मानव में तंत्रिका तंत्र – Nervous System In Human
Nervous system human – तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण तंत्रिका कोशिकाओं से होता है।
तंत्रिका कोशिकाओं को न्यूरॉन के नाम से जाना जाता है।
न्यूरॉन शरीर की सबसे बड़ी या लम्बी कोशिकाएं होती हैं।
तंत्रिका कोशिकाओं में पुनरूद्भवन की क्षमता सबसे कम होती है अर्थात मस्तिष्क में पुनरूद्भवन की क्षमता सबसे कम होती है।
यकृत मनुष्य के शरीर का ऐसा अंग है जिसमें पुनरूद्भवन की संख्या सबसे ज्यादा होती है।
कार्य और संरचना के आधार पर तंत्रिका कोशिकाएं दो प्रकार की होती हैं जिन्हें क्रमशः संवेदी और प्रेरक तंत्रिका कोशिकाएं कहा जाता है।
संवेदी तंत्रिका कोशिकाएं संवेदी अंगों के द्वारा ग्रहण की गई सूचनाओं को मस्तिष्क में पहुँचाती हैं।
प्रेरक तंत्रिका कोशिकाएं मस्तिष्क के द्वारा दी गई सूचनाओं को शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाती हैं।
शरीर में सूचनाओं या सन्देशों का आदान-प्रदान करने वाले अंग सामूहिक रूप से Nervous System तन्त्रिका तन्त्र’ कहलाते हैं।
इसमें मुख्यतया 4 अंग हैं- (1) तन्त्रिका कोशिका, (2) तन्त्रिका गुच्छिका, (3) मस्तिष्क, (4) मेरूरज्जु।
संपूर्ण तन्त्रिका तन्त्र को कार्यों के आधार पर 2 भागों में विभाजित किया गया है-
(1) The central nervous system – केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र (मुख्यतया इसमें मस्तिष्क, मेरूरज्जु तथा तन्त्रिकाएं आती हैं।)
(2) autonomous nervous system – स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र (इसमें मुख्यतया स्वतः संचालित होने वाले अंग, जैसे- हृदय, फेफड़ा, पाचन तन्त्र, उत्सर्जी तन्त्र आते हैं।) केन्द्रीय Nervous System तन्त्रिका तन्त्र पर व्यक्ति का नियन्त्रण होता है, जबकि स्वायत्त शाली तन्त्र स्वतन्त्र होते हैं।
The central nervous system (CNS) – केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र
इसके 3 भाग हैं- (i) मस्तिष्क, (ii) मेरूरज्जु, (iii) तन्त्रिकाएं।
(i) मस्तिष्क (Brain) : यह तन्त्रिका तन्त्र का सबसे महत्वपूर्ण भाग है।
यह शरीर का नियन्त्रण केन्द्र होता है। मनुष्य के मस्तिष्क का भार लगभग 1300 से 1400 ग्राम होता है।
मस्तिष्क के ऊपर मेनिनजेस नामक झिल्ली पायी जाती है।
यह भी 3 उप–भागों में विभक्त किया जाता है –
अ. प्रमस्तिष्क ( Cerebrum ) : यह मस्तिष्क का अग्रभाग होता है।
इसका बाह्य भाग धूसर ( Gray ) द्रव्य और आन्तरिक भाग- श्वेत पदार्थों (White Matter) का बना होता है।
इसका कार्य ऐच्छिक क्रियाओं (दृष्टि, स्पर्श, श्रवण, स्वाद, गन्ध आदि) और बुद्धि-विवेक पर नियन्त्रण करना है।
यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग होता है। शरीर में ताप का नियन्त्रण इसी भाग से होता है।
अनुमस्तिष्क ( Cerebellum ) : यह मस्तिष्क का पश्च भाग होता है। इसमें धूसर (Gray) पदार्थ की मात्रा कम होती है।
यह शरीर सन्तुलन का कार्य करता है। खड़े होने, नृत्य, टहलने, दौड़ने, साइकिल चलाने इत्यादि के दौरान शरीर का सन्तुलन अनुमस्तिष्क करता है।
अन्तस्था ( Medulla Oblongata ) : यह मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग होता है जो रीढ़ रज्जु से जुड़ा हुआ है।
यह अनैच्छिक एवं स्वचालित क्रियाओं, जैसे- फेफड़े के कार्य, हृदय के कार्य, पाचन तन्त्र, रक्त प्रणाली, उत्सर्जन तन्त्र के कार्यों, श्वास-दर, रक्त दाब, शरीर-ताप इत्यादि पर नियन्त्रण रखता है।
(ii) मेरूरज्जु ( Spinal Cord ) : अन्तस्थ मस्तिष्क आगे चलकर मेरूरज्जु में परिवर्तित हो जाता है।
मेरूरज्जु, मेयदण्ड के भीतर 3 झिल्लियों- क्रमशः मृदुतानिका (Piamater), जालतानिका (Archnoid), क्लूरामेटर (Cluramater) से घिरी होता है।
मेरूरज्जु का मुख्य कार्य-संवेदी अंगों से संवेदना (संदेश) को मस्तिष्क के अभीष्ट अवयवों तक पहुँचाना तथा मस्तिष्क के आदेश को कार्य स्थल तक पहुँचाना होता है।
(iii) तन्त्रिकाएं ( Nerves ) : ये तन्तुओं ( Fibres ) के समूह होते हैं।
ये संवेदी अंगों की सूचनाओं को मेरूरज्जु या मस्तिष्क तक पहुँचाती हैं।
मेरूरज्जु आगे बढ़कर शाखाओं में विभाजित होकर तन्त्रिकाओं में परिवर्तित हो जाता है।
autonomous nervous system – स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र
शरीर में ये तन्त्रिकाएं अनैच्छिक क्रियाओं (जिस पर शरीर का कोई नियन्त्रण नहीं होता), जैसे- हृदय के कार्य, फेफड़ों के कार्य, पाचन तन्त्र के कार्य, रक्तवाहिनियों के कार्य इत्यादि को नियन्त्रित करते हैं।
Autonomic Or Peripheral Tantrika Tantra/ Nervous System स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र 2 उप-भागों में विभक्त किये जाते हैं-
अनुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र ( Sympathetic Tantrika Tantra/Nervous System ) तथा सहानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र ( Para-Sympathetic Tantrika Tantra/Nervous System )
अनुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र ( Sympathetic Tantrika Tantra/Nervous System ) : इसके अन्तर्गत मेरूरज्जु के पार्श्व ग ( Lateral Horn ), अनुकम्पीय धड़ ( Sympathetic Trunk ) और अनुकम्पी कोशिकाएं आती हैं।
इस तन्त्र का केन्द्रीय भाग पार्श्व श्रृंग है। इसके कोशिका प्रवर्द्ध मेरूरज्जु से निकलते हैं और अलग होकर अनुकम्पीय धड़ में प्रवेश करते हैं।
इसका कार्य हृदय की धड़कनों को उत्तेजित करना है।
सहानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र ( Para-Sympathetic Tantrika Tantra/Nervous System ) : इस तन्त्र के अन्तर्गत सहानुकम्पी नाभिक गुच्छिका और तन्त्रिका तंतु आते हैं।
इनका कार्य अनुकम्पी तन्त्रिका तंत्र के कार्यों के विपरीत कार्य करना है। अनुकम्पी और सहानुकम्पी तन्त्रिकाएं अंगों के कार्यों में समायोजन की स्थिति निर्मित करती है।
अनुकम्पी तन्त्र पुतलियों को विस्तारित, लार और अश्रु ग्रन्थियों के स्राव को कम, लघु धमनियों और शिराओं को संकुचित, हृदय धमनियों को विस्तारित, रक्त चाप (दाब) तथा हृदय-धड़कन की दर को बढ़ाने का कार्य करते हैं।
इसके विपरीत-सहानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र पुतलियों को संकुचित, लार और अश्रुग्रन्थियों के स्राव में वृद्धि, लघु धमनियों एवं शिराओं को विस्तारित, हृदय धमनियों को संकुचित, रक्त दाब तथा हृदय-धड़कन की दर को घटाने का कार्य करते हैं।
प्रतिवर्ती क्रिया ( Reflex Action )
प्रतिवर्ती क्रिया की खोज मार्शल हॉल नामक वैज्ञानिक ने किया।
शरीर में अचानक होने वाली अनैच्छिक क्रियाओं को प्रतिवर्ती क्रिया कहा जाता है। किसी उद्दीपन के प्रति उत्तर में किसी अंग में Central Nervous System – केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र की जो प्रतिक्रिया होती है, उसे परिवर्ती क्रिया कहते हैं। इस क्रिया का नियन्त्रण मेरूरज्जु करता है।
ऐसी क्रियाओं पर मस्तिष्क का कोई नियन्त्रण नहीं होता। उदाहरणार्थ- किसी में पिन चुभ जाती है तो ‘आरोही तन्त्रिका‘ ( Ascending Nerves ) इसकी सूचना मेरूरज्जु को देती है, मेरूरज्जु के आदेश को ‘अवरोही’ ( Descending Nerves ) तन्त्रिका अँगुली तक पहुँचाती है।
परिणामतः हाथ वहाँ से हट जाता है। हाँ का सुई चुभने की दशा में हट जाना परिवर्ती क्रिया कहलाती है।