समुद्र विज्ञान ( Oceanography )

समुद्र विज्ञान - पृथ्वी पर व्याप्त विशाल जलीय भाग को चार महासागरों में विभक्त किया गया है

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समुद्र विज्ञान ( Oceanography )

समुद्र विज्ञान
समुद्र विज्ञान

पृथ्वी पर व्याप्त विशाल जलीय भाग को चार महासागरों में विभक्त किया गया है : 

(क) प्रशान्त महासागर 

(ख) अटलांटिक महासागर 

(ग) हिन्द महासागर 

(घ) आर्कटिक महासागर 

विभिन्न समुद्र, खाड़ियां, गर्त और उपखाड़ियां आदि इन्हीं महासागरों के भाग हैं। 

पृथ्वी की सतह का 70 प्रतिशत से अधिक भाग महासागरों द्वारा घिरा हुआ है। 

ये सौर ऊर्जा के लिए बचत कोष की भांति कार्य करते हैं। ग्रीष्म ऋतु एवं दिन में अतिरिक्त सौर उर्जा को संचित कर जाड़े में एवं रात में उसकी क्षतिपूर्ति करते हैं। 

अपने व्यापक सतह के कारण सौर ऊर्जा का लगभग 71 प्रतिशत भाग प्राप्त करते हैं। 

सौर ऊर्जा के अवशोषण से समुद्र की ऊपरी परत अपेक्षाकृत अधिक गर्म हो जाता है जिससे इसके घनत्व में कमी आती है। 

विषुवतीय क्षेत्रों में समुद्री सतह ध्रुवीय क्षेत्रों की अपेक्षा ज्यादा गर्म होती है। 

समुद्री क्षेत्रों में धात्विक एवं अधात्विक पदार्थों जैसे-पेट्रोलियम, गैसें, लवण, मैंगनीज, सोना, हीरा, लोहा आदि का अपार भंडार है। 

ब्रोमीन और सल्फर, जो सतह पर बहुत विरले पाये जाते हैं, का बहुत बड़ा भंडार सागरीय क्षेत्रों में है। 

समुद्र से लगभग 90 प्रकार से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। 

इनमें महत्वपूर्ण है : तरंग ऊर्जा, वायु ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा आदि ।

महासागरीय नितल उच्चावच

महासागरों के तल विश्व की सबसे बड़ी पर्वत शृंखलाओं, सबसे गहरी खाड़ियों और सबसे बड़े मैदानों से बने हुए हैं। महासागरों के तल की सही मैपिंग सोनार (Sound Navigation and Ranging) की सहायता से संभव हुई है। सागरीय नितल में चार प्रमुख उच्चावच मण्डल पाये जाते हैं :

(क) महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shell) 

(ख) महाद्वीपीय मग्न ढाल (Continental Slope) 

(ग) गहरा सागरीय मैदान (Abyssal Plain) 

(घ) महासागरीय गर्त (Ocean’s Deep)

महाद्वीपीय मग्नतट

महाद्वीपों का किनारे वाला वह भाग जो कि महासागरीय जल में डूबा रहता है, उस पर जल की औसत गहराई 100 फैदम (1 फैदम = 6 फीट) तथा ढाल 10 से 3° के बीच होती है, महाद्वीपीय मग्नतट कहलाता है। 

महाद्वीपीय मग्नतट का विस्तार महाद्वीपों की तटरेखा से महाद्वीपीय किनारे तक होता है। 

महाद्वीपीय मग्नतट का छिछलापन सूर्य के प्रकाश को पानी के पार जाने में सक्षम बनाता है जिससे छोटे पौधे और अन्य सूक्ष्म जीवों के विकास को सहायता मिलती है। 

इसलिए ये प्लवकों (Plankton) से समृद्ध होते हैं जहां पर सतह और तल से भोजन लेने वाली लाखों मछलियां आती हैं। 

समुद्री खाद्य लगभग पूरी तरह से महाद्वीपीय मग्नतट से आता है। 

महाद्वीपीय मग्नतट विश्व के सबसे समृद्ध मत्स्य क्षेत्र हैं जैसेन्यूफाउंडलैण्ड का ग्रैण्ड बैंक, उत्तरी सागर का डोगर बैंक और दक्षिण पूर्वी एशिया का सण्डा सेल्फ | 

ये मग्नतट खनिजों के प्रचुर भण्डार हैं। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैसों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा इन्हीं से आता है।

महाद्वीपीय ढाल

जलमग्न तट तथा गहरे सागरीय मैदान के बीच तीव्र ढाल वाले मण्डल को ‘महाद्वीपीय मग्न ढाल’ कहा जाता है। 

यह 200-3500 मीटर तक लंबी होती है। समस्त सागरीय क्षेत्रफल के 8.5% भाग पर मग्न ढाल पाये जाते

इस क्षेत्र में दर्रे (Canyons) और खाइयां (Trenches) पाई जाती हैं।

गहरे सागरीय मैदान

सागरीय मैदान महासागरीय नितल का सर्वाधिक विस्तृत मण्डल होता है, जिसकी गहराई 3000 से 6000 मीटर तक होती है। 

समस्त महासागरीय क्षेत्रफल के लगभग 75.9% भाग पर सागरीय मैदान का विस्तार पाया जाता है।

महासागरीय गर्त

महासागरीय गर्त महासागरों के सबसे गहरे भाग होते हैं जो महासागरीय नितल के लगभग 7% भाग पर फैले हैं। 

विश्व की सबसे गहरी गर्त मरियाना ट्रेंच है जो कि पश्चिम प्रशान्त महासागर में फिलिपीन्स के पास स्थित है।

महासागरीय उच्चावच

प्रशान्त महासागर (The Pacific Ocean)

यह सबसे बड़ा महासागर है।

 यह पृथ्वी की सम्पूर्ण सतह के एक तिहाई भाग पर फैला हुआ है। 

आकार में यह पृथ्वी के सम्पूर्ण स्थलीय भाग से भी अधिक है। 

इसका आकार लगभग त्रिभुजाकार है जिसका शीर्ष बेरिंग जलसन्धि की ओर उत्तर में अवस्थित माना जा सकता है। 

यह सबसे गहरा महासागर भी है। 

इस सागर का अधिकांश भाग औसतन 7300 मीटर गहरा है। 

20,000 से अधिक द्वीप इस महासागर में अवस्थित हैं। 

महासागर में अवस्थित ये द्वीप प्रवालभित्ति तथा ज्वालामुखी द्वारा बने हुए हैं। 

उत्तरी प्रशान्त महासागर सबसे गहरा भाग है तथा इस भाग की औसत गहराई 5000-6000 मीटर के बीच है। 

मरियाना गर्त 10,000 मीटर से अधिक गहरी है। 

यह विश्व की सर्वाधिक गहरी गर्त है जिसे चैलेंजर ट्रेंच भी कहते हैं।

अटलाटिक महासागर (TheAtlantic Ocean)

इसकी तटरेखा सबसे लंबी है। यह आकार में लगभग प्रशांत महासागर का आधा है तथा पृथ्वी के कुल सतह का छठा भाग घेरे हुए है। 

यह अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर ‘S’ के आकार में है। 

इसी महासागर में सर्वाधिक मग्नतट पाये जाते हैं। 

हडसन की खाड़ी, बाल्टिक सागर और उत्तरी सागर मग्नतट इसमें अवस्थित हैं।

अटलांटिक महासागर की एक महत्वपूर्ण विशेषता इसमें पाया जाने वाला मध्य अटलांटिक कटक है। 

यह उत्तर से दक्षिण तक महासागर के समानान्तर ‘S’ आकार में फैला हआ है। 

अजोर्स द्वीप, केप वर्ड द्वीप, पीको द्वीप आदि इसके उदाहरण हैं। 

कुछ प्रवाल द्वीप भी हैं, जैसे—बरमूडा द्वीप और ज्वालामुखीय द्वीप। इसके अलावे सेंट हेलेना, ट्रिस्टन डा कुन्हा, गफ आदि ज्वालामुखी द्वीप हैं। 

नोट : लब्रोडोर धारा कनाडा के उत्तरी तट से होकर बहती है और गर्म गल्फ धारा से मिलती है। इन दो धाराओं का मिलन, जिनमें एक गर्म व एक ठंडी है, न्यूफाउंडलैण्ड के गिर्द प्रसिद्ध गाँग का निर्माण करती है। इन धाराओं के मिलन से विश्व के सबसे महत्त्वपूर्ण मत्स्य क्षेत्र बनते हैं। इसमें उत्तर-पश्चिम अटलांटिक का ग्रैंड बैंक क्षेत्र शामिल हैं।

हिन्द महासागर (The Indian Ocean)

भारतीय प्रायद्वीप के दोनों किनारों पर स्थित दो खाड़ियां बंगाल की खाड़ी और अरब सागर हिन्द महासागर से संबंधित हैं।

हिन्द महासागर में हजारों द्वीप हैं, उदाहरणार्थ मालदीव और कोकोस द्वीप प्रवालभित्ती द्वीप है और मॉरिशस व रीयूनियन ज्वालामुखीय द्वीप हैं।

नाममहासागरसबसे गहरा बिंदुगहराई (मीटर में)
1. मरियाना खाईपश्चिमी प्रशांतचैलेंजर डीप11,034
2. टोंगा-करमाडेक खाईदक्षिणी प्रशांतविट्याज 11 (टोंगा)10,850
3. कुरिल-कमचटका खाईपश्चिमी प्रशांत10,542
4. फिलिपाईन खाईउत्तर प्रशांतगैलथिया डीप10,539
5. प्यूरटो रिको खाईपश्चिमी अटलांटिकमिलवाउकी डीप8.648

लवणता एवं तापमान

महासागर एवं समुद्र की एक मुख्य विशेषता उसकी लवणता है।

1000 ग्राम समुद्री जल में उपस्थित लवण की मात्रा लवणता को दर्शाती है। 

समान लवणता वाले क्षेत्रों को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा समलवण रेखा (Isohaline ) कहलाती है। 

समुद्री लवणता को मापने वाला यंत्र सेलिनोमीटर (Salinometer) कहलाता है। 

सागरों व झीलों की लवणता बहुत अधिक होती है क्योंकि नदियों से लगातार उनमें लवणता का प्रवाह होता है। 

इनका जल वाष्पीकरण के कारण और अधिक लवणयुक्त हो जाता है। 

लवणता समुद्री जल के तापीय प्रसार, तापमान, सौर विकिरण का अवशोषण, वाष्पीकरण, आर्द्रता आदि को निर्धारित करती है।

ग्रेट साल्ट झील (अमेरिका)220%
मृतसागर (पश्चिम एशिया)240%
लेक वैन (तुर्की)330%
लवणप्रतिशत मात्रा
अन्य0.5
कैल्शियम सल्फेट3.6
पोटैशियम सल्फेट2.5
मैग्नीशियम क्लोराइड10.9
मैग्नीशियम सल्फेट4.7
सोडियम क्लोराइड77.8

तापमान

महासागर की गहराई के बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटता है। 

औसतन महासागर की सतह पर स्थित जल का तापमान 26.7° सेंटिग्रेड होता है और तापमान विषुवत रेखा से ध्रुव की ओर लगातार कम होता जाता है। 

उत्तरी गोलार्ध में स्थित महासागर दक्षिणी गोलार्ध के महासागरों से अपेक्षाकृत अधिक औसत तापमान दर्शाते हैं। 

यह भली-भांति ज्ञात तथ्य है कि महासागर का अधिकतम तापमान हमेशा उनकी सतह पर होता है क्योंकि वे सूर्य से सीधे ऊष्मा प्राप्त करते हैं और यह संवहन द्वारा इनके निचले तल को जाता है।

प्रवाल-भित्ति (Coral Reefs)

प्रवाल भित्ति का निर्माण सागरीय जीव मूंगे या कोरल पॉलिप्स के अस्थिपंजरों के समेकन तथा संयोजन द्वारा होता है। 

प्रवाल भित्ति का निर्माण 25° उत्तरी अक्षांश से 25° द. अक्षांश के मध्य 200-300 फीट की गहराई तक किसी द्वीप या तट के किनारे या सागरीय चबूतरों पर जहां सूर्य की किरणें पहुंचती है, वहां होता 20°-25° से. तापमान इनके विकास के लिए आदर्श होता है। 

उच्च लवणता व अति स्वच्छ जल दोनों प्रवाल के विकास के लिए हानिकारक हैं। 

आकृति के आधार पर प्रवाल-भित्ति तीन प्रकार की होती है : 

(क) तटीय प्रवाल-भित्ति (Fringing Reef) 

(ख) अवरोधक प्रवाल-भित्ति (Barrier Reef) 

(ग) एटॉल (Coral Ring orAtoll) 

तटीय प्रवाल-भित्ति : महाद्वीपीय किनारे या द्वीप के किनारे निर्मित होने वाली प्रवाल-भित्ति को तटीय प्रवाल भित्ति कहते हैं | उदाहरण-दक्षिणी फ्लोरिडा, मन्नार की खाड़ी आदि ।

अवरोधक प्रवाल-भित्ति : तटीय धरातल की प्रवालभित्तियों को अवरोधक प्रवाल भित्ति कहते हैं। तटीय धरातल व भित्तियों के बीच विस्तृत परंतु छिछला लैगून होता है। ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तटी से लगी ग्रेट बैरियर भित्ति 120 मील लंबी है। 

एटॉल : घोड़े की नाल या मुद्रिका के आकार वाली प्रवाल भित्ति को एटॉल कहा जाता है। यह प्रायः द्वीप के चारों ओर या जलमग्न पठार के ऊपर अण्डाकार रूप में पायी जाती है। इसके बीच में लैगून पाया जाता है। उदाहरण-फुनफुटी एटॉल, फिजी एटॉल आदि। 

महासागरीय धाराएं

सागरों में जल के एक निश्चित दिशा में प्रवाहित होने की गति को ‘धारा’ कहते हैं। महासागरों में धाराओं की उत्पत्ति कई कारकों के सम्मिलित प्रभाव के फलस्वरूप सम्भव होती है। 

जैसे-पृथ्वी की घूर्णन गति, सागर के तापमान में भिन्नता, लवणता में भिन्नता, घनत्व में भिन्नता, वायुदाब तथा हवाएं, वाष्पीकरण और वर्षा आदि । 

धाराओं की गति, आकार तथा दिशा के आधार पर इसके अनेक प्रकार हैं: 

(a) प्रवाह (Drift): जब पवन वेग से प्रेरित होकर सागर की सतह का जल आगे की ओर अग्रसर होता है तो उसे प्रवाह कहते हैं। इसकी गति तथा सीमा निश्चित नहीं होती है। उदाहरण-उत्तर अटलांटिक एवं दक्षिण अटलांटिक प्रवाह ।। 

(b) धारा (Current): जब सागर का जल एक निश्चित सीमा के अन्तर्गत निश्चित दिशा में तीव्र गति से अग्रसर होता है तो उसे धारा कहते है। इसकी गति प्रवाह से अधिक होती है। 

(c) विशाल धारा (Stream): जब सागर का अत्यधिक जल भूतल की नदियों के समान एक निश्चित दिशा में गतिशील होता है तो उसे विशाल धारा कहते हैं। इसकी गति प्रवाह तथा धारा दोनों से अधिक होती है। उदाहरण-गल्फस्ट्रीम | 

तापमान के आधार पर महासागरीय धाराएं दो प्रकार हो होती हैं :

(1) गर्म धारा तथा

2) ठण्डी धारा 

यदि जलधारा का तापमान उस स्थान के जल के तापमान से अपेक्षाकृत उच्च होता है, जहां यह जलधारा पहुंचती है, तो इसे गर्म जलधारा कहते हैं और यदि उस स्थान का तापमान जलधारा के तापमान से अधिक होता है तो यह ठण्डी जलधारा कहलाती सामान्यतः विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने वाली जलधारा गर्म होती है एवं ध्रुवों से विषुवत रेखा की ओर आने वाली जलधारा ठण्डी होती है। 

कोरिऑलिस बल के कारण उत्तरी गोलार्ध में जलधारा की दिशा में विक्षेपण दाहिनी तरफ तथा दक्षिण गोलार्ध में बायीं तरफ होता है। 

20°-40° उत्तर और 350-75° पश्चिम में स्थित सरगासो सागर धाराओं से घिरा सागर है। अर्थात् इसका कोई तट नहीं है। 

यह अटलांटिक महासागर का सर्वाधिक लवणयुक्त और गर्म हिस्सा है।

महासागरीय धारा का महत्व 

वायुमंडलीय परिसंचरण की तरह, महासागरीय धाराएं भी ऊष्मा का स्थानान्तरण विषुवत रेखा से ध्रुवों तक करती हैं। 

इसके द्वारा विपुल जलराशि एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जायी जाती है जिससे पृथ्वी की सतह पर तापीय संतुलन को बनाए रखने में महासागर एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। 

इन जलधाराओं से एक व्यापक जलीय परिसंचरण तंत्र विकसित होता है जो सभी महासागरों को प्रभावित करता है। 

व्यापारिक हवाएं अफ्रीका के तट से बड़ी मात्रा में जल को बहाकर कैरेबियाई एवं मैक्सिको की खाड़ी में ले जाती है। 

यहां पर जल जमाव के कारण ही गल्फ स्ट्रीम जैसी गर्म जलधारा का आविर्भाव होता है। 

इसी तरह, पछुआ हवाओं द्वारा गल्फस्ट्रीम के जल को ब्रिटेन एवं यूरोप में तट तक बहाकर ले जाया जाता है। 

प्रचलित हवाओं का सर्वाधिक प्रभाव पूर्व-पश्चिम दिशा में प्रवाहित समुद्री जलधारा पर पड़ता है। 

उत्तर-दक्षिण प्रवाह से तापमान में अन्तर पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता जब वायु का प्रवाह तट से समुद्र की ओर होता है तो उस तटीय क्षेत्रों में ठण्डी जलधारा का विकास होता है जैसे-केनारी एवं बेंगुला धारा। 

समुद्री जलधारा तटीय क्षेत्रों के जलवायु को प्रभावित करती है। 

वे तापमान, आर्द्रता एवं वर्षा को प्रभावित करती है।

जलधाराप्रकृति
क्यूरोशिवोगर्म
ओयाशिवो/क्युराइलठण्डी
ओखोत्स्कठण्डी
अलास्कनगर्म
कैलिफोर्नियाठण्डी
पूर्वी ऑस्ट्रेलियाईगर्म
पेरू/हम्बोल्टठण्डी
प्रति विषुवतरेखीयगर्म
दक्षिण विषुवतरेखीयगर्म
अलनीनोगर्म
अंटार्कटिक धाराठण्डी
उत्तर विषुवतरेखीयगर्म
जलधाराप्रकृति
उ. विषुवतरेखीय धारागर्म
गल्फ स्ट्रीमगर्म
फ्लोरिडागर्म
उत्तरी अटलांटिक ड्रिफ्टगर्म
नारवेजियन धारागर्म
जलधाराप्रकृति
इरमिंगेर धारागर्म
रेनील धारागर्म
लेब्रोडोर धाराठण्डी
केनरी धाराठण्डी
पूर्वी ग्रीनलैंड धाराठण्डी
द. विषुवतरेखीय धारागर्म
ब्राजीलियन धारागर्म
एंटलिज धारागर्म
द. अटलांटिक ड्रिफ्टठण्डी
फॉकलैण्ड धाराठण्डी
बेंगुला धाराठण्डी
अंटार्कटिक धाराठण्डी
जलधाराप्रकृति
मोजाम्बिक धारागर्म
अगुल्हासगर्म
द. प. मानसूनी धारागर्म एवं अस्थायी
उ. पू. मानसूनी धाराठण्डी एवं अस्थायी
सोमाली धाराठण्डी एवं अस्थायी
प. ऑस्ट्रेलियाई धाराठण्डी एवं स्थायी
द. हिन्दमहासागरीय धाराठण्डी

ज्वार-भाटा (Tides)

सूर्य तथा चन्द्रमा की आकर्षण शक्तियों के कारण सागरीय जल के आवर्ती रूप से ऊपर उठने तथा गिरने को क्रमशः ज्वार तथा भाटा कहते हैं । 

पृथ्वी के निकट होने के कारण चंद्रमा ज्वार-भाटा पर सर्वाधिक प्रभाव डालता है। 

जब सूर्य, चन्द्रमा व पृथ्वी एक सीधी रेखा में होते हैं तो ज्वार सबसे ऊंचा होता है। 

यह स्थिति पूर्णमासी तथा अमावस्या को होती है। इसे बृहत् ज्वार (Spring Tide) कहते हैं। 

इसके विपरीत, जब सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा मिलकर समकोण बनाते हैं तो सूर्य तथा चन्द्रमा के आकर्षण बल एक दूसरे के विपरित कार्य करते हैं, जिस कारण निम्न ज्वार (Neap Tide) अनुभव किया जाता है। 

यह स्थिति प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की अष्टमी को होती है। 

घूमती हुई पृथ्वी पर स्थित एक ही रेखा को दोबारा चंद्रमा के लंबवत नीचे आने में 24 घंटे व 52 मिनट का समय लगता है। 

अतः ज्वार-भाटा 12 घंटे व 26 मिनट के नियमित अंतराल पर आता है। सामान्यतः ज्वार-भाटा प्रतिदिन दो बार आता है लेकिन इंग्लैण्ड के दक्षिणी तट पर स्थित साउथम्पटन में दिन में चार बार ज्वार-भाटा आता है। 

सुनामी (Tsunami)

सुनामी जापानी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है तट पर आती समुद्री लहरें। 

इनका ज्वारीय तरंगों से कोई संबंध नहीं होता। 

ये महासागरीय भूकम्पों के प्रभाव से महासागरों में उत्पन्न होती है। 

सुनामी लहरों की दृष्टि से प्रशान्त महासागर सबसे खतरनाक है।

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