भारत की जलवायु | भारत के जलवायु प्रदेश I Climate Of India
भारत की जलवायु – climatic regions of india
भारत की जलवायु – अनेक विद्वानों ने भारत की जलवायु प्रदेशों में विभाजित करने का प्रयास किया है। इन प्रयासों में ट्रवार्था ( Trevartha ) का जलवायु प्रादेशीकरण काफी प्रचलित हैं। इस वर्गीकरण के आधार पर भारत को निम्नलिखित जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया जा सकता है।
भारत की जलवायु ऊष्णकटिबंधीय वर्षावन जलवायु – tropical rainforest climate
देश के उत्तरी-पूर्वी भाग तथा पश्चिमीतटीय मैदान इस प्रदेश के अंतर्गत आते हैं। इन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 200 सेमी. (कुछ क्षेत्रों में 800 सेमी.) से अधिक होती है तथा तापमान वर्षभर 18.2° से. से अधिक रहता है। इस ऊष्ण जलवायु प्रदेश के कुछ भागों में तापमान वर्षभर 29° से. तक पाए जाते हैं। देश का सर्वाधिक वर्षा का स्थान मासिनराम, जो चेरापुंजी के निकट मेघालय में है, इसी प्रदेश में स्थित है। इन क्षेत्रों में ऊँची आर्द्रता वनस्पति की वृद्धि के लिए अनुकूल है। इन क्षेत्रों की प्राकृतिक सघन वर्षा वन है तथा ये वन सदाहरति होते हैं।
भारत की जलवायु ऊष्ण कटिबंधीय सवाना जलवायु – tropical savanna climate
सहयाद्रि के वृष्टि छाया में आने वाले अर्द्ध शुष्क जलवायु के क्षेत्र को छोड़कर लगभग पूरे प्रायद्वीपीय पठार में इस प्रकार की जलवायु पाई जाती है। इस क्षेत्र में भी औसत मासिक तापमान 18.2° से. से अधिक रहता है। वार्षिक तापांतर ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वनों के क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक ऊँचा होता है।
वर्षा की मात्रा भी न केवल कम है बल्कि वर्षा ऋतु भी अपेक्षाकृत छोटी होती है। वर्षा की औसत वार्षिक मात्रा पश्चिम में 76 सेमी. से पूर्व में 152 सेमी. के बीच होती है। इन क्षेत्रों की वनस्पति में वर्षा की मात्रा के अनुसार विभिन्नता पाई जाती है। अपेक्षाकृत नम क्षेत्रों में पतझड़ वालेवन पाए जाते हैं तथा अपेक्षाकृत शुष्क क्षेत्रों की वनस्पति काँटेदार झाड़ियों तथा पर्णपाती वृक्षों का सम्मिश्रण होती है।
भारत की जलवायु ऊष्णकटिबंधीय अर्द्धशुष्क स्टेपी जलवायु – tropical semi– arid steppe climate
यह जलवायु मध्य महाराष्ट्र से तमिलनाडु तक विस्तृत वृष्टि छाया की पेटी में पाई जाती है। कम तथा अनिश्चित वर्षा इस जलवायु की प्रमुख विशेषता हैं औसत वार्षिक वर्षा 38.1 सेमी. से 72.2 सेमी. है तथा तापमान दिसंबर में 20° से. से 28.8° से. के मध्य रहता हैं ग्रीष्मकाल में औसत मासिक तापमान 32.8° से. तक चला जाता है।
वर्षा की सीमित मात्रा तथा अत्यधिक अनियमितता के कारण ये क्षेत्र सूखाग्रस्त रहते हैं जिससे इस क्षेत्र में कृषि को हानि पहुँचती है। जलवायु के दृष्टिकोण से यह क्षेत्र केवल पशुपालन तथा शुष्क कृषि के लिए अनुकूल है। इस क्षेत्र में उगने वाली वनस्पति में काँटेदार वृक्षों तथा झाड़ियों की अधिकता पाई जाती है।
भारत की जलवायु ऊष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधीय स्टेपी जलवायु – warm and subtropical steppe climate
थार के मरुस्थल तथा गंगा के मैदान के अधिक नम क्षेत्रों के मध्य स्थित पंजाब से थार तक फैले एक विस्तृत क्षेत्र में इस प्रकार की जलवायु पाई जाती है। इस क्षेत्र के दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व में प्रायद्वीपीय पहार के अपेक्षाकृत नम क्षेत्र स्थित हैं। इस क्षेत्र की जलवायु उत्तरी तथा थार के मरुस्थल के बीच संक्रमण प्रकार की हैं। वर्षा 30.5 तथा 63.5 सेमी. के मध्य होती है तथा तापमान 12° से. से 35° से. के मध्य रहता है।
ग्रीष्मकाल में तापमान ऊँचा होता है तथा अनेक बार 45° से. तक पहुँच जाता है। वर्षा की मात्रा सीमित ही नहीं अपितु यह अत्यधिक अनियमित भी है। यह क्षेत्र केवल शुष्क कृषि तथा पशुपालन के लिए अनुकूल हैं। कृषि केवल सिंचाई की सहायता से संभव है।
भारत की जलवायु ऊष्णकटिबंधीय मरुस्थली जलवायु – tropical desert climate
राजस्थान के पश्चिमी भाग तथा कच्छ के रन के कुछ भागों में इस प्रकार की जलवायु पाई जाती है। इन क्षेत्रों में वर्षा बहुत कम होती है तथा कई बार कई वर्षों तक वर्षा नहीं होती। वर्षा की औसत मात्रा 30.5 सेमी. से कम, कई भागों में 12 सेमी. से भी कम, होती है। इन खेत्रों में भीषण गर्मी होती है। शीतकाल में तापमान अपेक्षाकृत नीचा होता है तथा इस क्षेत्र के उत्तरी भागों में जनवरी में औसत तापमान 11.60 से. तक गिर जाता हैं इस शुष्क जलवायु के क्षेत्र में वनस्पति आवरण बहुत ही कम है। केवल काँटेदार पौधे और कुछ घास ही इस क्षेत्र में उग पाते हैं।
भारत की जलवायु आर्द्र शीतकाल वाली नम उपोष्ण जलवायु – humid subtropical climate with a humid winter
इस प्रकार की जलवायु हिमालय से दक्षिण में एक विस्तृत क्षेत्र में पाई जाती है। इस जलवायु प्रदेश के दक्षिण में ऊष्णकटिबंधीय सवाना प्रदेश तथा इसके पश्चिम में ऊष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधीय स्टेपी प्रदेश हैं।
आर्द्र शीतकाल वाला यह जलवायु क्षेत्र हिमालय के साथ-साथ पंजाब से असम तक विस्तृत है तथा अरावली से पूर्व का राजस्थान का क्षेत्र भी इसी जलवायु प्रदेश के अंतर्गत सम्मिलित कियाजाता है। इस प्रदेश में वर्षा का औसत 63.5 सेमी. से 125.4 सेमी. तक है। इसके उत्तरी भाग में, हिमालय से संलग्न क्षेत्र में वर्षा अधिक होती है तथा दक्षिण की ओर पूर्व से पश्चिम की ओर भी कम होती जाती है। अधिकांश वर्षा ग्रीष्मकाल में होती है तथा कुछ क्षेत्रों में पश्चिमी विक्षोभों के प्रभाव से शीतकाल में भी वर्षा होती है।
भारत के जलवायु प्रदेश पर्वतीय जलवायु – mountain climate
इस प्रकार की जलवायु का प्रमुख क्षेत्र हिमालय क्षेत्र है। पर्वतीय क्षेत्रों में सूर्य के सम्मुख तथा इससे विमुख ढालों पर तापमान में काफी विषमता पाई जाती है। हिमालय क्षेत्र में वर्षा की मात्रा सामान्यता पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। पवनों के अभिमुख तथा विमुख ढालों के बीच भी वर्षण में महत्वपूर्ण अंतर पाया जाता है।
सामान्यता हिमालय के दक्षिणी ढालों पर, जो दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनों के अभिमुख ढाल हैं, वर्षा की मात्रा उत्तरी ढालों की अपेक्षा अधिक होती है। यही कारण है कि हिमालय के दक्षिणाभिमुख ढालों पर वनस्पति का आवरण भी सामान्यतः अधिक घना पाया जाता है।
ऋतु | भारतीय कैलेंडर के अनुसार महीने | अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार महीने |
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ग्रीष्म | ज्येष्ठ-आषाढ़ | मई-जून |
बसंत | चैत्र–बैसाख | मार्च-अप्रैल |
वर्षा | श्रावण-भाद्र | जुलाई-अगस्त |
शरद | आश्विन-कार्तिक | सितंबर-अक्टूबर |
शिशिर | माघ–फाल्गुन | जनवरी-फरवरी |
हेमंत | मार्गशीष–पौष | नवंबर-दिसंबर |
शीत ऋतु – winter season
- भारत में शीत ऋतु, दिसंबर, जनवरी व फरवरी माह में होती है। शीत ऋतु के दौरान तापमान सामान्यतः 21°C रहता हैं
- शीत ऋतु काल में उत्तरी भारत में वायु दाब उच्च रहता है व उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें स्थल से समुद्र की ओर प्रवाहमान रहती है
- जिससे शीत ऋतु शुष्क रहती है। शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभ के कारण वर्षा होती है। ऐसा क्षीण चक्रवातीय अवदबावों के कारण होता है। पश्चिमी विक्षोभ की उत्पत्ति पूर्वी भूमध्य सागर में होती है जो पूर्व की ओर बढ़ कर पश्चिमी एशिया, ईरान, अफगानिस्तान व पाकिस्तान को पार करके भारत पहुँचता है व मार्ग में कैस्पियन सागर व फारस की खाड़ी से प्राप्त आर्द्रता के द्वारा उत्तरी भारत में वर्षा करता है।
- तमिलनाडु में शीतकाल में वर्षा होगी।
- शीत ऋतु में आने वाली व्यापारिक पवनों के उत्तर-पूर्वी मानसून कहते हैं। इन व्यापारिक पवनों से उत्तर भारत में रबी की फसल को विशेष लाभ होता है। इस समय पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में अत्यधिक हिमपात के साथ-साथ चेन्नई में भी भारी वर्षा होती है।
ग्रीष्म ऋतु – summer season
- भारत में मार्च-जून के मध्य ग्रीष्म ऋतु होती है। मार्च माह में सूर्य के कर्क रेखा की ओर गमन के कारण भारत में तापमान बढ़ने लगता है। तापमान बढ़ने के कारण दक्षिण का तापमान मार्च में 43°C तक पहुँच जाता है। उत्तरी भारत में यह सिीति मध्य मई में आती है।
- तापमान बढ़ने के साथ-साथ वायुदाब भी घटता जाता है। इस समय निम्न वायुदाब का केन्द्र राजस्थान व नागपुर के पठारी क्षेत्रों में बनता है। मार्च-मई के मध्य वायु की दिशा व मार्ग में परिवर्तन होने से पछुआ पवन चलती है जो लू कहलाती है। ये अत्यंत उष्ण व शुष्क होती है। आर्द्र व शुष्क पवनों के मिलने से आँधी चलती है व वर्षा होती है। पश्चिम बंगाल, कोलकाता में काल वैशाखी वर्षा इसका उदाहरण है।
- दक्षिण भारत व असम में मई माह में होने वाली वर्षा अत्यंत लाभदायक होती है। असम में यह वर्षा चाय के लिए लाभप्रद होती है व इसे चाय वर्षा कहते हैं। इस प्रकार केरल कर्नाटक में इसे आम्रवृष्टि कहते हैं। यह वर्षा जूट, चाय, कहवा, चावल के लिए उपयोगी होती है।
वर्षा ऋतु ( मानसून ) – rainy season ( monsoon )
- भारत में वर्षा ऋतु का काल जून-सितंबर के मध्य रहता है
- जून माह में सूर्य की करणों कर्क रेखा पर सीधी पड़ रही। रहती हैं। जिसके कारण पश्चिमी मैदानी भागों में पवन गर्म होकर ऊपर उठ जाती है व कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है। कम दबाव का क्षेत्र इतना प्रबल होता है कि कम दबाव क्षेत्र को भरने के लिए दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा पार कर जब ये पवनें भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बढ़ती हैं तो पृथ्वी की गति के कारण इनकी दिशा में परिवर्तन हो जाता है तथा ये दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहने लगती हैं। इसी कारण जून-सितंबर के मध्य होने वाली वर्षा को दक्षिण-पश्चिम मानसूनी वर्षा कहते हैं। मानसून पवनें, व्यापारिक पवनों के विपरीत परिवर्तनशील होती हैं।
- दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनों का उद्गम स्थल समुद्र में होता हैं जब ये पवनें भारतीय उपमाहद्वीप में प्रवेश करती हैं तो अरब सागर व बंगाल की खाड़ी से नमी प्राप्त कर लेती है। मानसूनी पवनें भारतीय सागरों में मई माह के अंत में प्रवेश करती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून सर्वप्रथम लगभग 5 जून के आसपास केरल तट पर वर्षा करता है व महीने भर में संपूर्ण भारत में वर्षा होने लगती है। भारतीय उपमाहद्वीप की स्थलाकृति के कारण दक्षिण-पश्चिम मानसून निम्नलिखित दो शाखाओं में विभक्त हो जाता है
- » अरब सागर शाखा – Arabian Sea Branch
- » बंगाल की खाड़ी शाखा – Bay of Bengal Branch
अरब सागर शाखा (मानसून)
यह शाखा देश के पश्चिमी तटों, पश्चिमी घाटों, महाराष्ट्र, गुजरात व मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में वर्षा करती है। पंजाब में बंगाल की खाडत्री से आनेवाली मानसूनी शाखा से मिल जाती है। यह शाखा पश्चिम घाटों पर भारी वर्षा करती है, परंतु दक्कन के पश्चिमी घाट के दृष्टि-छाया प्रदेश में होने के कारण इन क्षेत्रों में अल्प वर्षा हो पाती है। इसी प्रकार गुजरात व राजस्थान में पर्वत अवरोधों के अभाव के कारण वर्षा कम हो पाती है।
दक्षिण-पश्चिम मानसून की दोनों शाखाओं में अरब सागर शाखा अधिक शक्तिशाली है और यह शाखा बंगाल की खाड़ी की शाखा की अपेक्षा लगभग तीन गुना अधिक वर्षा करती है। इसके दो कारण हैं, पहला- बंगाल की खाड़ी शाखा का एक ही भाग भारत में प्रवेश करता है और दूसरा भाग म्यांमार व थाईलैण्ड की ओर मुड़ जाता है।
अरब सागर मानसून की उत्तरी शाखा, गुजरात, कच्छ की खाड़ी व राजस्थान से प्रवेश करती है। यहाँ पर्वतीय अवरोध न होने के कारण इन क्षेत्रों में यह शाखा वर्षा नहीं करती तथा सीधे उत्तर-पश्चिम की पर्वतमालाओं से टकराकर जम्मू-कश्मीर व हिमाचल प्रदेश में भारी वर्षा करती है। मैदानी भागों की ओर लौटते समय नमी की मात्रा कम होती है। अतः लौटती पवनों के द्वारा राजस्थान में अल्प वर्षा होती है।
बंगाल की खाड़ी शाखा (मानसून)
मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा उत्तर दिशा में बंगाल, बांग्लादेश व म्यांमार की ओर बढ़ती है। म्यांमार की ओर बढ़ती मानसून पवनों का एक भाग अराकम पहाड़ियों से टकराकर भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम बंगाल व बांग्लादेश में आता है।
यह शाखा हिमालय पर्वतमाला के समांतर बढ़ते हुए गंगा के मैदान में वर्षा करती हैं। हिमालय पर्वतमाला मानसूनी पवनों को पार जाने से रोकती हैं व संपूर्ण गंगा बेसिन में वर्षा होती है। उत्तर व उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ी शाखा उत्तर-पूर्वी भारत में भारी वर्षा करती है। मेध्ज्ञालय में तथा गारो, खासी व जयंतिया पहाड़ियों कीपनुमा स्थाकृति की रचना करती है जिसके कारण यहाँ अत्यधिक वर्षा होती है। विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान चेरापूंजी (वर्तमान में मासिनराम) इन्हीं पहाड़ियों में स्थित है।
शरद ऋतु
शरद ऋतु उष्ण बरसाती मौसम से शुष्क व शीत मौसम के मध्य संक्रमण का काल है। शरद ऋतु का आरंभ सितंबर मध्य में होता है। यह वह समय है जब दक्षिण-पश्चिम मानसून लौटता है- लौटते मानसून के दौरान तापमान व आर्द्रता अधिक होती है जिसे “अक्टूबर हीट” कहते हैं। मानसून के लौटने पर प्रारंभ में तापमान बढ़ता है परंतु उसके उपरांत तापमान कम होने लगता है।
तापमान में कमी का कारण यह है कि इस अवधि में सूर्य की किरणें कर्क रेखा से भूमध्य रेखा की ओर गमन कर जाती हैं व सितंबर में सीधी भूमध्य रेखा पर पड़ती हैं। साथ ही उत्तर
भारत के मैदानों में कम दबाव का क्षेत्र इतना प्रबल नहीं रहता कि वह मानसूनी पवनों को आकर्षित कर सकें।
सितंबर मध्य तक मानसूनी पवनें पंजाब तक वर्षा करती हैं। मध्य अक्टूबर तक मध्य भारत में व नवंबर के आरम्भिक सप्ताहों में दक्षिण भारत तक मानसूनी पवनें वर्षा कर पाती हैं और इस प्रकार भारतीय उपमहाद्वीप से मानसून की विदाई नवंबर अंत तक हो जाती है। यह विदाई चरणबद्ध होती है इसीलिए इसे “लौटता दक्षिण-पश्चिम मानसून” कहते हैं।
शरद ऋतु में बंगाल की खाड़ी से चक्रवात उठते हैं जो भारत व बांग्लादेश में भयंकर तबाही मचाते हैं। चक्रवातों के कारण पूर्वी तटों पर भारी वर्षा होती है।
नोट :-
ग्रीष्म ऋतु में मानसून पूर्व की वर्षा प्राप्त होती है जो | भारत के औसत वार्षिक वर्षा का लगभग 10 प्रतिशत होती है। | विभिन्न भागों में इस वर्षा के अलग-अलग स्थानीय नाम हैं।यथा-
(i) आम्र वर्षा (Mango shower) : ग्रीष्म ऋतु के खत्म होते-होते पूर्व मानसून बौछारें पड़ती हैं, जो केरल में यह एक आम बात है। स्थानीय तौर पर इस तूफानी वर्षा को आम्र वर्षा कहा जाता है, क्योंकि यह आमों को जल्दी पकने में सहायता देती हैं कर्नाटक में इसे कॉफी वर्षा (Coffee shower) एवं चेरी ब्लॉसम कहाा जाता है।
(ii) फूलों वाली बौछार : इस वर्षा से केरल व निकटवर्ती कहवा उत्पादक क्षेत्रों में कहवा के फूल खिलने लगते हैं।
(iii) काल बैसाखी : असम और पश्चिम बंगाल में बैसाख के महीने में शाम को चलने वाली ये भयंकर व विनाशकारी वर्षायुक्त पवनें हैं। इनकी कुख्यात प्रकृति का अंदाजा इनके स्थानीय नाम काल बैसाखी से लगाया जा सकता है। जिसका अर्थ है- बैसाख के महीने में आने वाली तबाही। चाय, पटसन व चावल के लिए ये पवने अच्छी हैं। असम में इन तूफानों को ‘बारदोली छीड़ा’ अथवा ‘चाय वर्षा’ (Tea Shower) कहा जाता है।
(iv) लू : उत्तरी मैदान में पंजाब से बिहार तक चलने वाली ये शुष्क, गर्म व पीड़ादायक पवनें हैं। दिल्ली और पटना के बीच इनकी तीव्रता अधिक होती है।