluvial ) – जो मिट्टी पृथ्वी के आकर्षण के द्वारा दूसरे स्थान पर पहुंचती है।