Banswara – बाँसवाड़ा
Banswara – बाँसवाड़ा सौ द्वीपों का शहर के उपनाम से प्रसिद्ध बाँसवाड़ा का नाम यहाँ के प्रतापी शासक बोसना के कारण पड़ा।
Banswara – बाँसवाड़ा राज्य की नींव महारावल जगमालसिंह ने डाली।
अथूणा – परमारों की राजधानी के रूप में विख्यात यह नगर उत्कृष्ट शिल्पकला युक्त मंदिरों के कारण जाना जाता है। इसका प्राचीन नाम उत्थुनक है।
तलवाड़ा मंदिर – Banswara – बाँसवाड़ा से लगभग 15 किमी. दूर स्थित 11वीं शताब्दी के आसपास निर्मित इन मंदिरों में प्रमुख मंदिर सूर्य व लक्ष्मीनारायण का मंदिर है।
– सूर्य की मूर्ति एक कोने में रखी हुई है। और बाहर के चबूतरे पर सूर्य के रथ का एक चक्र टूटा पड़ा है। यहाँ के सोमपुरा जाति के मूर्तिकार प्रसिद्ध है। |
घोटिया अम्बा : Banswara – बाँसवाड़ा से लगभग 30 किमी. दूर बागीदौरा पंचायत समिति में स्थित इस स्थल पर प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या से दूज तक बड़ा मेला लगता है।
इसके बारे में मान्यता है कि पाण्डवों ने वनवास क समय अपना कुछ समय यहाँ व्यतीत किया था। यहाँ पाण्डवों के पाँच कुण्ड बने हुए हैं तथा घोटेश्वर महादेव के मंदिर में कुन्ती व द्रौपदी सहित पाण्डवों की मूर्तियाँ भी स्थापित है।
कालिंजरा : Banswara – बाँसवाड़ा से लगभग 30 किमी. दूर स्थित हिरन नदी के तट पर अवस्थित एक ग्राम, जो जैन मंदिरों के समूह के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर एक बड़ा शिखरबन्द पूर्वाभिमुख ऋषभदेव दिगम्बर जैन मंदिर है।
मानगढ़ : आनन्दपुरी पंचायत समिति से लगभग 14 किमी. दूर गुजरात सीमा पर स्थित मानगढ़ धाम में शरद पूर्णिमा पर आदिवासी भक्त सम्प्रदाय के व्यक्तियों द्वारा मेले का आयोजन किया जाता है।
त्रिपुरा सुन्दरी : तलवाड़ा ग्राम से 5 किमी. दूर स्थित प्राचीन त्रिपुरा सुन्दरी मंदिर स्थित है। इसमें सिंह पर सवार भगवती माता की अष्टादश भुजा की मूर्ति है जिसकी भुजा में 18 प्रकार के आयुध है। यह मंदिर तुरताई माता के नाम से भी जाना जाता है।
→ शक्तिपुर, शिवपुर और विष्णुपुर में स्थित होने के कारण इसका नाम त्रिपुरा सुन्दरी पड़ा। |
पाराहेड़ा : Banswara – बाँसवाड़ा से लगभग 30 किमी. दूर स्थित इस स्थल पर मण्डलेश्वर मंदिर (शिव मंदिर स्थित है।
– बोरखेड़ा नामक स्थान पर माही नदी पर माही बजाज सागर बांध बनाया गया हैं
भवानपुरा यहाँ बोहरा सम्प्रदाय के संत अब्दुल पीर की मजार है।
छींच का ब्रह्माजी मंदिर : छींच ग्राम में 12वीं सदी में सिसोदिया वंश के महारावल जगमाल द्वारा निर्मित ब्रह्माजी के मंदिर स्थित है।
नन्दिनी माता मंदिर : नन्दिनी देवी वही देवी हैं, जो द्वापर युग में यशोदा के गर्भ से उत्पन्न हुई व जिन्हें कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझकर मारने का प्रयत्न किया था।