भारत के खनिज संसाधन एवं उद्योग – Mineral Resources & Industries
कोयला – Coal
कोयला देश में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत हैं और देश की व्यावसायिक ऊर्जा की खपत में इसका योगदान 67 प्रतिशत है। इसके अलावा यह इस्पात और कार्बो-रसायनिक उद्योगों में काम आने वाला आवश्यक पदार्थ है। कोयले से प्राप्त शक्ति खनिज तेल से प्राप्त की गयी शक्ति से दोगुनी, प्राकृतिक गैस से पाँच गुनी तथा जल-विद्युत शक्ति से आठ गुना अधिक होती है। इसके महत्व के कारण इसे काला सोना की उपमा दी जाती है। कोयले के भण्डारों की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है – भारतीय मिनरल ईयर बुक (IMYB) 2009 के अनुसार देश में 1200 मीटर की गहराई तक सुरक्षित कोयले का भण्डार 26721.0 करोड़ टन था।
राज्य | भण्डारण (करोड़ टन में) |
---|---|
झारखण्ड | 7671.1 |
ओडिशा | 6522.6 |
छत्तीसगढ़ | 4448.3 |
प. बंगाल | 2832.6 |
म. प्र. | 2098.1 |
वर्ष 2008-09 के दौरान कोयले का कुल उत्पादन 492.9 मिलियन टन था।
देश में कोयले के समस्त उत्पादन का लगभग 77% भाग बिजली उत्पादन में खपत होता है।
राज्य | उत्पादन % में |
---|---|
छत्तीसगढ़ | 20.7 |
ओडिशा | 20.0 |
झारखण्ड | 19.5 |
मध्य प्रदेश | 14.4 |
आन्ध्र प्रदेश | 9.0 |
भारत में कोयले के प्रकार
कार्बन, वाष्प व जल की मात्रा के आधार पर भारतीय कोयला निम्न प्रकार का है
1. एन्थेसाइट कोयला (Anthracite Coal) : यह कोयला सबसे उत्तम है। इसमें कार्बन की मात्रा 80 से 95 प्रतिशत, जल की मात्रा 2 से 5 प्रतिशत तथा वाष्प 25 से 40 प्रतिशत तक होती है। जलते समय यह धुंआ नहीं देता तथा ताप सबसे अधिक देता है। यह जम्मू-कश्मीर राज्य से प्राप्त होता है।
2. बिटुमिनस कोयला (Bituminous Coal) : यह द्वितीय श्रेणी का कोयला है। इसमें कार्बन की मात्रा 55% से 65%, जल की मात्रा 20% से 30% तथा 35% से 50% होती है। यह जलते समय साधारण धुंआ देता है। गोंडवाना काल का कोयला इसी प्रकार का है।
3. लिग्नाइट कोयला (Lignite Coal) : यह घटिया किस्म का भूरा कोयला है। इसमें कार्बन की मात्रा 45 प्रतिशत से 55 प्रतिशत, जल का अंश 30 प्रतिशत से 55 प्रतिशत तथा वाष्प 35 प्रतिशत से 50 प्रतिशत होती है। यह कोयला राजस्थान, मेघालय, असम, वेल्लोर, तिरुवनालोर (तमिलनाडु), दार्जिलिंग (प. बंगाल) में मिलता है।
कोयला क्षेत्र
(क) गोंडवाना कोयला क्षेत्र : गोंडवाना क्षेत्र के अन्तर्गत दामोदर घाटी के प्रमुख कोयला क्षेत्र निम्न हैं
रानीगंज क्षेत्र : प. बंगाल का रानीगंज कोयला क्षेत्र ऊपरी दामोदर घाटी में है जो देश का सबसे महत्वपूर्ण एवं बड़ा कोयला क्षेत्र है। इस क्षेत्र से देश का लगभग 35% कोयला प्राप्त होता है।
राज्य | % मात्रा |
---|---|
तमिलनाडु | 80.36 |
राजस्थान | 11.65 |
गुजरात | 6.81 |
क्षेत्र | राज्य |
---|---|
झरिया | झारखण्ड |
कालाकोड | जम्मू-कश्मीर |
उमरसार | गुजरात |
पलाना | राजस्थान |
बाहुर | पांडिचेरी |
निचाहोम | जम्मू-कश्मीर |
बरकला | केरल |
नवेली | तमिलनाडु |
नागचिक नाम | अरुणाचल प्रदेश |
राज्य | % अंश में |
---|---|
तमिलनाडु | 65.7 |
गुजरात | 31.1 |
राजस्थान | 3.08 |
क्षेत्र | % अंश में |
---|---|
तापीय संयन्त्र | 74.6 |
ईंटों के भट्टे | 9.9 |
इस्पात उद्योग | 3.7 |
सीमेन्ट उद्योग | 3.5 |
उर्वरक | 1.0 |
धनबाद जिले में स्थित झरिया कोयला क्षेत्र झारखण्ड राज्य का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक क्षेत्र है। देश के 90% से अधिक कोकिंग कोयले के भण्डार यहाँ स्थित हैं। कोयला धोवन शालाएँ सुदामडीह तथा मोनिडीह में स्थित हैं।
गिरिडीह क्षेत्र : झारखण्ड राज्य में स्थित, यहाँ के कोयले की मुख्य विशेषता यह है कि इससे अति उत्तम प्रकार का स्टीम कोक तैयार होता है जो धातु शोधन के लिए उपयुक्त है।
बोकारो क्षेत्र : यह हजारीबाग में स्थित है। यहाँ भी कोक बनाने योग्य उत्तम कोयला मिलता है। यहाँ मुख्य यह करगाली है जो लगभग 66 मीटर मोटी है।
करनपुरा क्षेत्र : यह ऊपरी दामोदर की घाटी में बोकारो क्षेत्र से तीन किलोमीटर पश्चिम में स्थित है।
सोन घाटी कोयला क्षेत्र : इस क्षेत्र केअन्तर्गत मध्य प्रदेश के सोहागपुर, सिंद्वारौली, तातापानी, रामकोला और उड़ीसा के औरंगा, हुटार के क्षेत्र आते हैं।
महानदी घाटी कोयला क्षेत्र : इस क्षेत्र के अन्तर्गत उड़ीसा के तलचर और सम्भलपुर क्षेत्र, मध्य प्रदेश के सोनहट तथा विश्रामपुर-लखनपुर क्षेत्र मुख्य हैं।
छत्तीसगढ़ में कोरबा क्षेत्र की खाने हैं। इसका उपयोग भिलाई के इस्पात कारखाने में होता है। कोरबा के पूर्व में रायगढ़ की खानें हैं। चलवर खाने ब्राह्मणी नदी घाटी में हैं।
आन्ध्र प्रदेश के सिंगरैनी क्षेत्र में उच्च किस्म का कोयला मिलता है।
(ख) सिंगरैनी युग के कोयला क्षेत्र : सम्पूर्ण भारत का 2 प्रतिशत कोयला टर्शियरी युग की चट्टानों से प्राप्त होता है। इसके मुख्य क्षेत्र राजस्थान, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और तमिलनाडु हैं। राजस्थान में लिग्नाइट कोयले के भण्डार पलाना, बरसिंगरसर, बिथनोक (बीकानेर) कपूरकड़ी, जालिप्पा (बाड़मेर) और कसनऊ-इग्यार (नागैर) में है।
तमिलनाडु राज्य के दक्षिण में अर्काट जिले में नवेली नामक स्थान पर लिग्नाइट कोयला मिलता है। लिग्नाइट का सर्वाधिक भण्डार तथा उत्पादक तमिलनाडु में होता है। मन्नारगुड़ी (तमिलनाडु) में लिग्नाइट का सबसे बड़ा भण्डार अवस्थित है।
खनिज तेल अथवा पेट्रोलियम ( Mineral Oil or Petroleum )
पेट्रोलियम टर्शियरी युग की जलज अवसादी (Aqueous sedimntary rocks) शैलों का ‘चट्टानी तेल’ है। जो हाइड्रोकार्बन यौगिकों का मिश्रण है। इसमें पेट्रोल, डीजल, ईथर, गैसोलीन, मिट्टी का तेल, चिकनाई तेल एवं मोम आदि प्राप्त होता है। भारत में कच्चे पेट्रोलियम का उत्पादन 2008-09 में 33.5 मिलियन टन था। जिसमें अभितटीय (Onshore) क्षेत्र का योगदान 11.21 मिलियन टन तथा अपतटीय (Offshore) क्षेत्र का योगदान 22.3 (66.6%) मिलियन टन था।
भारत में अवसादी बेसिनों का विस्तार 720 मिलियन वर्ग किमी. क्षेत्र पर है जिसमें 3.140 मिलियन वर्ग किमी. का महाद्वीपीय तट क्षेत्र सम्मिलित है। इन अवसादी बेसिनों में 28 बिलियन टन हाइड्रो-कार्बन के भण्डार अनुमानित किये गये हैं, जिनमें स 20082009 तक 7-70 बिलियन टन भण्डार स्थापित किये जा चुके हैं। हाइड्रोकार्बन में 70% तेल एवं 30% प्राकृतिक गैस मिलती है। प्राप्ति योग्य भण्डार 2.60 बिलियन टन होने का अनुमान है।
खनिज तेल क्षेत्र
भारत में चार प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र हैं। यथा
- ब्रह्मपुत्र घाटी
- गुजरात तट
- पश्चिमी अपतटीय क्षेत्र
- पूर्वी अपतटीय क्षेत्र
ब्रह्मपुत्र घाटी : यह देश की सबसे पुरानी तेल की पेटी है जो दिहिंग घाटी से सुरमा घाटी तक 1300 किमी. क्षेत्र में विस्तृत है। यहाँ के प्रमुख तेल उत्पादक केन्द्र हैं- डिगबोई (डिब्रुगढ़), नाहरकटिया, मोरनहुद्वारीजन, रुद्रसागर-लकवा तथा सुरमाघाटी।
गुजरात तट
- यह क्षेत्र देश का लगभग 18 प्रतिशत तेल उत्पादन करता है। यहाँ तेल उत्पादन की दो पेटियाँ हैं। यथा खम्भात की खाड़ी के पूर्वी तट के सहारे, जहाँ अंकलेश्वर तथा खम्भात प्रमुख तेल क्षेत्र हैं।
- खेड़ा से महसाना तक, जहाँ कलोर, सानन्द, नवगाँव, मेहसाना तथा बचारजी प्रमुख तेल क्षेत्र हैं। भरूच, मेहसाना, अहमदाबाद, खेड़ा, बड़ोदरा तथा सूरत प्रमुख तेल उत्पादक जिले हैं।
- अंकलेश्वर तेल क्षेत्र भरूच जिले में 30 वर्ग किमी. क्षेत्र पर विस्तृत है।
- अशुद्ध तेल कोयली तथा ट्राम्बे में परिष्कृत किया जाता है। खम्भात : लुनेज क्षेत्र, जिसे ‘गान्धार क्षेत्र’ भी कहते हैं, बड़ोदरा के 60 किमी. पश्चिम में स्थित है।
- अहमदाबाद-कलोर क्षेत्र खम्भात बेसिन के उत्तर में अहमदाबाद के चारों ओर स्थित है।
क्षेत्र/राज्य | मात्रा मिलियन क्यूबिक मी. में |
---|---|
अपतटीय | 24086 (73.3%) |
गुजरात | 2605 (7.93%) |
असोम | 2603 (7.92%) |
आन्ध्र प्रदेश | 1524 (4.63%) |
तमिलनाडु | 1542 6 |
त्रिपुरा | 553 |
सम्पूर्ण भारत | 32849 (100%) |
सार्वजनिक क्षेत्र | 25265 (76.9%) |
निजी क्षेत्र | 7584 (23.0%) |
क्षेत्र/राज्य | मात्रा (हजार टन में) |
---|---|
अपतटीय | 22232 (66.35%) |
गुजरात | 5944 (17.74%) |
असोम | 4673 (13.94%) |
तमिलनाडु | 289 5 |
आन्ध्र प्रदेश | 265 |
सम्पूर्ण भारत | 33506 |
सार्वजनिक क्षेत्र | 28832 (86.0%) |
निजी क्षेत्र | 4674 (13.94%) |
क्षेत्र/राज्य | कच्चा तेल (मिलियन टन मे) | प्राकृतिक गैस (बिलियन क्यूबिक मी.) |
---|---|---|
भारत | 773.30 | 1115.27 |
(क) अपतटीय | 452.46 | 840.09 |
(ख) तटीय | 320.84 | 27517 |
सम्पूर्ण भारत | 773.30 | 1115.27 |
3. पश्चिमी अपतटीय क्षेत्र
इस क्षेत्र से देश के समस्त कच्चे तेल उत्पादन का 67 प्रतिशत उत्पादित किया जाता है। इसके अन्तर्गत तीन क्षेत्र सम्मिलित किये जाते हैं। यथा
- बम्बई-हाई तेल क्षेत्र देश का विशालतम तेल उत्पादक क्षेत्र है जिसका राष्ट्रीय उत्पादन में 60% से अधिक योगदान है। यह मुम्बई के 176 किमी. दक्षिण पश्चिम में लगभग 2500 वर्ग किमी. क्षेत्र पर विस्तृत है। अतिदोहन के कारण इसका उत्पादन निरन्तर घट रहा है।
- बेसीन तेल क्षेत्र बम्बई हाई के दक्षिण पश्चिम में स्थित है। इस क्षेत्र के तेल भण्डार बम्बई हाई से अधिक बड़े हैं। अलियाबेट तेल क्षेत्र भावनगर से 45 किमी. दूर खम्भात की खाड़ी में स्थित है।
4. पूर्वी अपतटीय क्षेत्र
- पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस कृष्णा, गोदावरी तथा कावेरी नदियों के बेसिनों तथा डेल्टाओं में प्राप्त हुए हैं। कृष्णा-गोदावरी अपतटीय बेसिन में स्थित रवा क्षेत्र में तेल प्राप्त हुआ है। अन्य तेल क्षेत्र अमलापुरु (आन्ध्र प्रदेश), नारिमानम तथा कोइरकलापल्ली (कावेरी बेसिन) में स्थित हैं अशुद्ध तेल चेन्नई के निकट पनाइगुड़ि में परिष्कृत किया जाता है।
- अशुद्ध तेल कावेरी डेल्टा, ज्वालामुखी (हिमाचल प्रदेश) तथा बाड़मेर (राजस्थान) में भी प्राप्त हुआ है।
- मन्नार की खाड़ी (तिरुनेलवेली तट), पाइन्ट कालीमीर तथा जफना प्रायद्वीप एवं अवन्तांगी, कराईकुडी तट, बंगाल की खाड़ी, कश्मीर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक विस्तृत पेटी, अण्डमान द्वीप के पश्चिम में अपतटीय क्षेत्र आदि में भी तेल प्राप्ति की सम्भावना है। सरकार ने नयी खोज लाइसेन्स नीति के तहत 48 नये क्षेत्रों में तेल की खोज के लिये विदेशी कम्पनियों से निविदा आमन्त्रित किये थे।
यूरेनियम
इसकी प्राप्ति धारवाड़ तथा आर्कियन श्रेणी की चट्टानोंपेग्मेटाइट, मोनोजाइट बालू तथा चेरालाइट में होती है। यूरेनियम के प्रमुख अयस्क पिंचब्लेंड, सॉमरस्काइट एवे थेरियानाइट है। झारखण्ड का जादूगोडा (सिंहभूम) क्षेत्र यूरेनियम खनन के लिए सुप्रसिद्ध है। सिंहभूम जिले में ही भाटिन, नारवा, पहाड़ और केरुआडूंगरी में भारी यूरेनियम के स्रोतों का पता लगा है। राजस्थान में यूरेनियम की प्राप्ति भीलवाड़ा, बूंदी और उदयपुर जिलों से होती है।
थोरियम
भारत विश्व का सर्वाधिक थोरियम उत्पादक राष्ट्र है। थोरियस मोनोजाइट रेत से प्राप्त किया जाता है, जिसका निर्माण प्री-कैम्ब्रियन काल की चट्टानों के विध्वंश चूर्ण से हुआ है। जो मुख्यतः केरल के तटवर्ती भागों में मिलता है। इसके अलावा यह नीलगिरि (तमिलनाडु), हजारीबाग (झारखण्ड) और उदयपुर (राजस्थान) जिलों में तथा पश्चिमी तटों के ग्रेनाइट क्षेत्रों में रवों के रूप में भी प्राप्त होता है।
अभ्रक – Mica
अभ्रक का मुख्य अयस्क पिग्माटाइट है। वैसे यह | मस्कोवाइट, बायोटाइट, फ्लोगोपाइट तथा लेपिडोलाइट जैसे खनिजों का समूह है, जो आग्नेय एवं कायांतरित चट्टानों में खण्डों के रूप में पाया जाता है। मिनरल ईयर बुक 2009 के अनुसार भारत 1206 हजार टन अभ्रक उत्पादित कर विश्व का (0.3%) 15वाँ सर्वाधिक अभ्रक उत्पादक राष्ट्र है। ज्ञातव्य है कि अभ्रक का मुख्य उपयोग विद्युतीय सामान में इन्सुलेटर सामग्री के रूप में तथा वायुयानों में उच्च शक्ति वाली मोटरों में, रेडियों उद्योग तथा रडार में होता है।
राज्य | % अंश |
---|---|
आन्ध्र प्रदेश | 28 |
बिहार | 3 |
महाराष्ट्र | 17 |
राजस्थान | 51 |
राज्य | % अंश में |
---|---|
आन्ध्र प्रदेश | 100.0 |
राजस्थान | उत्पादन नहीं हुआ |
बिहार | उत्पादन नहीं हुआ |
झारखण्ड | उत्पादन नहीं हुआ |
प्राकृतिक अभ्रक के उत्पादन में भारत का विश्व में 15वाँ (0.3%) स्थान है जबकि अभ्रक शीट के उत्पादन एवं भण्डारण में प्रथम स्थान है। इसके आयातक देशों में जापान, यू.एस.ए. ब्रिटेन प्रमुख है। अभ्रक उत्पादक प्रमुख क्षेत्र अधोलिखित हैं। यथा
राज्य | क्षेत्र |
---|---|
आन्ध्र प्रदेश | नैल्लोर और खम्भात |
राजस्थान | जयपुर तथा उदयपुर |
झारखण्ड | हजारीबाग, सिंह भूमि |
बिहार | गया, आगलपुर, मुंगेर |
जिप्सम – Gypsum
यह अवसादी चट्टानों पाया जाता है। इसे सैलेनाइट भी | कहते हैं। यह कैल्शियम का एक जलकृत सल्फाइड है। इसका उपयोग मृदा सुधारक, सीमेंट तथा चूना मिलाकर प्लास्टर-ऑफ-पेरिस, रंग-रोगन-रासायनिक पदार्थों, गन्धक का अम्ल एवं रासायनिक खाद बनाने में किया जाता है।
राज्य | % अंश में |
---|---|
राजस्थान | 43.28 |
जम्मू एवं कश्मीर | 42.46 |
तमिलनाडु | 9.37 |
राज्य | % अंश में |
---|---|
राजस्थान | 99 |
जम्मू एवं कश्मीर | 0.80 |
जिप्सम उत्पादक प्रमुख क्षेत्र अधोलिखित है। यथा
राज्य | क्षेत्र |
---|---|
राजस्थान | नागौर, बीकानेर, जैसलमेर, गंगानगर, बाड़मेर, और पाली जिले |
जम्मू एवं कश्मीर | उरी, बारामूला, डोडा जिले |
तमिलनाडु | कोयम्बटूर, तिरुचिरपाल्ली व चिंगलपेट जिला |
बॉक्साइट – Bauxite
बॉक्साइट टर्शियरी युग में निर्मित लेटराइटी शैलों से सम्बद्ध है, जो एल्युमिनियम का ऑक्साइड है। यह अवशिष्ट अपक्षय का प्रतिफल है जिससे सिलिका का निक्षालन होता है। ज्ञातव्य है कि बॉक्साइट में एल्युमिना की मात्रा 55 से 65 प्रतिशत होता है।
एल्युमिनियम एक हल्की, मजबूत, धातुवर्गनीय (Malleable), तन्य (Ductile), ऊष्मा एवं विद्युत की संचालक तथा वायुमण्डलीय संक्षारण की प्रतिरोधी धातु होने के कारण सर्वाधिक उपयोगी धातुओं में गिनी जाने लगी है। यह विद्युत, धातुकर्मी, वैमानिकी (Aeronautics), स्वचालित वाहनों, रसायन, रिफ्रेक्टरी बॉक्साइट से 1 टन एलुमिना का उत्पादन और 2 टन एलुमिना से 1 टन एल्यूमिनियम का उत्पादन होता है। IMEB-09 के अनुसार भारत में बॉक्साइट का कुल भण्डार 328 करोड़ टन का है, जो विश्व के समस्त बॉक्साइट भण्डार का 7 प्रतिशत है अर्थात् संचित भण्डार की दृष्टि से भारत का स्थान चतुर्थ है।